BJP Foundation Day: भारतीय जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी तक का यात्रा, 45वें स्थापना दिवस पर जानें पूरी कहानी
BJP Foundation Day: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 6 अप्रैल 2024 को अपना 45वां स्थापना दिवस बड़े उत्साह और उमंग के साथ मना रही है. भगवा पार्टी की स्थापना 6 अप्रैल 1980 को हुई थी और यह दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनकर उभरी है. बीजेपी स्थापना दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगे. हर साल, स्थापना दिवस समारोह में पार्टी की यात्रा, उपलब्धियों और भविष्य के लक्ष्यों पर विभिन्न कार्यक्रम, भाषण और चर्चाएं होती हैं.
भाजपा स्थापना दिवस पार्टी और उसके सदस्यों के लिए एक साथ आने और भारतीय जनता पार्टी के सिद्धांतों, विचारधारा और परिवर्तनकारी योगदान पर विचार करने का एक महत्वपूर्ण समय है. यह उत्सव, चिंतन और पार्टी के आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता के नवीनीकरण का दिन है. जैसे कि भाजपा 45वां स्थापना दिवस मना रही है, राष्ट्र पार्टी के समावेशी और समृद्ध भविष्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है. बीजेपी स्थापना दिवस 2024 की थीम है “फिर एक बार मोदी सरकार.”
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बीजेपी स्थापना दिवस का इतिहास और महत्व
भारतीय जनसंघ (बीजेएस) भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टियों में से एक है. इसके संस्थापक, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, हिंदू समर्थक समूह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता थे. BJS की स्थापना 1951 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक शाखा के रूप में की गई थी. जिसका पहला अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे. संगठन ने शुरू में भारत को दो राज्यों में विभाजित करने का विरोध किया, लेकिन जल्द ही यह हिंदू राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने और भारतीय संस्कृति और पहचान के संरक्षण के लिए एक मंच बन गया.
भारतीय जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी का यात्रा
1950 और 1960 के दशक में BJS के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक अटल बिहारी वाजपेयी थे. वह तीन अन्य राजनीतिक दलों में शामिल हो गए और 1979 में जनता पार्टी की स्थापना की. वाजपेयी ने 1980 के दशक तक बीजेएस का नेतृत्व किया था. इसके बााद बीजेएस ने 6 अप्रैल 1980 को लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में खुद को भाजपा के रूप में पुनर्गठित किया.
भारतीय जनसंघ का राष्ट्रीय एकता और हिंदू संस्कृति और पहचान के संरक्षण के लिए लड़ने का एक लंबा इतिहास है. संगठन की सफलता इसके नेताओं के समर्पण और हिंदू समुदाय के अधिकारों की रक्षा के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता के कारण है.