जुलाई–सितंबर तिमाही में GDP का 8.2% का आंकड़ा, जानिए किन कारणों से बढ़ी भारतीय अर्थ व्यवस्था की रफ्तार

भारत की सबसे बड़ी चिंता और जतन कच्चे तेल को लेकर रहती है. दुनिया भर में भारत एक बड़ा तेल आयातक मुल्क है.
Symbolic picture.

सांकेतिक तस्वीर.

India GDP growth: भारत ने जुलाई–सितंबर 2025 की तिमाही में 8.2% की GDP वृद्धि दर्ज की, जो पिछले छह तिमाहियों में सबसे तेज है. यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था के भीतर चल रही कई गतिविधियों और बाहरी परिस्थितियों का एकजुट परिणाम है. अर्थव्यवस्था को समझने वाले लोग मानते हैं कि किसी भी तिमाही की तेज वृद्धि के पीछे दो तरह की ताकतें काम करती हैं. पहला, घरेलू कारक (Domestic Drivers) और दूसरा वैश्विक प्रभाव (Global Environment). इस तिमाही की कहानी भी इन्हीं दो आयामों के बीच संतुलन की है.

घरेलू कारक: भारत की अपनी अर्थव्यवस्था ने रफ्तार क्यों पकड़ी?

घरेलू कारणों में सबसे बड़ी वजह उपभोग और खरीददारी की रही. इसके अलावा निर्माण क्षेत्रों में मजबूती ने अर्थव्यवस्था को एक टिकाऊ ग्रोथ दिया. खासकर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी पहले के मुकाबले अच्छा-खासा उछाल देखने को मिला है. अन्य महत्वपूर्ण कारणों में उद्योगों को कच्चा माल सस्ता मिला, बिजली व लॉजिस्टिक्स लागत कुछ महीनों में स्थिर रही, और खास पहलू ये कि पब्लिक में प्रोडक्ट की भारी मांग को देखते हुए कारखानों ने वस्तुओं का प्रोडक्शन बढ़ा दिया. त्योहार और शादी के सीजन ने अर्थव्यवस्था को एक नया आयाम दे दिया.

घरेलू खपत में सुधार

भारत की 60% से अधिक अर्थव्यवस्था खपत पर निर्भर है. इस तिमाही में खाने-पीने से लेकर मोबाइल, व्हाइट गुड्स और शहरी सेवाओं पर खर्च बढ़ा. यह वृद्धि खास तौर पर दो वजहों से दिखी.

  1. मुद्रास्फीति का नरम होना
  2. त्योहार सीजन की तैयारी
    ऐसे में साफ तौर पर परिणाम यही निकलता है कि जब लोग ज्यादा खरीदते हैं तो दुकान, बाजार, फैक्टरी और सेवाएं सभी सक्रिय होते हैं और GDP बढ़ती है.

सेवाओं का दबदबा अभी भी कायम

वित्तीय सेवाएं, रियल-एस्टेट और प्रोफेशनल सर्विसेज जैसे क्षेत्रों में दोहरे अंक की वृद्धि देखी गई. ये सेक्टर मुख्य रूप से डिजिटल इकोसिस्टम की मजबूत पकड़ और मेट्रो शहरों में रोजगार मुहैया कराने के चलते काफी अहम रहा. इसके चलते सेवाओं ने तिमाही के कुल विकास को स्थिर और व्यापक बनाया.

सरकारी निवेश का बड़ा असर

केंद्र सरकार ने रेलवे, सड़क, रक्षा और डिजिटल बुनियादी ढांचे पर खर्च को बिना रोक-टोक दिलेरी से आगे बढ़ाया. इस “frontloaded capex” ने सप्लाई चेन को सक्रिय बनाए रखा. जिससे, सीमेंट, स्टील, मशीनरी, ट्रांसपोर्ट सभी की मांग बढ़ी और आपूर्ति भी उतनी ही गति से होती रही. इसका नतीजा यह रहा कि निजी निवेश अभी धीमा हो सकता है, लेकिन सरकारी निवेश ने अर्थव्यवस्था को एक तात्कालिक पुश जरूर दिया.

वैश्विक परिस्थितियां: मुश्किलों के बीच भारत का प्रदर्शन क्यों महत्वपूर्ण है?

