Iran-Israel War: ईरान ने बंद किया होर्मुज स्ट्रेट तो क्या होगा? जानें भारत पर इसका कितना पड़ेगा असर

Iran-Israel War: ईरान-इजराइल युद्ध के बीच होर्मुज स्ट्रेट को लेकर काफी चर्चा हो रही है. इस चर्चा का कारण यह है कि ये दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण तेल शिपिंग मार्ग है.
Strait of Hormuz

होर्मुज स्ट्रेट

Iran-Israel War: होर्मुज स्ट्रेट जिसे होर्मुज जलडमरूमध्य भी कहते हैं. यह फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है. ईरान-इजराइल युद्ध के बीच होर्मुज स्ट्रेट को लेकर काफी चर्चा हो रही है. इस चर्चा का कारण यह है कि ये दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण तेल शिपिंग मार्ग है. यह लगभग 161 किलोमीटर लंबा और अपने सबसे संकरे हिस्से में 33 किलोमीटर चौड़ा है, जिसमें दोनों दिशाओं में केवल 3 किलोमीटर चौड़ी शिपिंग लेन हैं. वैश्विक तेल आपूर्ति का लगभग 20-26% और तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) का 25-30% इसी मार्ग से होकर गुजरता है. इस रास्ते का सबसे ज्यादा इस्तेमाल सऊदी अरब, इराक, यूएई, कुवैत, और कतर जैसे प्रमुख तेल उत्पादक देश करते हैं.

इस जलमार्ग को वैश्विक ऊर्जा बाजार की रीढ़ माना जाता है. इसके बंद होने से तेल और गैस की आपूर्ति में रुकावट, कीमतों में उछाल और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है.

ईरान ने क्यों ले सकता है ये फैसला?

ईरान और इजरायल के बीच चल रहे युद्ध, जिसमें अमेरिका भी उतरा पड़ा है. अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों (फोर्डो, नतांज, और इस्फहान) पर हवाई हमले किए. इन हमलों ने मध्य-पूर्व (Middle East) में स्थिति को और जटिल कर दिया है. 22 जून को ईरानी संसद ने होर्मुज स्ट्रेट को बंद करने का प्रस्ताव पारित कर दिया है. जिसका अंतिम फैसला ईरान की सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल और सुप्रीम लीडर आयतुल्ला खामेनेई के पास है. यह कदम अमेरिका और इजरायल के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है.

बता दें कि ईरान ने पहले भी कई बार होर्मुज को बंद करने की धमकी दी थी. लेकिन इस बार युद्ध और संसद के प्रस्ताव ने इसकी संभावना को बढ़ा दिया है. ईरानी सांसद और रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कमांडर इस्माइल कोसारी ने कहा कि यह कदम ‘जरूरत पड़ने पर’ लागू किया जाएगा.

भारत पर इसका असर

भारत अपनी तेल जरूरतों का लगभग 85-90% आयात करता है. इसमें से 40% से अधिक मिडिल ईस्ट (इराक, सऊदी अरब, यूएई, कुवैत) से आता है. जो होर्मुज स्ट्रेट से होकर गुजरता है. भारत प्रतिदिन 5.5-5.6 मिलियन बैरल कच्चा तेल आयात करता है. जिसमें से 1.5-2 मिलियन बैरल इस मार्ग से आता है. अब अगर ईरान इस स्ट्रेट को बंद करता है, तो तेल की आपूर्ति में तत्काल रुकावट और कीमतों में उछाल तो जरूर आएंगे.

हालांकि भारत सरकार का कहना है कि स्थिति इतनी चिंताजनक नहीं है. केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने आश्वासन दिया है कि भारत ने पिछले कुछ सालों में अपने तेल आपूर्ति में काफी विविधता लाया है. भारत अब 40 देशों से तेल का आयात करता है, जो पहले केवल 27 थे. रूस अब भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है. वह अपने तेल को स्वेज नहर, केप ऑफ गुड होप या प्रशांत महासागर के रास्ते भेजता है.

यह आपूर्ति होर्मुज स्ट्रेट पर निर्भर नहीं हैं. जून 2025 में भारत ने रूस से 21-22 लाख बैरल प्रतिदिन तेल आयात किया, जो मिडिल ईस्ट के कुल आयात को पार करता है. इसके अलावा, अमेरिका, ब्राजील, नाइजीरिया और अंगोला जैसे देशों से भी आयात बढ़ाकर भारत इस कमी को पूरा कर सकता है. भले ही यह थोड़ा महंगा पड़े.

