पीएम मोदी-कार्नी की आमने-सामने मुलाकात, क्या शुरू होगा भारत-कनाडा संबंधों का नया दौर?
भारत से रिश्ते ठीक करना चाहता है कनाडा
G7 Summit 2025: कनाडा के कनानास्किस, अल्बर्टा में आयोजित G7 शिखर सम्मेलन वैश्विक कूटनीति के लिए एक महत्वपूर्ण मंच साबित हो रहा है. इस सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी की पहली मुलाकात दोनों देशों के संबंधों के लिए एक निर्णायक मोड़ हो सकती है. यह मुलाकात ऐसे समय में हो रही है, जब रूस-यूक्रेन युद्ध के अलावा दुनिया ईरान-इजराइल के टकराव के बड़ा होने के भय से गुजर रही है. वहीं, सामरिक क्षेत्र में भारत का भी पाकिस्तान के खिलाफ आक्रामक रुख़ ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से जगजाहिर हो चुका है.
जहां तक कनाडा का सवाल है तो इन वैश्विक अस्थिरता और मल्टीपोलर वर्ल्ड ऑर्डर के बीच भारत के साथ उसके रिश्ते मुट्ठी भर खालिस्तानी समर्थकों के चलते ख़राब दौर का सामना कर रहे हैं. दोनों देशों के बीच 2023 में खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद शुरू हुआ कूटनीतिक तनाव अभी भी चर्चा में है. साथ ही, कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों के विरोध प्रदर्शन इस मुलाकात को और जटिल बना रहे हैं. लेकिन, सकारात्मक पहलू ये है कि इन तमाम घटनाक्रमों के बीच कनाडा और भारत के राष्ट्राध्यक्ष यानी पीएम मोदी और कार्नी एक दूसरे से आमने-सामने मुख़ातिब होने जा रहे हैं.
मोदी-कार्नी मुलाकात
G7 शिखर सम्मेलन के दौरान 17 जून 2025 को कनानास्किस के पोमेरोय माउंटेन लॉज में प्रधानमंत्री मोदी और कार्नी के बीच एक द्विपक्षीय बैठक निर्धारित है. यह मुलाकात मार्च 2025 में कार्नी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों नेताओं का पहला आमना-सामना है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसे ‘आपसी सम्मान, साझा हितों और एक-दूसरे की चिंताओं के प्रति संवेदनशीलता’ के आधार पर संबंधों को फिर से जीवंत बनाने का अहम मौका बताया है. यह बैठक भारत के लिए G7 में अपनी छठी लगातार भागीदारी और कनाडा में मोदी की एक दशक बाद पहली यात्रा को चिह्नित करती है.
भारत-कनाडा के जटिल संबंधों का निष्कर्ष
बतौर लोकतंत्र भारत और कनाडा की हैसियत काफ़ी पुरानी और दुनिया में प्रासंगिक रही हैं. आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में दोनों देशे के पहले संबंध काफ़ी घनिष्ठ और टिकाऊ माने जाते रहे हैं. आज की तारीख में कनाडा में 1.8 मिलियन से अधिक भारतीय प्रवासी, विशेषकर डॉक्टर, इंजीनियर और छात्र, अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. लेकिन, पिछले कुछ सालों में जस्टिस ट्रूडो के नेतृत्व में कनाडा की सरकार ने भारत के साथ संबंधों को बेहतर करने के बजाए देश में तुष्टिकरण की राजनीति को प्राथमिकता दी.
नतीजा ये रहा कि भारत के साथ संबंध ख़राब होते चले गए. ट्रूडो ने काफ़ी वक़्त तक चुनावी प्रक्रिया में अपना हित साधने के लिए खालिस्तानी चरमपंथियों को खुश करने में कोई कमी नहीं रखी. भारत ने कई बार द्विपक्षीय बातचीत में इस मसले पर आपत्ति भी जताई और अपना कंसर्न भी जाहिर किया. लेकिन, वोटबैंक का लालच ट्रूडो के लिए सबसे बड़ा मुद्दा बना रहा. 2023 में खालिस्तानी आतंकी निज्जर की हत्या के बाद तत्कालीन कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा भारतीय एजेंटों पर लगाए गए आरोपों ने संबंधों को निम्नतम स्तर पर ला दिया.
भारत ने इन आरोपों को “निराधार” करार देते हुए खारिज किया और कनाडा से खालिस्तानी अलगाववाद के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को निष्कासित किया, जिससे व्यापार और कूटनीतिक सहयोग प्रभावित हुए. अब मार्क कार्नी का नया नेतृत्व और G7 में भारत को निमंत्रण एक सकारात्मक संकेत है. कार्नी ने इसे ‘रणनीतिक रूप से समझदारी भरा’ कदम बताया, जो भारत के साथ व्यापार, खुफिया जानकारी साझा करने और रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा दे सकता है. यह कदम G6 देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान) के दबाव को भी दर्शाता है, जो भारत को वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण भागीदार मानते हैं.
खालिस्तानी प्रदर्शनों के प्रभाव
G7 शिखर सम्मेलन से पहले और दौरान कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों का विरोध प्रदर्शन सिर्फ़ एक संगठन नहीं, बल्कि दूसरे देशों से प्रॉक्सी वॉर के एक टूल की तौर पर देखा जाना चाहिए. जिन-जिन देशों में खालिस्तान समर्थक अलगाववादियों ने शरण ले रखी है, साफ़ तौर पर उन देशों का मंसूबा भारत को डिस्टर्ब रखने की है. इसमें पाकिस्तान और चीन तो अव्वल नंबर पर हैं. 14-16 जून को ओटावा और कैलगरी में सिख्स फॉर जस्टिस और विश्व सिख संगठन जैसे समूहों ने बड़े पैमाने पर रैलियां आयोजित कीं. प्रदर्शनकारियों ने मोदी के खिलाफ नारेबाजी की और उनकी तस्वीर को जेल जैसे पिंजरे में प्रदर्शित किया. एक प्रदर्शनकारी नेता, मनजिंदर सिंह ने ‘मोदी की राजनीति को खत्म करने’ की धमकी दी, जिसे भारत ने गंभीरता से लिया.
भारतीय खुफिया एजेंसियों ने कनाडाई अधिकारियों को इन प्रदर्शनों के संभावित खतरों के बारे में चेतावनी दी है, और भारतीय राजनयिकों की सुरक्षा बढ़ाने की मांग की है. हालांकि, सभी सिख संगठन इन प्रदर्शनों का समर्थन नहीं कर रहे. सिख्स ऑफ अमेरिका के संस्थापक जसदीप सिंह जेसी ने इन प्रदर्शनों की निंदा की और कार्नी के निमंत्रण को ‘अंतरराष्ट्रीय एकता की दिशा में सकारात्मक कदम’ बताया. दमदमी टक्साल के प्रवक्ता सरचंद सिंह ख्याला ने भी खालिस्तानी समूहों पर ‘भारत के खिलाफ जहर उगलने’ का आरोप लगाया. यह दर्शाता है कि कनाडा में सिख समुदाय के बीच भी इस मुद्दे पर मतभेद हैं.