डोनाल्ड ट्रंप ने H1B वीजा के बदले नियम, अब हर साल देने होंगे 88 लाख रुपये, जानिए भारतीयों पर इसका क्या असर होगा

H1B VISA New Rules: H-1B वीजा की शर्तों में बदलाव से सबसे ज्यादा असर भारतीयों पर पड़ेगा. इसे हासिल करने वाले सबसे ज्यादा भारतीय नागरिक हैं. एक ओर अमेरिकी टेक एक्सपर्ट लगभग 1 लाख डॉलर सैलरी लेकर काम करते हैं, वहीं इसी पोस्ट के लिए विदेशी कर्मचारियों को 60 हजार डॉलर ही दिया जाता है
US President Donald Trump has changed the rules for H1B visas, now requiring a fee of Rs 88 lakh

यूएस प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने बदले एच-1बी वीजा के नियम

H1B VISA New Rules: यूएस प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार (19 सितंबर) को बड़ा ऐलान करते हुए H1B VISA की नई शर्तों को लागू कर दिया है. इस वीजा के लिए कंपनियों को मोटी रकम चुकानी होगी, जो 1 लाख डॉलर है. इसे भारतीय रुपयों में बदले तो ये राशि 88 लाख रुपये होगी. वीजा की शर्तों में बदलाव का असर पूरा दुनिया में होगा. वहीं ट्रंप का इस बारे में कहना है कि इससे टेक इंडस्ट्री खुश होगी.

‘दुरुपयोग रोकने के लिए कदम’

अमेरिकी राष्ट्रपति निवास व्हाइट हाउस सेक्रेटरी विल शार्फ ने कहा कि ये वीजा उन लोगों के लिए होना चाहिए जो हाई स्किल्ड हैं, ना उनके लिए जो काम अमेरिकन भी कर सकते हैं. वहीं उन्होंने ये भी कहा कि एच-1बी वीजा की शर्तों में बदलाव से सिस्टम में हो रहे दुरुपयोग को रोकने में मदद मिलेगी.

एच-1बी हासिल करने वाले 71 फीसदी भारतीय

H-1B वीजा की शर्तों में बदलाव से सबसे ज्यादा असर भारतीयों पर पड़ेगा. इसे हासिल करने वाले सबसे ज्यादा भारतीय नागरिक हैं. एक ओर अमेरिकी टेक एक्सपर्ट लगभग 1 लाख डॉलर सैलरी लेकर काम करते हैं, वहीं इसी पोस्ट के लिए विदेशी कर्मचारियों को 60 हजार डॉलर ही दिया जाता है. एक रिपोर्ट के अनुसार एच-1बी वीजाधारकों में 71 फीसदी भारतीय हैं. टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो, HCL जैसी टेक टाइंट्स हर साल हजारों कर्मचारियों को काम के लिए अमेरिका भेजती है. अमेरिका में सबसे ज्यादा H-1B वीजा होल्डर्स कैलिफोर्निया में रहते हैं.

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क्या है H-1B वीजा?

अमेरिका में एच-1बी वीजा की शुरुआत साल 1990 में हुई थी. इसका उद्देश्य हाई स्किल्ड और हाई-एजुकेटेड विदेशी पेशेवरों को काम पर रखा जा सके. जिन सेक्टर्स में अमेरिकी वर्कफोर्स की कमी है. ये व्यक्तिगत वीजा नहीं होता है. इसे कंपनियों के माध्यम से हासिल किया जाता है. कंपनियां अपनी जरुरत के आधार पर अमेरिकी सरकार पर आवेदन करती है. अब तक कंपनियां 215 डॉलर रजिस्ट्रेशन फीस और 780 डॉलर फॉर्म फीस देती हैं, लेकिन शर्तों में बदलाव के बाद कंपनियों को 1 लाख डॉलर देना होगा.

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