बांग्लादेश में अमेरिकी फंडिंग बंद होते ही फिर तख्तापलट के संकेत, सैन्य प्रमुख वकार-उज़-ज़मान ने कहा- चेतावनी देता हूं, आगे मत कहना…
वकार-उज़-ज़मान और मोहम्मद युसूफ
Bangladesh: बांग्लादेश में फिर से तख्तापलट की संभावनाएं ज़ोर पकड़ने लगी हैं. सेना प्रमुख जनरल वकार उज़-ज़मान के हालिया बयान ने दुनिया सनसनी फैला दी है. इस्लामिक कट्टरवाद और कथित अमेरिकी फ़ंडिंग के सहारे शेख़ हसीना सरकार को बेदखल कर खुद सत्ता पर क़ाबिज़ होने वाले मोहम्मद युसूफ की चिंताएँ बढ़ने लगी हैं. पहले ही देश की आंतरिक हालात अनेक प्रकार की अस्थिरताओं से घिरे हुए हैं. ऊपर से अमेरिकी फ़ंडिंग भी बंद हो चुकी है. ऐसे में बांग्लादेश की नई सरकार को अपनी सत्ता गँवाने का डर सताने लगा है.
बांग्लादेश के आर्मी चीफ़ जनरल वकार- उज़- जमान ने एक कार्यक्रम के दौरान चेतावनी भरे लहजे में कहा, “मैं देश की स्वतंत्रता और संप्रभुता के लिए संभावित खतरे को देख रहा हूँ. पिछले 7-8 महीनों में मेरे लिए बहुत कुछ हो चुका है. मैं आपको पहले से चेतावनी दे रहा हूं ताकि आप बाद में न कहें कि मैंने आपको नहीं बताया.” जनरल जमान की यह बात संभावित सैन्य हस्तक्षेप और तख्तापलट की ओर इशारा करता है.
गौरतलब है कि जब अगस्त, 2024 में जब शेख़ हसीना ने अप्रत्याशित रूप से विद्रोह के बाद देश छोड़ा, तब उन्हें देश से बाहर भगाने में आर्मी चीफ जमान ने भारत सरकार के साथ बातचीत की थी. उस दौरान भारतीय एयरफ़ोर्स के विमान ने विद्रोहियों के शेख़ हसीना के घर पर पहुँचने से ठीक पहले रेस्क्यू करके भारत पहुँचाया था.
अरबों डॉलर की अमेरिकी फ़ंडिंग बंद
बहरहाल, बांग्लादेश में वर्तमान ताक़तों के पस्त होने का अंदाज़ा उसी वक़्त लगा लिया गया था, जब अमेरिका में डोनल्ड ट्रंप की सरकार बनी थी. ट्रंप अपने चुनाव के दौरान बाइडेन सरकार द्वारा दूसरे देशों में खर्च किए जा रहे पैसों को लेकर लगातार निशाना साधते रहे थे. राष्ट्रपति बनते ही ट्रंप ने बांग्लादेश को दिए जा रहे तमाम फ़ंडिंग पर रोक लगा दी. शेख़ हसीना की सरकार का तख्तापलट होने से ठीक पहले साल 2023 में अमेरिका ने USIAD नीति के तहत बांग्लादेश को तकीरबन 550 मिलियन डॉलर की सहायता राशि दी थी.
हालाँकि, यह बात बांग्लादेश के लोग ही नहीं जानते कि इतनी रक़म का इस्तेमाल कब, कहां और कैसे किया गया. हाल के दिनों में ट्रंप ने एक सार्वजनिक मंच से कहा था कि बाइडेन सरकार के कार्यकाल में बांग्लादेश को चुनाव मुहिम के नाम पर 29 मिलियन डॉलर की रक़म दी गई. हालाँकि, जब उन्होंने इस पर व्यापक जानकारी माँगी तो सिर्फ़ यह बताया गया कि यह रक़म ‘पोलिटिकल लैंडस्केप’ को तैयार करने के लिए दिया गया.
ट्रंप ने अपने बयान में कहा, “बांग्लादेश में राजनीतिक माहौल को मजबूत करने के लिए 29 मिलियन डॉलर एक ऐसी फर्म को दिए गए, जिसके बारे में किसी ने कभी सुना ही नहीं था.” उन्होंने एक दूसरी जनसभा में कहा, “29 मिलियन डॉलर बांग्लादेश के पोलिटिकल लैंडस्केप को मजबूत करने और उनकी मदद करने के लिए जाते हैं ताकि वे बांग्लादेश में कट्टरपंथी वामपंथी कम्युनिस्ट को वोट दे सकें. आपको देखना होगा कि उन्होंने किसका समर्थन किया.” फ़िलहाल, ट्रंप सरकार ने बांग्लादेश के दिए जाने वाले तमाम अमेरिकी फ़ंडिंग पर रोक लगा दी है.
आंतरिक अस्थिरता
अगस्त 2024 में शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद, मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार सत्ता में है. लेकिन इस दौरान कट्टरपंथी ताकतों और प्रगतिशीलों के बीच तनाव बढ़ा है. जनवरी 2025 में खबरें आई थीं कि सेना में प्रो-इस्लामिस्ट अधिकारी, जैसे लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद फैज़ुर रहमान, सत्ता पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर सकते हैं. इसके अलावा क़ानून-व्यवस्था संभालने में भी युनूस सरकार नाकाम रही है. देश के भीतर पुलिस और प्रशासन कमजोर पड़ गए हैं. फ़रवरी माह में ही भीड़ द्वारा बांग्लादेश वायुसेना के हवाई अड्डे पर हमले और सरकारी संपत्तियों को नुकसान जैसी घटनाएं इसकी मिसाल हैं. सरकार के पास इन पर काबू पाने की क्षमता नहीं दिख रही.
ख़ास बात की राजनीतिक गोलबंदी भी कई धुरी पर चल रही है. यूनुस की सरकार को न तो व्यापक जन समर्थन मिला है और न ही यह राजनीतिक दलों को एकजुट कर पाई है. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और जमात-ए-इस्लामी जैसे समूह इसे अस्थायी और कमजोर मानते हैं, जिससे सत्ता के लिए संघर्ष बढ़ गया है.
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आर्थिक संकट
जनवरी 2025 में ट्रंप प्रशासन ने यूएसएआईडी(USAID) सहित बांग्लादेश को दी जाने वाली 550 मिलियन डॉलर की सालाना सहायता और रोहिंग्या संकट के लिए 2.4 बिलियन डॉलर की मानवीय सहायता रोक दी. इससे अर्थव्यवस्था, जो पहले से ही विदेशी मुद्रा भंडार और बढ़ती कीमतों से जूझ रही थी और ज्यादा कमजोर हुई. इसके अलावा देश में पहले से व्याप्त बेरोज़गारी बीते एक साल में और तेज़ी से बढ़ी है. आंदोलन और दंगों के चलते बांग्लादेश के तमाम आर्थिक उपक्रम रसातल में बैठे हैं. ऊपर से कोई विदेशी निवेश भी बड़े स्तर पर नहीं मिला है. ऐसे में महंगाई और बेरोज़गारी के मोर्चे पर भी लगातार असंतोष विद्रोह की चिंगारी को फिर से हवा दे रहा है.