Kargil Vijay Diwas: दुश्मनों ने मारी 17 गोलियां, फिर भी Yogendra Singh Yadav ने नहीं हारी हिम्मत, टाइगर हिल पर फहराया था तिरंगा
परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र सिंह यादव
Kargil Vijay Diwas: 26 जुलाई को भारत हर साल कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) मनाता है, जो 1999 में कारगिल युद्ध (Kargil Yudh) में भारतीय सेना की वीरता और बलिदान को याद करने का दिन है. इस युद्ध में टाइगर हिल की विजय एक ऐतिहासिक मील का पत्थर रही और इस जीत के पीछे एक युवा सैनिक की अनुकरणीय वीरता की कहानी है- सूबेदार मेजर (मानद कैप्टन) योगेंद्र सिंह यादव.
मात्र 18 साल की उम्र में, योगेंद्र सिंह यादव ने ऐसी वीरता दिखाई कि उनका नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया. जिनकी कहानी हर उस भारतीय को प्रेरित करती है जो देश के लिए मर-मिटने को तैयार है.
एक असंभव मिशन
3-4 जुलाई 1999 की रात, योगेंद्र सिंह यादव को 18 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट की ‘घातक प्लाटून’ के साथ टाइगर हिल पर तीन महत्वपूर्ण पाकिस्तानी बंकरों पर कब्जा करने का जिम्मा सौंपा गया. यह चोटी 16,500 फीट की ऊंचाई पर थी, जहां 90 डिग्री की खड़ी चट्टान पर चढ़ना और -20 डिग्री के तापमान में दुश्मन की भारी गोलाबारी का सामना करना था. योगेंद्र अपनी टीम के साथ सबसे आगे थे. जैसे ही वे चढ़ाई कर रहे थे, पाकिस्तानी सैनिकों ने रॉकेट और गोलियों की बौछार शुरू कर दी. इस हमले में उनकी टीम के कई जवान शहीद हो गए और योगेंद्र को 17 गोलियां और ग्रेनेड के छर्रे लगे.
17 गोलियों के बाद भी अडिग हौसला
17 गोलियां लगने के बावजूद, योगेंद्र ने हार नहीं मानी. उनके हाथ, पैर और सीने में गंभीर चोटें थीं, फिर भी वे रेंगते हुए पहले बंकर तक पहुंचे. उन्होंने एक ग्रेनेड फेंककर तीन पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया और अपनी टीम के लिए रास्ता साफ किया. इसके बाद, उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर दूसरे बंकर पर हमला किया और कई दुश्मन सैनिकों को ढेर कर दिया. उनकी इस वीरता ने भारतीय सेना को टाइगर हिल पर कब्जा करने में निर्णायक भूमिका निभाई.
मिशन पूरा करने की जिद
गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी, योगेंद्र का एकमात्र लक्ष्य था- दुश्मन की स्थिति की जानकारी अपनी सेना तक पहुंचाना. वे एक नाले में लुढ़क गए और बहते हुए नीचे पहुंचे, जहां भारतीय सैनिकों ने उन्हें बचाया और अस्पताल पहुंचाया. उनकी दी गई जानकारी के आधार पर भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर 4 जुलाई 1999 को तिरंगा फहराया. इस अभूतपूर्व साहस के लिए योगेंद्र सिंह यादव को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है. वे इस सम्मान को पाने वाले सबसे कम उम्र के जीवित सैनिक हैं.
योगेंद्र सिंह यादव – एक प्रेरणा
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के औरंगाबाद अहीर गांव में 10 मई 1980 को जन्मे योगेंद्र सिंह यादव एक सैनिक परिवार से हैं. उनके पिता भी भारतीय सेना में थे, जिससे उन्हें बचपन से ही देशसेवा की प्रेरणा मिली. 16 साल की उम्र में सेना में भर्ती होने वाले योगेंद्र ने 18 साल की उम्र में कारगिल युद्ध में हिस्सा लिया. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा- ‘एक सैनिक निस्वार्थ प्रेमी की तरह होता है. देश के लिए कुछ भी कर गुजरने का जज्बा ही हमें जीवित रखता है.’
कारगिल विजय दिवस का महत्व
कारगिल युद्ध में 527 भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी और लगभग 1400 घायल हुए. टाइगर हिल की विजय 4 जुलाई को हासिल हुई थी, लेकिन पूरे कारगिल क्षेत्र से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने में 26 जुलाई तक का समय लगा. इसलिए, 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो भारतीय सेना के शौर्य और बलिदान का प्रतीक है.