चिराग और PK की पार्टी से लेकर AIMIM तक… क्या बिहार में छोटे दल बिगाड़ेंगे नीतीश-लालू का गणित?
बिहार चुनाव 2025
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में अब बीएस कुछ महीने ही बचे हैं. ऐसे में हर पार्टी अपनी भूमिका को चुनाव में बड़ा करने में लगा हुआ है. बिहार में JDU जो की मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी है और दूसरा RJD जो की लालू यादव की पार्टी है. इन दोनों ही पार्टियों का बिहार में दबदबा है. यहां बीजेपी तीसरे नंबर पर आती है. लेकिन JDU के JDU के साथ यह बिहार में अपना पैर जमाए हुए हैं. इस बार चुनाव में एक तरफ NDA है तो एक तरफ महागठबंधन दोनों के बीच इस बार मुकाबला नेक तो नेक का है. इसी बीच कई और पार्टियां जो इस चुनाव में किंगमेकर तो नहीं, लेकिन खेल जरूर बिगाड़ सकती हैं.
वो कहते हैं न कि ‘छोटे-छोटे चूहों के कारण ही बड़ा से बड़ा जहाज डूबता है.’ ये स्टेटमेंट बिहार चुनाव में छोटी-छोटी पार्टियों पर सटीक बैठता है. राज्य के चुनाव में लालू और नीतीश के चुनावी गणित को फेल करने में बिहार में उभर रहीं पार्टियां अहम किरदार निभा सकती हैं. प्रशांत किशोर की जन सुराज, असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM, बसपा, VIP, और पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के साथ साथ NDA के घटक दल चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) जैसी पार्टयियां नीतीश कुमार (JDU) और लालू प्रसाद यादव (RJD) के नेतृत्व वाले NDA और महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं.
चिराग का पासवान वोटों का ध्रुवीकरण
चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) बिहार में पासवान समुदाय (लगभग 5-6% वोट) पर मजबूत पकड़ रखती है. 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग ने NDA से अलग होकर JDU की 30 से अधिक सीटों पर नुकसान पहुंचाया था, जिससे नीतीश की सीटें 43 तक सिमट गई थीं. इस बार चिराग NDA के साथ हैं, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा और सामान्य सीटों पर दावेदारी नीतीश के लिए चुनौती बन सकती है.
हाजीपुर, वैशाली, और समस्तीपुर जैसे क्षेत्रों में चिराग का प्रभाव मजबूत है. अगर सीट बंटवारे में असंतोष हुआ, तो बागी उम्मीदवार JDU या BJP के वोट काट सकते हैं. चिराग युवा और दलित वोटरों को लुभाने के लिए आक्रामक प्रचार कर रहे हैं. उनकी ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ की थीम युवाओं में लोकप्रिय हो सकती है. अगर चिराग को NDA में कम सीटें मिलीं, तो वे गठबंधन के खिलाफ जा सकते हैं, जैसा कि 2020 में हुआ था.
PK- नया विकल्प या वोट कटवा?
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी 2025 में पहली बार पूर्ण रूप से चुनाव लड़ने जा रही है. PK, जो पहले नीतीश और लालू के लिए रणनीतिकार रह चुके हैं, अब जातिगत समीकरणों को तोड़कर विकास और सुशासन के मुद्दे पर जोर दे रहे हैं. उनकी पार्टी युवा और शिक्षित वोटरों को लक्षित कर रही है.
राजनीतिक जानकर मानते हैं कि जन सुराज का संगठनात्मक ढांचा अभी नया है, लेकिन PK की रणनीतिक समझ और सोशल मीडिया उपस्थिति उन्हें 50-60 सीटों पर प्रभावी बना सकती है. शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में उनकी अपील ज्यादा हो सकती है. PK की पदयात्रा और जनसभाओं ने ग्रामीण क्षेत्रों में भी ध्यान खींचा है. वे भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठा रहे हैं, जो दोनों गठबंधनों के लिए खतरा बन सकता है.
इसके साथ ही जानकर यह भी मानते हैं कि संगठन की कमी और अनुभवहीन उम्मीदवारों के कारण जन सुराज का प्रभाव सीमित रह सकता है. हालांकि, अगर वे 5-10% वोट शेयर ले गए, तो NDA और महागठबंधन दोनों को नुकसान होगा.
