23 जून विमान हादसे ने बदल दिये थे देश की राजनीति के समीकरण… विस्तार से जानिए संजय गांधी की कहानी

उड़ान भरने के केवल 12 मिनट बाद ही ये विमान हादसे का शिकार हो गया. जानकारी मिली कि विमान के उड़ान भरते ही उसका इंजन खराब हो गया, जिस वजह से हवा में गोते खाता हुआ विमान दिल्ली स्थित अशोक होटल के पीछे जमीन पर जा गिरा.
Sanjay Gandhi

संजय गांधी

Sanjay Gandhi: विश्व इतिहास में कुछ ऐसी घटनाएं दर्ज हैं, जिन्होंने कई बार हवाओं के रूख मोड़ दिए. 23 जून 1980 की एक घटना भारत के इतिहास की ऐसी घटना है, जिसने देश की राजनीति के सारे समीकरण बदल दिए. इस दिन हुए एक विमान हादसे में देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी का निधन हो गया. संजय गांधी को इंदिरा गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जाता था. लेकिन उनके निधन से देश की सियासत पूरी तरह बदल गई.

विमान दुर्घटना का शिकार हुए संजय गांधी

23 जून 1980 को एक विमान ने दिल्ली के सफदरजंग एयरपोर्ट से उड़ान भरी. उड़ान भरने के केवल 12 मिनट बाद ही ये विमान हादसे का शिकार हो गया. जानकारी मिली कि विमान के उड़ान भरते ही उसका इंजन खराब हो गया, जिस वजह से हवा में गोते खाता हुआ विमान दिल्ली स्थित अशोक होटल के पीछे जमीन पर जा गिरा. इसी विमान में सवार थे देश के उभरते नेता संजय गांधी. आज संजय गांधी की 45वीं पुण्यतिथि है. संजय गांधी का पोस्टमार्टम राम मनोहर लोहिया अस्पताल में हुआ और अगले दिन उनका अंतिम संस्कार किया गया. अपनी मौत से पांच महीने पहले ही संजय गांधी सांसद बने थे. संजय गांधी के साथ उस विमान में दिल्ली फ़्लाइंग क्लब के चीफ फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर सुभाष सक्सेना भी मौजूद थे. हादसे में उनकी भी जान चली गई.

संजय गांधी को इतिहास ऐसे करता है याद

संजय गांधी को इतिहास कई तरह से याद करता है. संजय गांधी को गैरजिम्मेदार और लापरवाह कहा जाता था. संजय गांधी बेहद जिद्दी थे, अपनी धुन के पक्के, जो चाहते वो कर के रहते थे. उन्होंने अपनी मां की सत्ता का इस्तेमाल अपने शौक पूरे करने के लिए किया. संजय गांधी का पढ़ने में कभी मन नहीं लगा. यही कारण था कि यूके के ऑटोमोबाइल कंपनी में इंटर्नशिप करने गए तो दूसरे साल ही वापस आ गए. संजय ने भारत में स्वनिर्मित कार पर काम शुरू कर दिया, जिसकी कोशिशें लगातार फेल होती रहीं. कहते हैं कि आपातकाल के लिए इंदिरा गांधी जिम्मेदार थीं, लेकिन उनके पीछे संजय गांधी का दिमाग था. मेनका गांधी से उनकी शादी भी उनकी मर्जी से हुई थी. जब संजय गांधी की मुलाकात मेनका से हुई, तब वो एक मॉडल थीं. इंदिरा गांधी को मेनका पसंद नहीं थीं, लेकिन संजय गांधी की जिद के आगे उन्होंने कुछ नहीं कहा. 13 सितंबर 1974 को संजय गांधी की शादी मेनका आनंद से हो गई.

संजय गांधी बढ़ती जनसंख्या को देश के लिए सबसे बड़ी परेशानी का कारण मानते थे. नतीजन उन्होंने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सख्ती से नसबंदी अभियान चलाने के निर्देश दिए. उस वक्त देश में ऐसी अफरा-तफरी मची थी कि सारे राज्य के अधिकारी लोगों पर जबरदस्ती दबाव डालकर उनकी नसंबदी करा रहे थे. संजय गांधी ने तो सभी अधिकारियों को टारगेट तक दे दिया था. हालांकि बाद में इंदिरा गांधी तक ये बात पहुंची कि देशभर के गांव की स्थिति बेहद खराब होती जा रही है, तो उन्होंने तत्काल नसबंदी पर रोक लगा दी.

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संजय गांधी की जिद बनी मौत का कारण

जैसा कि पहले भी जानकारी दी गई कि संजय गांधी बेहद जिद्दी थे. उनका एक और शौक था, प्लेन उड़ाने का शौक. 23 जून 1980 का दिन भी एक सामान्य दिन की तरह ही था. पिट्स एस 2 ए, एक नया विमान आया था, जिसे देखकर संजय का मन एक बार फिर हवा से बातें करने का हुआ. संजय गांधी कोल्हापुरी चप्पल पहनकर ही प्लेन उड़ा लिया करते थे. रोक-टोक तो उन्हें पहले से ही पसंद नहीं थी, उनके बड़े भाई राजीव गांधी ने मना किया कि आपका अनुभव इस विमान के लिए बहद कम है लेकिन संजय नहीं मानें. उन्हें लगा ये दिन भी बाकि दिनों की तरह ही सामान्य है, लेकिन काल को कुछ और ही मंजूर था. जैसे ही संजय ने हवा में प्लेन उड़ाया, कुछ ही मिनटों बाद उनका नियंत्रण छूट गया और विमान सीधा जमीन पर आ गिरा. इस हादसे में मौके पर ही संजय गांधी की मौत हो गई. तब तक संजय देश के लिए बहुत बड़े बन चुके थे, क्योंकि उनकी अंतिम यात्रा में लगभग सभी प्रांत के मुख्यमंत्री शामिल हुए थे. इंदिरा गांधी पर दुखों का पहाड़ टूटा था, लेकिन वे रुकी नहीं.

कहां है संजय गांधी का परिवार?

जब संजय गांधी की मौत हुई, तब उनके बेटे वरुण केवल 3 महीने के थे. उनकी मौत मां इंदिरा गांधी के लिए जितनी दुखद थी, उतनी ही पत्नी मेनका गांधी के लिए भी. लेकिन संजय की मौत के बाद महज 23 साल की उम्र में ही इंदिरा गांधी ने मेनका गांधी को घर से निकाल दिया. उनपर पार्टी के खिलाफ गतिविधियों में शामिल होने के आरोप लगे थे. उनकी पत्नी मेनका गांधी और बेटे वरुण गांधी पार्टी में पूरी तरह अलग-थलग हो गए. साल 1984 में मेनका गांदी ने अपनी अलग पार्टी बनाई और राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव भी लड़ा. हार के बाद अपनी पार्टी का विलय जनता पार्टी में कर लिया. 1989 में वो पहली बार जनता पार्टी की ओर से लोकसभा की सदस्य और केंद्रीय मंत्री बनीं. अभी मेनका गांधी यूपी के सुल्तानपुर से लोकसभा सदस्य हैं. और उनके बेटे वरुण गांधी को 2019 में बीजेपी ने पीलीभीत से टिकट दिया था, जिसमें उनकी जीत हुई और वे सांसद बनें. साल 2025 के लोकसभा चुनाव में वरुण को बीजेपी ने टिकट नहीं दिया, जिससे वरुण की नीराजगी भी सामने आई, और अब वरुण गांधी के कांग्रेस में जाने की अटकलें लग रही हैं.

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