राशिद अल्वी के तंज ने खोली कांग्रेस की अंदरूनी जंग की परतें; कर्नाटक में सिद्धारमैया बनाम डीके शिवकुमार टकराव पर बढ़ी नजरें
राशिद अल्वी, डीके शिवकुमार और सिद्धरमैया
Rashid Alvi: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राशिद अल्वी ने पार्टी की मौजूदा नेतृत्व शैली पर गंभीर सवाल उठा दिए हैं. अल्वी ने जो सवाल उठाए हैं, उसने न सिर्फ पार्टी की दिशा को लेकर नई बहस छेड़ी है, बल्कि कर्नाटक कांग्रेस के भीतर गहराते सत्ता संघर्ष को भी एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है. अल्वी ने राहुल गांधी की निर्णय क्षमता पर कटाक्ष करते हुए कहा, “नेतृत्व को राज्य में अपने नेताओं को प्रशिक्षित करने और सही ढंग से संभालने की जरूरत है, वरना स्थितियां नियंत्रण से बाहर होने लगती हैं.” उन्होंने उदाहरण के तौर पर राजस्थान में वसुंधरा राजे का हवाला देकर कहा कि मजबूत नेतृत्व वही है, जो भीतर के घात-प्रतिघात को पनपने नहीं देता. अल्वी का यह बयान ऐसे समय आया है जब कर्नाटक सरकार के भीतर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच खींचतान खुलकर सामने आ चुकी है.
कर्नाटक में दो ध्रुव—एक सरकार, दो कमांडर
कर्नाटक में कांग्रेस की शानदार जीत के बाद पार्टी ने दो साल सिद्धारमैया, दो साल डीके शिवकुमार का फॉर्मूला अपनाकर मामला ठंडा करने की कोशिश की थी. लेकिन अब यह समझौता धीरे-धीरे टकसाल के सिक्के की तरह घिसता दिखाई दे रहा है. डीके शिवकुमार खुद को राज्य में कांग्रेस की पुनर्स्थापना का चेहरा मानते हैं. सिद्धारमैया अपनी जनाधार आधारित राजनीति और प्रशासनिक अनुभव का झंडा उठाए हुए हैं. दोनों के समर्थक इन दिनों लगातार शक्ति-प्रदर्शन कर रहे हैं. कैबिनेट के फैसलों से लेकर बजट आवंटन तक हर मुद्दा सूक्ष्म स्तर पर खींचतान की तरफ संकेत करता है.
रणनीति फेल या नेतृत्व कमजोर?
राशिद अल्वी का बयान सीधे-सीधे कांग्रेस नेतृत्व पर उंगली उठाता है. वे कहते हैं कि अगर हाईकमान नेताओं को संभाल नहीं पाता, तो पार्टी राज्यों में कमजोर होती है और विपक्ष को मौका मिलता है. यह टिप्पणी कर्नाटक, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसी परिस्थितियों पर भी लागू होती प्रतीत होती है जहां कांग्रेस नेतृत्व की ढीली पकड़ अक्सर सुर्खियों में रही. कर्नाटक में भी यही स्थिति है, जहां हाईकमान द्वारा सुलझाया गया फॉर्मूला अब दरकने लगा है. नतीजा, केंद्र की राजनीति में कांग्रेस को आक्रामक विपक्ष बनने में कठिनाई, राज्यों में नेतृत्व संकट और जमीनी स्तर पर संगठन कमजोर पड़ता दिख रहा है.
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कांग्रेस की रणनीतिक भूलें खुले मंच पर
पार्टी के भीतर अब यह चर्चा तेज हो गई है कि कांग्रेस बिना स्थिर नेतृत्व मॉडल के राज्यों में सरकार तो बना लेती है, लेकिन उसे बनाए रखने में जूझ जाती है. कर्नाटक इसका नवीनतम उदाहरण है. सिद्धारमैया और शिवकुमार दोनों ही भारी जनाधार वाले नेता हैं, पर दोनों की महत्वाकांक्षा टकराव को और तेज कर रही है. कांग्रेस हाईकमान की भूमिका अब मध्यस्थ से अधिक मूक दर्शक जैसी मालूम पड़ने लगी है.
कुल मिलाकर राशिद अल्वी का यह बयान भले ही एक टिप्पणी लगे, लेकिन यह दरअसल चेतावनी है. यदि नेतृत्व सतर्क नहीं हुआ तो कर्नाटक सरकार की स्थिरता पर भी सवाल उठ सकते हैं और कांग्रेस जिस “दक्षिण मॉडल” का दावा कर रही थी, वह भी कमजोर पड़ सकता है.