Supreme Court: महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान आरक्षण व्यवस्था को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “यह एक ऐसा खेल है, जिसमें पहले से फायदा ले चुके लोग दूसरों को मौका नहीं देना चाहते. यह मामला अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को स्थानीय निकाय चुनावों में दिए गए आरक्षण से जुड़ा है, जिस पर याचिकाकर्ता ने सवाल उठाए हैं. आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं.
महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी समुदाय के लिए आरक्षण लागू करने का फैसला लिया गया था. यह आरक्षण ‘बांठिया आयोग’ की सिफारिशों के आधार पर दिया गया. लेकिन कुछ याचिकाकर्ताओं ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. उनका कहना था कि ओबीसी को आरक्षण देने से पहले यह नहीं जांचा गया कि क्या वे वाकई राजनीतिक रूप से पिछड़े हैं. इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच में हुई, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह शामिल थे.
रेलवे की बोगी जैसा आरक्षण का हाल- सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने आरक्षण व्यवस्था पर तंज कसते हुए कहा, “इस देश में आरक्षण का धंधा रेलवे की तरह हो गया है. जो लोग पहले से बोगी में घुस चुके हैं, वे नहीं चाहते कि कोई और उसमें आए. यही पूरा खेल है. पीछे और बोगियां जोड़ी जा रही हैं, लेकिन पहले वाले नहीं चाहते कि कोई नया घुसे.” सुप्रीम कोर्ट ने यह भी इशारा किया कि याचिकाकर्ता भी इसी तरह का ‘खेल’ खेल रहे हैं, यानी वे मौजूदा आरक्षण व्यवस्था को बनाए रखना चाहते हैं और नए समूहों को शामिल होने से रोकना चाहते हैं.
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ओबीसी आरक्षण पर सवाल
याचिका दायर करने वाले पक्ष की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायण ने कोर्ट में दलील दी. उनका कहना था कि ‘बांठिया आयोग’ ने महाराष्ट्र में ओबीसी को स्थानीय निकाय चुनावों में आरक्षण दे दिया, लेकिन इसके लिए जरूरी शर्तें पूरी नहीं की गईं. मुख्य रूप से आयोग ने यह नहीं जांचा कि ओबीसी समुदाय राजनीतिक रूप से पिछड़ा है या नहीं.
शंकरनारायण ने तर्क दिया कि राजनीतिक पिछड़ापन सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन से अलग है. सिर्फ इसलिए कि कोई समुदाय सामाजिक या शैक्षिक रूप से पिछड़ा है, उसे अपने आप राजनीतिक रूप से पिछड़ा नहीं माना जा सकता. स्थानीय निकाय चुनावों में आरक्षण देने के लिए यह जरूरी है कि समुदाय का राजनीतिक प्रतिनिधित्व अपर्याप्त हो. उन्होंने कहा कि ‘बांठिया आयोग’ ने बिना इस पहलू की जांच किए ओबीसी को आरक्षण दे दिया, जो गलत है.
इसके अलावा, उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि आरक्षण का फायदा बार-बार कुछ खास परिवारों या समूहों तक ही क्यों सीमित रहता है? उनका कहना था कि अगर समावेशिता (इन्क्लूसिविटी) का सिद्धांत लागू करना है, तो सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से पिछड़े सभी वर्गों को इसका लाभ मिलना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट में और क्या हुआ?
सुनवाई के दौरान गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि अगर सरकार सभी को समान अवसर देना चाहती है, तो उसे ज्यादा से ज्यादा वर्गों को आरक्षण के दायरे में लाना होगा. उन्होंने सवाल उठाया कि सामाजिक रूप से पिछड़े, राजनीतिक रूप से पिछड़े और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को लाभ से वंचित क्यों रखा जाए?
आरक्षण की जरूरत
भारत में आरक्षण व्यवस्था दशकों से सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाने का एक महत्वपूर्ण साधन रही है. संविधान के तहत अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को शिक्षा, नौकरी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में आरक्षण दिया जाता है. हाल के वर्षों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था शुरू की गई है.
हालांकि, आरक्षण को लेकर कई बार विवाद भी उठते हैं. कुछ लोगों का मानना है कि यह व्यवस्था अब कुछ खास समूहों के लिए ‘विशेषाधिकार’ बन गई है, जबकि जरूरतमंद वर्गों तक इसका लाभ नहीं पहुंच रहा.
