‘तेज प्रताप मामले में RLJP ने अनुष्का के भाई आकाश यादव को पार्टी से निकाला, कौन सी खिचड़ी पका रहे हैं पशुपति पारस?’
पशुपति कुमार पारस ने आकाश यादव को पार्टी से निष्कासित किया
Akash Yadav: बिहार की सियासत में तेज प्रताप यादव और अनुष्का यादव के प्रेम प्रसंग ने नया तूफान खड़ा कर दिया है. इस मामले की आंच अब राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) तक पहुंच गई है, जहां पार्टी अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस ने अनुष्का यादव के भाई आकाश यादव को 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया है.
यह कदम न केवल तेज प्रताप विवाद से जोड़ा जा रहा है, बल्कि इसे बिहार विधानसभा चुनाव से पहले पशुपति पारस की रणनीतिक चाल के रूप में भी देखा जा रहा है. आखिर पशुपति पारस कौन सी खिचड़ी पका रहे हैं? आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं.
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— Vistaar News (@VistaarNews) May 29, 2025
तेज प्रताप और अनुष्का का विवाद
24 मई 2025 को तेज प्रताप यादव ने अपने फेसबुक अकाउंट पर अनुष्का यादव के साथ एक तस्वीर पोस्ट कर 12 साल पुराने प्रेम संबंध का खुलासा किया. इस तस्वीर में अनुष्का के साथ तेज प्रताप दिखे. इसके बाद सोशल मीडिया पर इन दोनों की कई तस्वीरें सामने आईं. जिससे यह अटकलें तेज हो गईं कि दोनों ने शादी कर ली है. हालांकि, तेज प्रताप ने बाद में दावा किया कि उनका अकाउंट हैक हो गया था और ये पोस्ट उन्होंने नहीं की. इस विवाद ने लालू प्रसाद यादव के परिवार और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) में हलचल मचा दी. लालू ने तुरंत कार्रवाई करते हुए तेज प्रताप को 6 साल के लिए पार्टी और परिवार से बेदखल कर दिया.
इसके बाद अनुष्का यादव के भाई आकाश यादव ने मीडिया में तेज प्रताप और अपनी बहन के समर्थन में बयान दिए. आकाश ने लालू परिवार पर निशाना साधते हुए कहा कि तेज प्रताप को इस तरह सजा देना गलत है और यह दो परिवारों की इज्जत का मामला है. उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अगर तेज प्रताप अपने वादों से मुकरते हैं, तो यह लालू परिवार के लिए अच्छा नहीं होगा.
RLJP ने लिया आकाश यादव के खिलाफ एक्शन
आकाश यादव, जो RLJP की युवा इकाई (छात्र प्रकोष्ठ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, उन्हें 29 मई को पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया गया. RLJP के राष्ट्रीय महासचिव एलविस जोसेफ ने बताया कि यह फैसला पार्टी अध्यक्ष पशुपति पारस के निर्देश पर लिया गया है. आकाश के बयानों को पार्टी ने अनुशासनहीनता माना, खासकर क्योंकि वह तेज प्रताप और अनुष्का के समर्थन में खुलकर बोल रहे थे.
पार्टी ने आकाश को तत्काल प्रभाव से सभी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया. अब पशुपति पारस के इस कदम को तेज प्रताप विवाद से जोड़कर देखा जा रहा है, लेकिन इसके पीछे पशुपति पारस की रणनीति को समझने के लिए बिहार की सियासी पृष्ठभूमि को भी देखना जरूरी है.
पशुपति पका रहे राजनीतिक खिचड़ी!
पशुपति पारस का यह कदम केवल आकाश यादव के बयानों तक सीमित नहीं है. यह बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले उनकी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. इसमें NDA से नाखुश पारस का महागठबंध की ओर झुकाव को और बढ़ावा दे रहा है.
लालू यादव और महागठबंधन से नजदीकी
पशुपति पारस का RLJP पहले NDA का हिस्सा था, लेकिन अप्रैल 2025 में उन्होंने NDA से नाता तोड़ दिया. इसके बाद से पारस और लालू यादव के बीच नजदीकियां बढ़ी हैं. जनवरी 2025 में पशुपति ने लालू से तीन बार मुलाकात की, और लालू उनके दही-चूड़ा भोज में भी शामिल हुए थे.
पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि आकाश यादव को निष्कासित कर पशुपति पारस ने लालू यादव को यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह RJD और महागठबंधन के साथ अपनी सियासी दोस्ती को मजबूत करना चाहते हैं. यह कदम लालू की ‘गुड बुक’ में जगह बनाने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है.
