बंटवारे के बाद जब भारत छोड़ पाकिस्तान जाने लगा था पूरा मेवात, महात्मा गांधी के दखल के बाद रुका था पलायन
ब्रिटिश हुकुमत से देश को आजादी तो मिल गई थी, लेकिन तब भारत एक नहीं दो हिस्सों में बंट चुका था. एक भारत और दूसरा पाकिस्तान, इन दोनों ही हिस्सों में बंटवारे की आग अपने चरम पर थी. भारत से तमाम मुस्लिम लोग अपने मुल्क पाकिस्तान का रूख कर रहे थे. बंटवारे की उठी आग के बीच उनको चिंता थी कि अगर भारत में रहेंगे तो यहां हिंसा का शिकार होंगे और उनके जान माल का भारी नुकसान हो सकता है. कुछ ऐसे ही हालात हरियाणा और राजस्थान के मेवात में भी बन चुकी थी. इन दोनों राज्यों में रह रहे मेव समाज के लोग भी अब भारत छोड़ पाकिस्तान जाने के लिए तैयार थे. भारी संख्या में लोगों ने अपना सब कुछ छोड़कर पाकिस्तान के रास्ते निकल पड़े.
जब इसकी जानकारी महात्मा गांधी को लगी, तब उस दौरान वह दिल्ली के बिड़ला हाउस में ठहरे हुए थे. इतनी बड़ी तादात में मुसलमानों के भारत छोड़ने की खबर पर वह खुद को रोक नहीं सके और पहुंच गए मेवात. वह तारीख थी 19 दिसंबर, 1947. कड़ाके की ठंड के और कोहरा ऐसा कि सुबह के 10 बजे तक सड़कों पर दिखाई नहीं दे रहा था. बावजूद इसके महात्मा गांधी पतली सी धोती में मेवात के घासेड़ा गांव पहुंचे और उस समय मेवात के दिग्गज नेता चौधरी यासीन खान की मदद से मुसलमानों की एक पंचायत बुलाई.
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“किसी को पाकिस्तान जाने की जरूरत नहीं”
महात्मा गांधी को सुनने के लिए इस पंचायत में 40 हजार से अधिक लोगों पहुंचे थे. पंचायत को संबोधित करते हुए महात्मा गांधी ने लोगों से सवाल पूछा कि वह भारत को छोड़कर पाकिस्ता क्यों जाना चाहते हैं. इसके बाद उन्होंने आधे घंटे तक लोगों के तर्क और जवाब सुनते रहे और फिर आखिरी में उन्होनें आदेशात्मक लहजे में कहा कि किसी को पाकिस्तान जाने की जरूरत नहीं है. उन्होंने मेव मुसलमानों का भरोसा दिया कि जितना भारत हिन्दुओं का है, उतना ही मुसलमान का. उन्होंने भरोसा दिया कि यहां पर कोई हिंसा नहीं होने वाला. गांधी जी के इस आश्वासन पर मुसलमानों ने कभी भारत नहीं छोड़ने की शपथ ली.
“नहीं चाहते थे भारत-पाक का बंटवारा”
महात्मा गांधी के इस संबोधन के बाद जो लोग मेवात से पाकिस्तान के लिए निकल चुके थे, उन्हें आदमी भेज कर वापस बुला लिया गया. इस सभा में गांधी जी ने कहा था कि वह किसी हाल में भारत पाकिस्तान का बंटवारा नहीं चाहते थे, लेकिन कुछ कट्टरपंथियों की वजह से ऐसा हुआ. महात्मा गांधी घासेड़ा गांव में करीब 4 घंटे रुके थे. इस दौरान उन्होंने चौधरी यासीन खान के घर में वैष्णव भोजन किया था. फिर शाम को वहां के लोगों से आते रहने का वादा कर दिल्ली चले गए थे.
आजादी के बाद गांधी ग्राम बन गया घासेड़ा
चूंकि कुछ दिन बाद ही उनकी हत्या हो गई, इसलिए मेवात में महात्मा गांधी की यह पहली और आखिरी यात्रा हो गई. गांधी जी ने जिस स्थान पर मेव मुसलमानों के साथ सभा की थी, उस जगह पर आज एक स्कूल बना हुआ है. वहीं आजादी के बाद इस घासेड़ा गांव को गांधी ग्राम घोषित किया गया. हालांकि उसके बाद तमाम सरकारें आईं और गईं, लेकिन आज तक घासेड़ा गांव की दशा नहीं बदली. आज भी इस गांव के लोग मूल भूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.