शोले में वीरू नहीं, ठाकुर बनना चाहते थे धर्मेंद्र, फिर हेमा मालिनी के लिए जो किया…दिलचस्प है इन फिल्मों के पीछे की कहानी

जब बात आती है भारतीय सिनेमा की सबसे बड़ी हिट फिल्मों की, तो शोले का नाम सबसे पहले आता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस फिल्म में धर्मेंद्र का किरदार 'वीरू' बनने से पहले वह ठाकुर बल्देव सिंह के रोल में दिखना चाहते थे?
Bollywood Behind-The-Scenes Stories

फिल्म शोले के सितारे

Bollywood Behind-The-Scenes Stories: भारतीय सिनेमा के कुछ सबसे प्रसिद्ध और दिलचस्प किस्से हैं, जो समय के साथ गुम हो गए या जो आज भी दर्शकों के लिए एक रहस्य बने हुए हैं. आइए, हम आपको कुछ ऐसी अनसुनी और दिलचस्प कहानियों से परिचित कराते हैं, जो फिल्मों के पर्दे के पीछे छुपी हुई हैं. ये घटनाएं न केवल इन फिल्मों को और भी दिलचस्प बनाती हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाले कलाकारों और निर्माताओं के मनोबल और फैसले कितने अद्वितीय और मजेदार होते हैं.

शोले में ठाकुर क्यों बनना चाहते थे धर्मेंद्र?

जब बात आती है भारतीय सिनेमा की सबसे बड़ी हिट फिल्मों की, तो शोले का नाम सबसे पहले आता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस फिल्म में धर्मेंद्र का किरदार ‘वीरू’ बनने से पहले वह ठाकुर बल्देव सिंह के रोल में दिखना चाहते थे? दरअसल, धर्मेंद्र की नजरें फिल्म की एक और अहम स्टार पर थीं—हेमा मालिनी. जब उन्हें यह पता चला कि फिल्म में हेमा मालिनी और अमिताभ बच्चन के बीच रोमांस होगा, तो उन्होंने तुरंत अपना फैसला बदल लिया. उनका दिल चाहता था कि वे वीरू का किरदार निभाएं और उन दोनों के साथ रोमांटिक सीन में ज्यादा स्क्रीन टाइम पा सकें.

इतना ही नहीं, धर्मेंद्र सेट पर लाइट बॉय को पैसे भी देते थे ताकि गलती से सीन बार-बार शूट हो जाए और उनका और हेमा का रोमांटिक सीन और ज्यादा देर तक दिखे. उनके इस शरारती प्रयास ने फिल्म के सीन को और भी आकर्षक बना दिया.

शोले का गब्बर और डैनी

शोले फिल्म के गब्बर सिंह का किरदार आज तक सिनेमा की सबसे यादगार भूमिकाओं में से एक माना जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहले अमजद खान के बजाय डैनी डेन्जोंगपा को गब्बर का किरदार निभाने के लिए चुना गया था? परंतु फिल्म के लेखक जावेद अख्तर ने यह महसूस किया कि डैनी की आवाज गब्बर के लिए बहुत पतली थी. वे मानते थे कि गब्बर के किरदार के लिए गहरी और डरावनी आवाज ज़रूरी थी, और इस कारण डैनी का चयन नहीं हो पाया. बाद में अमजद खान को यह भूमिका दी गई, और वह इस रोल में पूरी तरह से फिट साबित हुए. उनकी गहरी आवाज और धमाकेदार अभिनय ने गब्बर को अमर कर दिया.

राज कपूर ने शराब-नॉनवेज से कर लिया था किनारा

कहा जाता है कि राज कपूर की फिल्मों ने भारतीय सिनेमा को नई दिशा दी. एक किस्सा ये है कि कपूर साहब फिल्म सत्यम शिवम सुंदरम के दौरान एक अजीब संघर्ष से गुजर रहे थे. फिल्म के रिलीज़ से पहले उन्होंने अपने जीवन की कुछ आदतों को छोड़ने का फैसला किया. राज कपूर ने शराब और नॉनवेज खाना छोड़ दिया था. उनका मानना था कि यदि वह ये आदतें छोड़ देंगे, तो उनकी फिल्में सफल होंगी. यह एक संजीदा कदम था, क्योंकि वह मानते थे कि किसी कलाकार की व्यक्तिगत जीवनशैली भी उसकी कला पर असर डालती है. फिल्म की रिलीज़ के बाद, फिल्मी दुनिया ने देखा कि उनकी मेहनत और संकल्प ने न केवल दर्शकों को प्रभावित किया, बल्कि फिल्म ने भी अच्छा प्रदर्शन किया.

यह भी पढ़ें: Dua Lipa के कॉन्सर्ट में पहुंची अंबानी परिवार की छोटी बहू राधिका मर्चेंट, बॉलीबुड के इन सितारों ने भी की शिरकत

बॉडी डबल से सुपरस्टार बने जितेन्द्र

जितेन्द्र का करियर फिल्म इंडस्ट्री में एक बिल्कुल अलग तरह से शुरू हुआ था. उनका पहला फिल्मी अनुभव कुछ ऐसा था, जिसे बहुत से लोग नहीं जानते. जितेन्द्र ने अपनी शुरुआत बॉडी डबल के रूप में की थी. वह फिल्म ‘नवरंग’ में अभिनेत्री संध्या के लिए बॉडी डबल बने थे. यह उनकी पहली भूमिका थी, और इसके बाद उन्होंने खुद को साबित किया. धीरे-धीरे वह एक सुपरस्टार बने, लेकिन उनकी शुरुआत बहुत साधारण थी. आज जितेन्द्र को ‘सुपर डांसर’ और अन्य कार्यक्रमों में उनकी परफॉर्मेंस के लिए जाना जाता है, लेकिन उनकी यात्रा की शुरुआत एक बॉडी डबल के रूप में हुई थी.

‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम’ पाकिस्तानी स्कूल एंथम

‘दो आंखें बारह हाथ’ का गाना ‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम’ आज भी दिलों में बसा हुआ है. यह गाना एक प्रेरणा का प्रतीक बन चुका था और इसके प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक पाकिस्तानी स्कूल ने इसे अपनी स्कूल एंथम के रूप में अपना लिया. गाने का संदेश इतना शक्तिशाली था कि यह सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी इसके असर को महसूस किया गया. यह गाना न सिर्फ धार्मिक और मानसिक शांति का प्रतीक था, बल्कि यह उन सभी के लिए प्रेरणा बना जिन्होंने मुसीबतों का सामना किया था.

शाहरुख की काली जैकेट

दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे में शाहरुख खान की काली लैदर जैकेट ने एक खास पहचान बनाई. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि यह जैकेट असल में उदय चोपड़ा की थी, जो उन्होंने कैलिफोर्निया में हार्ले डेविडसन स्टोर से खरीदी थी. यह जैकेट फिल्म में शाहरुख के स्टाइल का अहम हिस्सा बन गई और आज भी शाहरुख खान के फैशन का एक प्रतीक मानी जाती है.

यह सभी कहानियां यह साबित करती हैं कि सिनेमा की दुनिया केवल पर्दे के सामने की चमक-धमक तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे की वास्तविक घटनाएँ और प्रेरणाएं ही इन फिल्मों को अमर बना देती हैं. इन अनसुनी कहानियों में एक जादू है, जो दर्शकों को और भी गहरे तक जुड़ने की प्रेरणा देती है.

ज़रूर पढ़ें