16 दिन, 23 जिले, क्या राहुल गांधी तोड़ पाएंगे बिहार में कांग्रेस का वनवास?
बिहार मे राहुल गांधी का वोटर अधिकार यात्रा
Rahul Gandhi Bihar Yatra: बिहार में कांग्रेस का सियासी इतिहास उतार-चढ़ाव से भरा रहा है. कभी राज्य की सत्ता पर काबिज रहने वाली कांग्रेस पिछले 35 सालों से सत्ता से दूर है और क्षेत्रीय दलों, खासकर राजद की सहयोगी बनकर रह गई है. राहुल गांधी की 16 दिन की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ को बिहार में कांग्रेस की खोई जमीन वापस पाने की एक रणनीतिक कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. इस यात्रा में राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और तेजस्वी यादव जैसे नेताओं ने दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वोटरों को साधने की कोशिश की है. लेकिन क्या यह यात्रा कांग्रेस के 35 साल के सियासी वनवास को खत्म कर पाएगी?
35 साल का वनवास
कभी बिहार की सियासत में कांग्रेस का दबदबा था. 1990 तक पार्टी ने राज्य में पूर्ण एकाधिकार के साथ शासन किया. लेकिन मंडल आयोग और लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के उदय ने सामाजिक समीकरणों को बदल दिया. इसके बाद नीतीश कुमार के नेतृत्व में JDU के उभरने से कांग्रेस हाशिए पर चली गई.
लोकसभा और विधानसभा में प्रदर्शन: 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बिहार में 9.4% वोट शेयर के साथ केवल 3 सीटें जीतीं. पिछले विधानसभा चुनावों में भी पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा.
पिछलग्गू की छवि: RJD और JDU जैसे क्षेत्रीय दलों की तुलना में कांग्रेस को ‘पिछलग्गू’ के तौर पर देखा जाने लगा.
बिहार यात्रा में राहुल का देसी अंदाज
राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ को कांग्रेस की सियासी जमीन को मजबूत करने की एक ठोस कोशिश माना जा रहा है. यह यात्रा सासाराम से शुरू हुई और 23 जिलों के 50 विधानसभा क्षेत्रों को कवर करती है.
‘वोट चोरी’ का नारा: राहुल और प्रियंका गांधी ने इस यात्रा में ‘वोट चोरी’ का मुद्दा उठाया, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार पहले वोट, फिर राशन और जमीन छीन सकती है. प्रियंका ने मधुबनी में कहा- ‘मोदी जी ने कहा था कि कांग्रेस आपकी भैंस चुराएगी, लेकिन हमें नहीं पता था कि वे वोट चुरा रहे हैं.’
देसी अंदाज: राहुल ने गमछा और चप्पल पहनकर बिहारी अवतार अपनाया, जो स्थानीय लोगों से जुड़ने की कोशिश का हिस्सा है.
सामाजिक समीकरण: यात्रा का मार्ग सावधानी से चुना गया है, जो दलित, ओबीसी और मुस्लिम बहुल इलाकों जैसे मगध, मिथिला, और सीमांचल से होकर गुजरता है.
महागठबंधन और तेजस्वी का साथ
कांग्रेस इस यात्रा में RJD के तेजस्वी यादव और अन्य महागठबंधन नेताओं के साथ मिलकर काम कर रही है.
तेजस्वी का समर्थन: तेजस्वी ने राहुल को ‘पीएम मटेरियल’ बताते हुए कांग्रेस को समर्थन दिया, लेकिन कुछ नेताओं का मानना है कि राजद कांग्रेस को बिहार में बढ़ने नहीं देना चाहता.
आंतरिक चुनौतियां: नीतीश सरकार के मंत्री अशोक चौधरी ने कहा कि ‘लालू यादव अगले 50 साल तक कांग्रेस को बिहार में पनपने नहीं देंगे.’ यह बयान महागठबंधन में कांग्रेस की स्थिति को दर्शाता है.
दलित और पिछड़े वोटरों पर फोकस
कांग्रेस ने इस बार दलित, अति पिछड़ा (EBC) और अल्पसंख्यक वोटरों को साधने की रणनीति अपनाई है.
नया नेतृत्व: पार्टी ने दलित समुदाय से आने वाले राजेश कुमार को बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया, जो सामाजिक जनाधार को फिर से जोड़ने की कोशिश का हिस्सा है.
जाति जनगणना का मुद्दा: राहुल गांधी लंबे समय से जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं, जिसे बिहार में EBC और दलित वोटरों को लुभाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है.
चुनौतियां और विरोध
राहुल की यात्रा को समर्थन के साथ-साथ विरोध का भी सामना करना पड़ा.
बीजेपी का विरोध: नवादा में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने राहुल के खिलाफ नारेबाजी और प्रदर्शन किया.
सर्वे की चुनौती: हाल के JVC पोल के मुताबिक, बिहार में NDA और इंडिया गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर है, लेकिन NDA को 136 सीटों का अनुमान है.
आंतरिक कमजोरी: कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह तो है, लेकिन संगठनात्मक ढांचे की कमजोरी और क्षेत्रीय दलों पर निर्भरता अभी भी एक बड़ी चुनौती है.
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क्या खत्म होगा 35 साल का वनवास?
राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने बिहार में कांग्रेस के लिए नई उम्मीद जगाई है. ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद यह दूसरी बड़ी पहल है, जिसने कार्यकर्ताओं में जोश भरा है. हालांकि, कई सवाल बाकी हैं:
क्या बदलेगा सामाजिक समीकरण?: दलित, OBC, और अल्पसंख्यक वोटरों को साधने की कोशिश कितनी सफल होगी, यह चुनावी नतीजों पर निर्भर करता है.
महागठबंधन की भूमिका: RJD और अन्य सहयोगियों के साथ सीट बंटवारे और रणनीति में सामंजस्य कितना रहेगा?
बीजेपी का जवाब: बीजेपी और नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा भी जोरों पर है, जो कांग्रेस की राह में रोड़ा बन सकती है.