Tehran Review: जॉन अब्राहम की दमदार एक्टिंग, आंखें खोल देगी फिल्म की अनटोल्ड स्टोरी, बिना हो-हल्ला जागेगी देशभक्ति

Tehran Movie Review: ये एक इंटेलिजेंट फिल्म है. इस फिल्म को समझने के लिए आपको थोड़ा-बहुत पढ़ना भी होगा इरान और इजरायल के बारे में. इंडिया से उनके रिश्तों के बारे में, फिल्म दो घंटे की है और कसी हुई है.
Tehran Movie Review

तेहरान मूवी रिव्यु (सांकेतिक तस्‍वीर)

Tehran Movie Review: जॉन अब्राहम की फिल्म एक फिल्म रिलीज हुई थी वेधा नाम की उसी टाइम प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनसे पूछा गया था कि आप एक ही टाइप की फिल्में क्यों करते रहते हैं ,जॉन उस समय तो काफी नाराज हुए थे लेकिन बाद में माफ़ी मांग ली थी. लेकिन जॉन अब्राहम इंडस्ट्री के उन एक्टर्स में से हैं जो अपने काम से जवाब दें जानते हैं और जॉन ने वो जवाब तेहरान से दिया है. 14 अगस्त को ये फिल्म रिलीज हुई थी, हमने थोड़ी लेट देखी क्योकि OTT रिलीज थी.. आप कभी भी देख सकते हैं लेकिन जब देखी तो लगा की इसका रिव्यू तो देना बनता है, भले ही लेट भी हो. क्योकि यहां जॉन अब्राहम फुल फॉर्म में हैं. एक्शन, इमोशन, इंटेलिजेंस, यहां सबकुछ है. चलिए जानते हैं और क्या-क्या है इस फिल्म में.

कहानी

फिल्म की कहानी शुरू होती है साल 2012 से जहाँ इंडिया में इजरायली डिप्लोमेट्स पर अटैक होते हैं और उन अटैक्स में फूल बेचने वाली एक मासूम बच्ची मारी जाती है. ये अटैक इरान और इजरायल की दुश्मनी की वजह से हुए हैं लेकिन इंडिया में हुए हैं इसलिए इसकी जांच सौंपी जाती है एसीपी राजीव कुमार यानी जॉन अब्राहम को. राजीव के सीनियर उसे Obsessed और सनकी कहते हैं. और बोलते हैं कि एक बार इस आदमी ने ठान लिया तो काम पूरा कर के ही दम लेगा.

अब राजीव बच्ची की मौत के ज़िम्मेदार लोगों को सज़ा देने के लिए निकल पड़ता है. इस दौरान कैसे इज़रायल उसे धोखा देता है, ईरान उसे खत्म कर देना चाहता है, और इंडिया उसका साथ छोड़ देता है, यही फिल्म की कहानी है.पहले तो इसमें पाकिस्तान का हाथ होने का शक होता है लेकिन धीरे धीरे राज खुलते हैं, लेकिन फिर होती है राजनीति, डिप्लोमैसी और काफी कुछ, और राजीव कुमार अकेला पड़ जाता है, फिर क्या होता है, इसके लिए आपको ये फिल्म देखनी होगी

एक्टिंग

जॉन अब्राहम ने शानदार काम किया है. ये किरदार उनकी पर्सनालिटी को काफी सूट भी कर रहा था यहां जॉन सिर्फ एक्शन नहीं करते, और भी बहुत कुछ करते हैं जो आपके दिल को छू जाता है. ऐसा लगता है कि जॉन को इसी तरह के किरदार करते रहने चाहिए वो बेसिर पैर का एक्शन नहीं करते जहां जरूरत है मारते हैं और जहां नहीं है वहां बंदूक दूसरे को दे देते हैं. साथ ही एक्सप्रेशंस और वॉइस भी काफी अच्छी रखते हैं.

