शुभांशु शुक्ला को धरती से स्पेस स्टेशन तक पहुंचने में क्यों लगेंगे 28 घंटे? जानें

स्पेस स्टेशन पृथ्वी के चारों ओर लगभग 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से परिक्रमा कर रहा है. इसे पकड़ने के लिए, स्पेस शटल को भी उसी गति और ऊंचाई पर पहुंचना होता है. इस प्रक्रिया को ऑर्बिटल मैकेनिक्स कहा जाता है.
Shubhanshu Shukla

शुभांशू शुक्ला

Axiom 4: स्पेस यात्रा हमेशा से ही मानव जिज्ञासा का केंद्र रही है. जब बात स्पेस स्टेशन तक पहुंचने की आती है, तो यह कई जटिल प्रक्रियाओं का परिणाम होती है. भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने 25 जून को इतिहास रच दिया. वह Axiom-4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए रवाना हो गए हैं. अगर शुभांशु शुक्ला जैसे किसी व्यक्ति को पृथ्वी से ISS या किसी अन्य स्पेस स्टेशन तक पहुंचना हो, तो इसमें 28 घंटे का समय लगना आम बात है. इसके पीछे कई वैज्ञानिक और तकनीकी कारण हैं.

ऑर्बिटल मैकेनिक्स हैं जरूरी

पृथ्वी से सीधे स्पेस स्टेशन तक “सीधी” यात्रा संभव नहीं है, जैसा कि हम आमतौर पर हवाई जहाज में करते हैं. स्पेस स्टेशन पृथ्वी के चारों ओर लगभग 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से परिक्रमा कर रहा है. इसे पकड़ने के लिए, स्पेस शटल को भी उसी गति और ऊंचाई पर पहुंचना होता है. इस प्रक्रिया को ऑर्बिटल मैकेनिक्स कहा जाता है.

रॉकेट लॉन्च का समय बहुत सटीक होता है. इसे एक विशिष्ट “लॉन्च विंडो” के भीतर ही लॉन्च किया जाना चाहिए ताकि स्पेस स्टेशन अपनी परिक्रमा के दौरान सही स्थिति में हो और स्पेस शटल उसे इंटरसेप्ट कर सके. स्पेस शटल को स्पेस स्टेशन के साथ धीरे-धीरे गति और ऊंचाई में तालमेल बिठाना होता है.

कई ऑर्बिट की आवश्यकता

स्पेस शटल को सीधे स्पेस स्टेशन तक नहीं भेजा जाता है. पहले उसे पृथ्वी की निचली ऑर्बिट में प्लेस किया जाता है. इसके बाद, कई घंटों या कभी-कभी दिनों तक, स्पेस शटल अपनी ऑर्बिट में रहता है. शटल को अपनी गति और ऊंचाई को धीरे-धीरे बढ़ाने या घटाने के लिए छोटे-छोटे रॉकेट थ्रस्टर्स का उपयोग करना पड़ता है. इन “बर्न्स” का उपयोग स्टेशन के साथ सटीक मिलान करने के लिए किया जाता है. तब जा कर स्पेस स्टेशन के डॉकिंग पोर्ट तक पहुंचता है.

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सुरक्षा और सिस्टम चेक

स्पेस यात्रियों की सुरक्षा सबसे ऊपर है. 28 घंटे की यात्रा के दौरान कई सुरक्षा प्रोटोकॉल और सिस्टम चेक किए जाते हैं. शटल के सभी सिस्टम – पावर, लाइफ सपोर्ट, प्रोपल्शन, नेविगेशन – की लगातार निगरानी की जाती है. केबिन के अंदर दबाव, तापमान और वायु संरचना को नियंत्रित किया जाता है ताकि स्पेस यात्रियों के लिए सुरक्षित और आरामदायक वातावरण बना रहे.

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