बिहार में तेजस्वी को CM कैंडिटेट घोषित करने से क्यों कतरा रही कांग्रेस?
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव
Bihar Elections 2025: बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर एनडीए और इंडिया ब्लॉक का प्रचार अभियान तेज हो रहा है. हाल ही में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के नेतृत्व में कांग्रेस ने वोटर अधिकार यात्रा भी निकाली थी, जिसमें राजद नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने हर कदम पर कांग्रेस नेता का साथ दिया था. बावजूद इसके, कांग्रेस तेजस्वी यादव को सीएम फेस बनाने से कतरा रही है. आलम यह है कि तेजस्वी ने खुद की अपने आप को सीएम उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट तक कर दिया है.
इतना सब हो जाने के बाद भी राहुल गांधी ने खुलकर तेजस्वी का नाम सीएम फेस के लिए लेने से इनकार कर दिया. कांग्रेस के रवैये के बाद बिहार में इस बात को लेकर कानाफुसी तेज हो गई है क्या तेजस्वी केवल राहुल गांधी के पिछलग्गू बनकर ही रह गए हैं?
तेजस्वी के नाम पर सहमत नहीं कांग्रेस!
कांग्रेस के सामने जब भी यह सवाल आया है कि तेजस्वी को बिहार में सीएम उम्मीदवार घोषित करेंगे या नहीं? इस सवाल पर राहुल गांधी से लेकर कांग्रेस के अन्य नेताओं ने चुप्पी साध लेना ही बेहतर समझा है. लेकिन, ये सवाल है कि कांग्रेस का पीछा छोड़ता नहीं दिखाई दे रहा है. बुधवार को भी कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावेरू से ये सवाल किया गया तो, उनका जो जवाब था, वह राजद को परेशान जरूर कर सकता है.
अल्लावेरू ने सीएम उम्मीदवार के सवाल पर कहा कि बिहार का मुख्यमंत्री यहां की जनता तय करेगी. इन सारी बातों का एक ही मतलब अब निकाला जा रहा है कि तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस स्वीकार नहीं करना चाहती है. एक तरफ, तेजस्वी यादव राहुल गांधी को पीएम बनाने की बात करते हैं लेकिन पूरी की पूरी कांग्रेस तेजस्वी के नाम पर चुप्पी साधे बैठ जाती है.
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सियासी जमीन दोबारा हासिल करने की कोशिश में कांग्रेस
अब अगर इसके सियासी मायने तलाशे जाएं तो एक ही बात निकलकर सामने आती है और वह ये कि कांग्रेस भले ही राजद के साथ मिलकर बिहार चुनाव में उतरने जा रही है, लेकिन वह सियासी रूप से बेहद महत्वपूर्ण इस राज्य में अपनी खोयी हुई जमीन को वापस पाना चाहती है. कांग्रेस को कहीं न कहीं ये लगता है कि अगर तेजस्वी के चेहरे पर चुनाव लड़ा तो पार्टी फिर लंबे समय के लिए बिहार में राजद की पिछलग्गू ही बनकर रह जाएगी.
कांग्रेस को शायद यूपी में सपा के गठबंधन से यह सबक जरूर मिला होगा, जहां सीटों के बंटवारे पर अखिलेश यादव ने अपने इस सहयोगी की बातों को बिल्कुल भी तवज्जो नहीं दी थी. ऐसे में कांग्रेस बिहार में अपनी संभावनाओं पर विराम लगाने वाला कोई भी कदम उठाना नहीं चाहेगी.
तेजस्वी के चेहरे से परहेज क्यों?
तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी के खिलाफ लैंड फॉर जॉब स्कैम का मामला चल रहा है. राजद सुप्रीमो लालू यादव चारा घोटाले में सजायाफ्ता हैं. ऐसे में अगर तेजस्वी को महागठबंधन के सीएम उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस स्वीकार कर लेती है तो भाजपा को बैठे-बिठाए एक मुद्दा मिल सकता है. भाजपा पहले ही राजद पर ‘जंगलराज’ के आरोपों की बौछार करती रही है.
हालांकि, कांग्रेस के खुद के दामन भी पाक-साफ नहीं हैं. पार्टी भ्रष्टाचार के आरोपों में लंबे समय से घिरी है. नेशनल हेराल्ड केस में राहुल गांधी भी लपेटे में हैं. फिर भी, बिहार के परिदृष्य में कांग्रेस सीएम पद के लिए उम्मीदवार तय करने में कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहती है.
बेटर डील के ऑप्शन की तलाश में कांग्रेस
दूसरी तरफ, कांग्रेस की रणनीति सीटों के बंटवारे में ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करने की भी हो सकती है. पिछली बार कांग्रेस को राजद ने 70 सीटें दी थीं लेकिन ज्यादातर सीटों पर राजद और कांग्रेस दोनों का ही कोई खास वर्चस्व नहीं था. नतीजन, कांग्रेस 19 सीटों पर सिमटकर रह गई थी. लेकिन, इसके बाद लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस ने 9 में से 3 सीटों पर जीत हासिल की और राजद को 21 में से 4 पर जीत मिली तो कांग्रेस पार्टी को लगा कि वह आगामी विधानसभा में और बेहतर कर सकती है.
‘वोटर अधिकार यात्रा’ के दौरान कांग्रेस को अच्छा समर्थन मिला है और ऐसे में पार्टी अगर तेजस्वी को सीएम फेस मानने में आना-कानी करती है तो जाहिर तौर पर वह बेहतर डील के लिए राजद पर दबाव बना सकती है.