आज का वैश्विक माहौल आर्थिक रूप से उथल-पुथल वाला है. रूस-यूक्रोन युद्ध और टैरिफ वॉर ने अर्थव्यवस्था को न सिर्फ नुकसान पहुंचाया, बल्कि दुनिया की तगड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर भी लगातार कायम रहने वाले एक डर के माहौल को बनाए रखा. बाजार में डर के चलते ही अमेरिका, यूरोप, चीन और जापान में मांग कमजोर हैं. वैश्विक व्यापार लगभग सपाट है. ऐसे माहौल में भी भारत की वृद्धि 8% से अधिक रहना ‘रिलेटिव स्ट्रेंथ’ को दर्शाता है. भारत निवेशकों के लिए एक आकर्षक बाजार बना हुआ है क्योंकि बाकी देशों की तुलना में यहां गति ज्यादा है.

अमेरिकी टैरिफ और वैश्विक व्यापार बाधाएं

अमेरिका ने कुछ आयात शुल्क बढ़ाए, जिससे भारत समेत कई देशों के निर्यात को झटका लगा. भारत का भी शुद्ध निर्यात (Net Exports) इस तिमाही में नकारात्मक रहा है. इसका नतीजा ये रहा है कि निर्यात कमजोर होने पर GDP का भार घरेलू मांग और निवेश पर आ जाता है. हालांकि, तमाम बाधाओं के बीच घरेलू परफॉर्मेंस भारत में मजबूत बना हुआ है.

कच्चे तेल और वस्तुओं की कीमत में उतार–चढ़ाव

भारत की सबसे बड़ी चिंता और जतन कच्चे तेल को लेकर रहती है. दुनिया भर में भारत एक बड़ा तेल आयातक मुल्क है. तेल की वैश्विक कीमतों में अस्थिरता से भारत की महंगाई और राजकोषीय स्थिति पर दबाव बन सकता था, लेकिन इस तिमाही में कीमतें अपेक्षाकृत नियंत्रित रहीं. ऐसे में तेल की कीमतें ज्यादा नहीं बढ़ने से कम महंगाई ने खपत और वास्तविक GDP वृद्धि को बड़ा सहारा दिया.

MSME और ‘Make in India’ की भूमिका

छोटे उद्योग, विशेषकर मध्य भारत जैसे रायपुर, नागपुर, इंदौर में तेजी से उत्पादन बढ़ा रहे हैं. इसके चलते स्थानीय कच्चे माल की उपलब्धता भारी मात्रा में है. इनके अलावा देश की दूसरी राज्य सरकारों ने भी MSME की नीतियों में काफी बदलाव किए हैं, जो बाजार के हिसाब से एक दम मुफीद साबित हुए हैं. जीएसटी में सुधार ने भी बाजार को एक नया बल दे दिया. ऐसे में खासकर इस सेक्टर में मांग का बढ़ना तो तय था. MSME सेक्टर देश की 30% से अधिक विनिर्माण क्षमता चलाता है. तिमाही के दौरान इनकी गतिविधि में सुधार देखने को मिला.

क्या यह वृद्धि टिकाऊ है? आगे के जोखिम क्या हैं?

यह तिमाही भारत की आर्थिक सेहत को आश्वस्त करने वाली है. बशर्ते, हमारे देश से वस्तुओं का निर्यात और ज्यादा बढ़े और कच्चे तेल के दाम अंतर्राष्ट्रीय बाजार में स्थिर रहे. कुल मिलाकर अंतरराष्ट्रीय तुलना में यह उपलब्धि सराहनीय है. लेकिन इसे सतत और समावेशी बनाने के लिए फिज्कल रेवेन्यू (fiscal-revenue) और निजी निवेश को एक साथ सक्रिय करना जरूरी है. निर्यात-लिंकेज मजबूत करने और MSME और विनिर्माण पर निरंतर ताकत देने से ही यह 8.2% की सफलता दीर्घकालीक मानी जाएगी. वरना यह ‘एक-तिमाही का शो’ बनकर रह सकती है.

ये भी पढे़ं: ‘जब-जब जुल्म होगा, तब-तब जिहाद होगा’, महमूद मदनी का सुप्रीम कोर्ट पर भी विवादित बयान

ज़रूर पढ़ें