Chhattisgarh: हाईकोर्ट पहुंचा रामलला दर्शन योजना का मामला, याचिका पर सरकार का जवाब – ये केवल हिन्दुओं के लिए ही नहीं, राम सबके
Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में पीएम मोदी की गारंटी को चुनौती देने वाली याचिका हाईकोर्ट ने निराकृत कर दी है. रामलला दर्शन योजना और सीएम विष्णु देव साय सरकार के फैसले के खिलाफ छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर हुई थी. याचिका में इस योजना को देश के धर्म निरपेक्षता के खिलाफ बताया गया था.
ये योजना केवल हिन्दुओं के लिए नहीं है, राम सबके है – राज्य सरकार
इस मामले में राज्य की विष्णुदेव साय सरकार ने अदालत में दलील दी कि ये योजना केवल हिन्दुओं के लिए नहीं है, राम सबके है. किसी भी धर्म का व्यक्ति इस योजना का लाभ ले सकता है. इस मामले में याचिकाकर्ता लखन सुबोध के वकील आशीष बैक ने अदलत में कहा कि उन्हें याचिका दायर करते वक्त योजना से जुड़ी इस बात की जानकारी नहीं थी. जिसके बाद चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने इस याचिका को निराकृत कर दिया.
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मुस्लिम युवकों ने भी लिया था योजना का लाभ
बता दें कि अंबिकापुर के सीतापुर में रामलला परियोजना का लाभ लेने वालों में 2 मुस्लिम युवक भी शामिल थे. कुछ दिनों पहले इसी महीने योजना के लिए आवेदन करने वालों की लिस्ट सामने आई थी. जिसमें सीतापुर के मो. सलीम व मो. नईमुद्दीन का नाम शामिल था. सलीम व नईमुद्दीन सगे भाई हैं. प्रदेश में यह पहला मामला था जब मुस्लिम समाज की तरफ से किसी ने रामलला दर्शन योजना का लाभ लेने आवेदन किया हो. दोनों ही भाई अपने हिंदू साथियों के साथ अयोध्या दर्शन करने गए थे.
क्या है पूरा मामला
बता दें कि बिलासपुर के देवरीखुर्द निवासी लखन सुबोध ने हाईकोर्ट में अर्जी लगाते हुए कहा था कि भारत का संविधान हमारे देश को धर्मनिरपेक्ष बनाता है. लेकिन प्रदेश की भाजपा सरकार केवल एक धर्म के लोगों (हिन्दू) को खुश करने का काम कर रही है. टूरिज्म बोर्ड के अधिवक्ता फिजी ग्वालरे ने बताया था कि भाजपा द्वारा अपने घोषणा पत्र में किए गए वादे ‘मोदी की गारंटी 2023’ के अनुरूप अयोध्या दर्शन को पूरा करने 1 जनवरी 2024 को साय कैबिनेट ने फैसला लिया था. कैबिनेट ने रामलला दर्शन (अयोध्या धाम) योजना शुरू करने का महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए स्वीकृत किया गया. याचिका में मंत्री परिषद् के इस फैसले को चुनौती दी गयी थी. इसके अलावा इस पूरी योजना को चुनौती दी गयी थी.
विस्तार न्यूज़ की टीम ने याचिका लगाने वाले लखन सुबोध से बातचीत की तो उन्होंने मामले में किसी तरह से प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया. लखन सुबोध ने बातचीत में बताया कि वे गुरु घासीदास संघ के संयोजक के पद पर कार्यरत है, और उन्होंने सिर्फ संविधान के अनुपालन को लेकर ही यह याचिका हाईकोर्ट में दायर करवाई थी. उन्होंने किसी भी तरह से प्रचार-प्रसार या खुद की पब्लिसिटी नहीं चाहते हुए हाईकोर्ट के आदेश को मान्य करने की बात कही है.