तेज प्रताप विवाद से दूरी
इधर, तेज प्रताप का मामला RJD के लिए संवेदनशील है, और इसका असर आगामी विधानसभा चुनाव में पड़ सकता है. पशुपति पारस नहीं चाहते कि उनकी पार्टी इस विवाद में उलझे. आकाश यादव के बयानों ने RLJP को इस विवाद से जोड़ दिया था, जिसे पारस ने तुरंत काटने की कोशिश की.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि पारस ने यह स्पष्ट करने की कोशिश की है कि उनकी पार्टी लालू परिवार के आंतरिक झगड़ों में नहीं फंसना चाहती, खासकर जब वह महागठबंधन के साथ गठजोड़ की संभावनाएं तलाश रहे हैं.
RLJP की नई रणनीति और युवा नेतृत्व
आकाश यादव को निष्कासित करने के बाद RLJP ने संकेत दिए हैं कि वह जल्द ही युवा मोर्चा के लिए नए अध्यक्ष की घोषणा करेगा. यह कदम पार्टी के भीतर नए चेहरों को मौका देने और पुराने विवादों से मुक्त होने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है. पारस की पार्टी पहले से ही NDA से अलग होने के बाद कमजोर स्थिति में है. ऐसे में वह नई रणनीति के तहत अपनी पार्टी को मजबूत करने और बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर प्रभावी उपस्थिति दर्ज करने की तैयारी में हैं.
आकाश ने तेजस्वी यादव पर साधा था निशाना
आकाश यादव ने अपने बयानों में तेजस्वी यादव पर निशाना साधते हुए कहा था कि अगर तेज प्रताप को अलग-थलग किया गया, तो तेजस्वी का मुख्यमंत्री बनने का सपना अधूरा रह जाएगा. इस बयान ने RJD के भीतर तेजस्वी की स्थिति को कमजोर करने की कोशिश की, जो पारस के लिए एक अवसर हो सकता है. पारस शायद तेजस्वी की कमजोर स्थिति का फायदा उठाकर महागठबंधन में अपनी पार्टी की स्थिति को मजबूत करने की कोशिश कर सकते हैं.
आकाश यादव और तेज प्रताप से रिश्ता
आकाश यादव पहले RJD की छात्र इकाई के प्रदेश अध्यक्ष थे और तेज प्रताप के सबसे करीबी माने जाते थे. 2021 में जब उन्हें RJD से हटाया गया, तो तेज प्रताप ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. इसके बाद आकाश ने पशुपति पारस की RLJP जॉइन की और वहां युवा इकाई के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने.
आकाश की बहन अनुष्का यादव के साथ तेज प्रताप के रिश्ते ने इस पूरे मामले को और पेंचीदा बना दिया है. आकाश ने अपनी बहन और तेज प्रताप के समर्थन में खुलकर बयान दिए, जिससे RLJP के लिए स्थिति असहज हो गई.
बिहार विधानसभा चुनाव पर असर
बिहार में विधानसभा चुनाव कुछ महीनों में होने वाला है. इस समय लालू परिवार में मची उथल-पुथल का असर RJD और महागठबंधन की रणनीति पर पड़ सकता है. पशुपति पारस का यह कदम चुनाव पर काफी प्रभाव डाल सकता है.
RJD की एकता पर सवाल: तेज प्रताप का निष्कासन और आकाश यादव के बयानों ने RJD के भीतर की दरार को उजागर किया है. तेजस्वी यादव ने अपने भाई से दूरी बनाकर पिता लालू के फैसले का समर्थन किया है, लेकिन यह पार्टी की एकजुटता को प्रभावित कर सकता है.
पारस की सियासी चाल: पशुपति पारस का आकाश को निष्कासित करना महागठबंधन के साथ गठजोड़ को मजबूत करने की दिशा में एक कदम है. वह नहीं चाहते कि उनकी पार्टी तेज प्रताप जैसे विवादों में उलझे, जिससे उनकी साख पर सवाल उठे.
विपक्ष को मौका: JDU और BJP ने इस मामले को लालू परिवार की परवरिश पर सवाल उठाने के लिए इस्तेमाल किया है. यह विवाद विपक्ष को RJD के खिलाफ नैरेटिव बनाने का मौका दे सकता है.
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महागठबंधन स्थिति को मजबूत करने कोशिश
आकाश यादव के निष्कासन और पशुपति पारस की चुनावी रणनीति को देखते हुए पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स मानते हैं कि पशुपति पारस का आकाश यादव को RLJP से निष्कासित करना एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा हो सकता है. यह कदम न केवल तेज प्रताप-अनुष्का विवाद से दूरी बनाने की कोशिश है, बल्कि लालू यादव और महागठबंधन के साथ अपनी स्थिति को मजबूत करने का भी प्रयास है. बिहार विधानसभा चुनाव से पहले पारस की यह चाल उनकी पार्टी को नया रूप देने और सियासी समीकरणों में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने की दिशा में एक कदम है. हालांकि, इस पूरे प्रकरण ने बिहार की सियासत में एक नया भूचाल ला दिया है. जिसका असर आने वाले दिनों में और स्पष्ट होगा.