आर्थिक प्रभाव

तेल की कीमतों में वृद्धि: अगर होर्मुज बंद होता है, तो तेल की कीमतें 100-150 डॉलर प्रति बैरल या उससे अधिक तक पहुंच सकती हैं. गोल्डमैन सैक्स और जेपी मॉर्गन ने चेतावनी दी है कि कीमतें 1970 के तेल संकट से तीन गुना बड़ा झटका दे सकती हैं. भारत में पेट्रोल, डीजल, और LPG की कीमतें आसमान छू सकती हैं.

महंगाई और चालू खाता घाटा: हर 10 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी से भारत का चालू खाता घाटा (CAD) 0.55% GDP तक बढ़ सकता है और CPI महंगाई में 0.3% की वृद्धि हो सकती है. इससे परिवहन, खाद्य पदार्थ, और मैन्युफैक्चरिंग की लागत बढ़ेगी, जो आम आदमी की जेब पर असर डालेगी.

आपूर्ति श्रृंखला में रुकावट: तेल और LNG की आपूर्ति में देरी से भारत की ऊर्जा सुरक्षा प्रभावित हो सकती है, जिसका असर उद्योगों और बिजली उत्पादन पर पड़ेगा.

भारत की तैयारी

रणनीतिक भंडार: केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि भारत ने तेल आपूर्ति के स्रोतों में विविधता लाई है. रूस, अमेरिका, ब्राजील, नाइजीरिया, और अंगोला से आयात बढ़ाया गया है, जो होर्मुज पर निर्भर नहीं हैं. भारत के पास 74 दिनों का तेल भंडार और 9.5 दिनों का स्ट्रैटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व है. तेल विपणन कंपनियों के पास 3-4 सप्ताह का स्टॉक है.

वैकल्पिक मार्ग: रूस से तेल स्वेज नहर, केप ऑफ गुड होप, या प्रशांत महासागर के रास्ते आता है, जो होर्मुज से प्रभावित नहीं होगा.

उत्पाद शुल्क में राहत: अगर तेल की कीमतें 105 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जाती हैं, तो सरकार ईंधन पर उत्पाद शुल्क की समीक्षा कर सकती है ताकि जनता को राहत मिले.

वैश्विक प्रभाव

तेल आपूर्ति में कमी: होर्मुज से प्रतिदिन 20-21 मिलियन बैरल तेल और LNG की खेप गुजरती है. इसके बंद होने से वैश्विक तेल आपूर्ति का 20-26% हिस्सा प्रभावित होगा, जिससे कीमतें और शिपिंग लागत बढ़ेगी.

खाड़ी देशों पर असर: सऊदी अरब, यूएई, कुवैत, और कतर जैसे देश, जो तेल निर्यात के लिए होर्मुज पर निर्भर हैं, को आर्थिक नुकसान होगा.

अमेरिका और यूरोप: हालांकि अमेरिका और यूरोप के पास वैकल्पिक स्रोत हैं, लेकिन बढ़ती कीमतें और बीमा लागत उनकी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेंगी.

एशियाई देश: चीन और भारत, जो इस मार्ग से 44% तेल आयात करते हैं, सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे.

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क्या होर्मुज पूरी तरह बंद हो सकता है?

विशेषज्ञों का मानना है कि होर्मुज को पूरी तरह बंद करना व्यावहारिक रूप से मुश्किल है. ईरान इस मार्ग को वाणिज्यिक शिपिंग के लिए खतरनाक बना सकता है, जैसे जहाजों पर हमले या माइन बिछाकर. हालांकि, ऐसा करने से ईरान के अपने तेल निर्यात (विशेषकर चीन को) पर भी असर पड़ेगा, जो वह नहीं चाहेगा.

अमेरिकी हस्तक्षेप: अमेरिका का पांचवां बेड़ा बहरीन में तैनात है और वह होर्मुज को खुला रखने के लिए सैन्य कार्रवाई कर सकता है.

ईरान की रणनीति: ईरान इस कदम को भू-राजनीतिक दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन लंबे समय तक बंदी उसके हित में नहीं होगी.

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