Kantara Chapter-1 Review: ऋषभ शेट्टी का कमाल अभिनय और निर्देशन, एक अलग दुनिया में ले जाएगी फिल्म

Kantara Chapter-1 Review: कहानी की बात करें तो इसमें सबसे अच्छी बात यही है कि यह वहीं से शुरू होती है जहां से पिछली वाली खत्म हुई थी.
Kantara Chapter 1

कांतारा चैप्टर 1

Kantara Chapter-1 Review: साल की सबसे मोस्ट अवेटेड फिल्मों में से एक कंतारा चैप्टर वन रिलीज हो चुकी है और यह एक साउथ की फिल्म है, तो अब आप सोचेंगे कि मैं कहूंगा बॉलीवुड वाले शर्म करो. बॉलीवुड वाले डूब मरो, बॉलीवुड खत्म हो गया. इसको बोलते हैं मास्टर पीस. नेपोटिज्म वालों डूब के कहीं मर जाओ चुल्लू भर पानी में, लेकिन क्यों ?अब हर साउथ की फिल्म के रिव्यु में तो ऐसा नहीं बोल सकते ना भाई. माना कांतारा एक बहुत अच्छी फिल्म है.

हर फिल्म मास्टर पीस नहीं होती

लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि साउथ की सारी फिल्में अच्छी होती हैं और वहां खराब फिल्में बनती ही नहीं और ऐसा भी नहीं होता कि बॉलीवुड में सिर्फ मास्टर पीस बनते हैं और बॉलीवुड में भी खराब फिल्में नहीं बनती. हर फिल्म मास्टर पीस नहीं होती है. साउथ की मैंने एक फिल्म और देखी थी कंगुवा ,कसम से आंखों के अलावा और कहां-कहां से मेरे खून निकला था मैं बता नहीं सकता आप लोगों को. इसी तरह कल ही बॉलीवुड की एक फिल्म देख के आया हूं, सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी और निहायती इतनी घटिया फिल्म है कि वही हाल हुआ मेरा. खैर कांतारा की बात कर लेते हैं.

आमतौर पर यह देखा जाता है कि जब किसी फिल्म का पहला पार्ट सफल होता है तो दूसरे पार्ट पर मेकर्स बजट भी बढ़ा देते हैं और लेकिन जब बजट बढ़ता है तो उस चक्कर में फिल्म बर्बाद हो जाती है. कहानी पर काम नहीं किया जाता. लेकिन कांतारा चैप्टर वन के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ है. फिल्म बहुत अच्छी बनी है. अब अच्छी क्यों बनी है? आइए समझते हैं.

कहानी

कहानी की बात करें तो इसमें सबसे अच्छी बात यही है कि यह वहीं से शुरू होती है जहां से पिछली वाली खत्म हुई थी. एक बच्चा यहां पे सवाल पूछता है जिसके जवाब में उसे एक कहानी सुनाई जाती है. अब कहानी है कदंब साम्राज्य की जहां पर एक तरफ ईश्वर के मधुबन में भगवान शिव के सारे भक्त रहते हैं जो कि कांतारा गांव के निवासी लोग हैं. दूसरी तरफ राजा विजेंद्र का बांगड़ा साम्राज्य है.

राजा विजेंद्र के दादा जो थे मधुबन को हड़पना चाहते थे. लेकिन पंजुरली देव जो हमें पिछली कांतारा में दिखाए गए थे उन्होंने उसे ऐसा नहीं करने दिया. इसके बाद से राजा विजेंद्र कांतारा वालों से डरने लगे. उन्हें लगा कि गांव में कोई ब्रह्म राक्षस रहता है जो उन्हें रोक रहा है. इस डर से कई वर्षों तक वो बांगड़ा साम्राज्य का कोई भी आदमी कांतारा गांव में नहीं गया.

आगे चलकर जब राजा विजेंद्र ने अपने बेटे कुलशेखर यानी गुलशन देवैया को राजा बनाया तो उसने कांतारा में घुसने की कोशिश की. इसके बाद पंजुरली देव नाराज हो गए और असली खेल शुरू हुआ. इसक लिए आप तुरंत से भाग के सिनेमाघर में जाइए और यह फिल्म देख डालिए।

एक्टिंग

एक्टिंग की बात करें तो, ऋषभ शेट्टी ने यहां पे कमाल का काम किया है. वो फिल्म की जान है. उन्हें देखकर लगता है कि जैसे उनका जन्म ही हुआ था कांतारा फिल्म बनाने के लिए. इतने पावरफुल लगते हैं कि फिल्म की सारी कमियों को वो अपनी एक्टिंग और परफॉर्मेंस से छिपा देते हैं. हर एक फ्रेम में वो काफी कमाल लगे हैं.