नीरू बाजवा ने यहाँ बढ़िया काम किया है. उनके लिए ये एक अलग तरह का किरदार है जिसमें वो काफीअच्छीलगी हैं . SI दिव्या राणा के रोल में मानुषी छिल्लर का काम भी बहुत अच्छा है एक्शन करते हुए वो कमाल लगती हैं. जॉन की पत्नी के रोल में मधुरिमा तुली काफी इम्प्रेस करती हैं. दिनकर शर्मा जॉन के दोस्त बने हैं और उनका काम काफी बढ़िया है, वहीं Afshar Hosseini के रोल में Hadi khanjanpour का काम भी अच्छा है

राइटिंग और डायरेक्शन

फिल्म को रितेश शाह, आशीष वर्मा, और बिंदनी कारिया ने लिखा है और डायरेक्ट किया है अरुण गोपालन ने. राइटिंग में थोड़ा बेहतर काम किया जा सकता था. चीजों को थोड़ा सिंपल तरीके से बताया जा सकता था, स्पेशल्ली उन लोगों के लिए जो इन मुद्दों के बारे में ज्यादा नहीं जानते, जितनी भी खामियां हों, उन्हें इसकी राइटिंग ढक लेती है. फिल्म कट-टू-कट दौड़ती है लेकिन इस बीच वो अपने किरदारों को ह्यूमनाइज़ करने की कोशिश भी करती है और आपको अंत तक एन्गेज कर के रखती है. सब कुछ एक तार से बंधा हुआ लगता है.

राजीव अपनी बेटी के जन्मदिन पर समय पर पहुंचना चाहता है, एक अन्य किरदार है जो दफ्तर में शिफ्ट के दौरान अपने तलाक के पेपर्स साइन कर रहा है. वहीं एक सीन में सीनियर ऑफिसर कहता है कि मुझे कल सुबह तक हर हाल में रिपोर्ट चाहिए. फिर जोड़ता है कि और मेरे लॉन फर्निचर का क्या हुआ. बिना कोई साइड लिए यहाँ चतुराई से ब्युरोक्रेसी पर कमेंट कर दिया गया लेकिन बस क्लाइमैक्स में फिल्म की ये ये पकड़ ढीली पड़ जाती है. ऐसा लगता है कि क्लाइमैक्स को जल्दबाज़ी में निपटा दिया. लेकिन उसके अलावा राइटिंग से आपको शिकायत नहीं रह जाती. बाकि डायरेक्शन अच्छा है.

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कैसी है फिल्म

ये एक इंटेलिजेंट फिल्म है. इस फिल्म को समझने के लिए आपको थोड़ा बहुत पढ़ना भी होगा इरान और इजरायल के बारे में. इंडिया से उनके रिश्तों के बारे में, फिल्म दो घंटे की है और कसी हुई है. आपको अपने साथ जोड़कर रखती है और जॉन अब्राहम ये काम बखूबी करते हैं. हालांकि कई जगह स्क्रीनप्ले में कमी लग सकती है. आपको लगता है थोड़ा सा सिंपल होना चाहिए था.बीच बीच में फारसी भाषा में डायलॉग आते हैं और आपको सबटाइटल देखने पड़ते हैं लेकिन जैसा मैंने पहले कहा ये बेसिरपैर एक्शन फिल्म नहीं है.

एक्शन सीन आता है तो उसका एक लॉजिक होता है. हीरो किसी को मारता है तो किसी वजह से ही मारता है और जॉन की ये शायद पहली फिल्म होगी जो सीधे ओटीटी रिलीज हुई है शायद मेकर्स को नहीं लगा होगा कि ये थिएटर में चलेगी और बात सही लगती भी है. ये ओटीटी के लिए बहुत अच्छी फिल्म है, जी 5 पर आई है, अच्छा सिनेमा देखना चाहते हैं तो आप बिलकुल इसे देख सकते हैं

रेटिंग- 5 से 4 स्टार्स

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