AIMIM का सीमांचल में बढ़ता पकड़
बात अब असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद मुसलमीन (AIMIM) की करें तो बिहार के सीमांचल क्षेत्र (किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, अररिया) में वह प्रभावी है. इस क्षेत्र में उनका प्रभाव बढ़ता जा रहा है. जहां मुस्लिम आबादी 30-40% है. 2020 में AIMIM ने 5 सीटें जीती थीं, जिससे RJD के MY समीकरण के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगी थी.
AIMIM के बढ़ते प्रभाव को लेकर राजनीतिक जानकर मानते हैं कि यह मुस्लिम वोटों पर फोकस कर महागठबंधन को नुकसान पहुंचा सकता है. क्योंकि RJD-Congress गठबंधन इस वोट बैंक पर निर्भर करते हैं. सीमांचल की 24 सीटों में से कुछ पर AIMIM का प्रभाव निर्णायक हो सकता है. ओवैसी मुस्लिम युवाओं और सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित प्रचार करते हैं. उनकी सभाएं सीमांचल में भारी भीड़ जुटा रही हैं.
AIMIM का प्रभाव सीमांचल निकलकर बिहार के अन्य क्षेत्रों में जाता है तो RJD के लिए खतरा बढ़ेगा. क्योंकि खबरें ऐसी है कि इस बार AIMIM पश्चिम चंपारण में भी अपना उम्मीदवार उतार सकता है.
बसपा, VIP, और पशुपति पारस की रणनीति
बसपा, विकासशील इंसान पार्टी (VIP), और पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी जैसे छोटे दल भी बिहार चुनाव में सक्रिय हैं. ये दल दलित, EBC, और कुछ क्षेत्रीय वोट बैंक पर ध्यान दे रहे हैं.
बसपा: मायावती की पार्टी दलित वोटों को आकर्षित करती है, लेकिन बिहार में इसका संगठन कमजोर है. फिर भी, कुछ सीटों पर यह वोट काट सकती है.
VIP: मुकेश सहनी की पार्टी EBC (निषाद और मल्लाह) वोटों पर केंद्रित है. 2020 में VIP ने NDA के साथ 4 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार उनकी स्वतंत्र रणनीति दोनों गठबंधनों को प्रभावित कर सकती है. हालांकि ये तेजस्वी के साथ महागठबंधन में मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं, जिससे ये NDA के लिए वोट काट सकते हैं.
पशुपति पारस: RLJP का प्रभाव सीमित है, लेकिन हाजीपुर जैसे क्षेत्रों में पासवान वोटों का बंटवारा चिराग के लिए नुकसानदायक हो सकता है.
वोट बंटवारा और क्षेत्रीय गणित
छोटे दलों का प्रभाव बिहार की 243 सीटों में से कुछ पर निर्णायक हो सकता है, खासकर जहां हार-जीत का अंतर कम होता है. छोटे दल NDA और महागठबंधन के कोर वोटरों (दलित, EBC, मुस्लिम, युवा) को विभाजित कर सकते हैं. 2020 में 1-2% वोट बंटवारे ने कई सीटों पर नतीजे बदले थे.
सीमांचल (AIMIM), मिथिलांचल (जन सुराज), और मगध (LJP, बसपा) जैसे क्षेत्रों में छोटे दलों का प्रभाव ज्यादा दिख सकता है. जन सुराज और चिराग की अपील युवा और शहरी वोटरों में बढ़ रही है, जो दोनों गठबंधनों के लिए खतरा है.
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नीतीश और लालू की चुनौतियां और रणनीति
राजनीतिक जानकारोंका कहना है कि नीतीश को चिराग और पशुपति पारस के साथ गठबंधन प्रबंधन में सावधानी बरतनी होगी. उनकी EBC और महादलित वोट बैंक पर पकड़ मजबूत है, लेकिन जन सुराज और VIP इस वोट में सेंध लगा सकते हैं.
वहीं लालू यादव की रणनीति को लेकर जानकार मानते हैं कि RJD का MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण AIMIM और जन सुराज से प्रभावित हो सकता है. लालू को छोटे दलों को अपने पक्ष में लाने या उनके प्रभाव को कम करने की जरूरत है.