वहीं रुकमणी वसंत को फर्स्ट हाफ में देखकर ऐसा लगा कि उन्हें क्यों ही फिल्म में लिया गया है. लेकिन सेकंड हाफ में वो कमबैक करती हैं और साबित कर देती हैं कि क्यों लिया गया है. क्लाइमेक्स में उनका काम काफी कमाल है. एक्शन भी वो काफी कमाल का करती हैं. वहीं विलेन के रूप में गुलशन देवैया पर यह किरदार सूट नहीं कर रहा था. वो कमाल के एक्टर हैं लेकिन यहां पे वो थोड़े से कच्चे नजर आए ऋषभ शेट्टी के सामने. जयराम का काम काफी शानदार है. खासतौर पर क्लाइमेक्स में वो जबरदस्त लगे हैं.

डायरेक्शन

डायरेक्शन की बात करें तो प्रमुख किरदार में होना साथ में डायरेक्शन भी करना काफी आसान नहीं होता है. लेकिन ऋषभ शेट्टी ने इस बार इसमें कमाल करके दिखा दिया. फिल्म के कई सीन उन्होंने बहुत खूबसूरती के साथ गढ़ दिए हैं. हालांकि वो कुछ चीजें और बेहतर कर सकते थे. जो फिल्म का सेकंड हाफ है उसमें कुछ पल के लिए फिल्म थोड़ी सी बोरिंग लगती है लेकिन उसको लंबाई कम करके बचाया जा सकता था लेकिन कुल मिला के ऋषभ शेट्टी ने डायरेक्टर के तौर पे यहां पे बहुत बढ़िया काम किया है. कंतारा के पिछले पार्ट की तरह उस फिल्म की आत्मा भी उन्होंने इधर भी बरकरार रखी है.

म्यूजिक और सिनेमेटोग्राफी

म्यूजिक की बात करें तो बी अजनीश लोकनाथ का म्यूजिक है. इसमें बैकग्राउंड म्यूजिक हर सीन के साथ परफेक्टली मैच करके चलता है. फिल्म में बेवजह कहीं भी गाने ठूसे नहीं गए हैं. अच्छे से बिठाए गए हैं. प्री इंटरवल का जो एक्शन सीक्वेंस आता है वो बहुत दमदार है और बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ एक अलग एक्सपीरियंस देता है.

विजुअली जो है साउथ की फिल्में बहुत अच्छी होती है. खूबसूरती दिखाई जाती है, जंगल, पहाड़,नदियां, वादियां सब दिखाया जाता है और इन सबकी भी इस फिल्म में कोई कमी नहीं है।एक्शन सींस और सिनेमेटोग्राफी भी बहुत अच्छी है और कुछ नया दिखाया गया है. सिंगल टेक में शूट हुए हैं कई सारे एक्शन सींस जो आपके दिल की धड़कन बढ़ा देंगे और पल भर में इतना कुछ हो जाएगा कि आपके मुंह से निकलेगा वाह.

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ओवरऑल कैसी है फिल्म

तो ओवरऑल अगर फिल्म की बात करें तो बहुत अच्छी फिल्म है जिसमें कमाल के विजुअल इफेक्ट्स है जैसा मैंने बताया और थिएटर में ही जाकर देखनी चाहिए. ओटीटी पे आएगी तो देखना जरूर लेकिन जो असली एक्सपीरियंस मिलेगा वो थिएटर में ही मिलेगा. पहला हाफ ठीक-ठाक है. इंटरवल से पहले वाला सीन कमाल है. लेकिन दूसरा हाफ और ज्यादा जबरदस्त है.

नरेशन में कई बार स्टोरी थोड़ी सी डीप होती है. लेकिन लगता है कि उसकी जरूरत नहीं थी. लेकिन कई जगह ऐसा भी लगता है कि चीजों को थोड़ा और सिंपल कर सकते थे क्योंकि हर किसी के लिए ऐसी फिल्म समझना आसान नहीं होता है.

फिर बीच-बीच में कुछ ऐसे सीन आ जाते हैं जो पहले वाले सारे हल्के सीन्स पे भारी पड़ जाते हैं और आपको एक टोटल सिनेमैटिक एक्सपीरियंस देते हैं. क्लाइमेक्स बहुत जबरदस्त है. खासतौर से जब ऋषभ शेट्टी चामुंडी देवी का रूप धारण करते हैं वो सीन देखने लायक है. तो साउथ की फिल्मों और
कांतारा सीरीज के अगर आप फैन हैं तो यह सवाल आपको करना ही नहीं चाहिए कि फिल्म देखें या नहीं देखें. तुरंत से जाकर देखिए. मेरी तरफ से इस फिल्म को पांच में से 4 स्टार्स.

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