‘लिव इन’ रिलेशनशिप पर बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला, कहा- कपल को साथ रहने से रोक नहीं सकते

Bombay High Court: 'लिव इन' पर बॉम्बे हाई ने फैसला सुनाते हुए एक हिंदू लड़की को एक मुस्लिम लड़के के साथ रहने की अनुमति दे दी है. हाई कोर्ट ने अमेरिकी नागरिक अधिकार एक्टिविस्ट माया एंजेलो के कथन का जिक्र करते हुए कहा कि प्यार किसी बाधा को नहीं मानता है.
Bombay High Court

Bombay High Court: ‘लीव इन’ रिलेशनशिप को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट ने बड़ा फैसल सुनाया है. ‘लिव इन’ पर बॉम्बे हाई ने फैसला सुनाते हुए एक हिंदू लड़की को एक मुस्लिम लड़के के साथ रहने की अनुमति दे दी है. हाई कोर्ट ने अमेरिकी नागरिक अधिकार एक्टिविस्ट माया एंजेलो के कथन का जिक्र करते हुए कहा कि प्यार किसी बाधा को नहीं मानता है. समाज को अगर ‘लिव इन’ पसंद नहीं है तो कपल को साथ रहने से रोका नहीं जा सकता है.

कोर्ट के आदेश में क्या?

बॉम्बे हाई कोर्ट की जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ ने 13 दिसंबर को पारित आदेश में लड़की को रिहा करने का आदेश देते हुए कहा कि वह वयस्क (Adult) है और उसे अपनी ‘पसंद के अधिकार’ का प्रयोग करने का अधिकार है. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस डांगरे के आदेश में कहा गया, ‘अमेरिकी संस्मरणकार और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता माया एंजेलो ने कहा था, ‘प्यार किसी भी बाधा को नहीं मानता. यह बाधाओं को लांघता है, बाड़ों को लांघता है, दीवारों को भेदता है और आशा से भरे अपने गंतव्य तक पहुंचता है.’

कोर्ट ने कहा कि एक हिंदू लड़की और एक मुस्लिम लड़का ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहना चाहते हैं, तो उन्हें रोका नहीं जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा, ‘चूंकि यह पर्सनल रिलेशन में व्यक्तिगत पसंद करके सम्मान के साथ जीने के उनके अधिकार का एक अभिन्न अंग है. इसलिए सिर्फ सामाजिक अस्वीकृति की वजह से जोड़े को इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है, जो संविधान के तहत दो व्यक्तियों को मिला है.’

कोर्ट ने आगे कहा- इस रिश्ते का न केवल लड़की के परिवार ने विरोध किया, बल्कि बजरंग दल जैसे दक्षिणपंथी समूहों ने भी इसका विरोध किया है. हालांकि, लड़की ने लड़के और उसकी मां के साथ रहने पर जोर दिया, ‘सभी बाधाओं और आपत्तियों के बावजूद और समाज के विभिन्न वर्गों, जिसमें उसके अपने माता-पिता भी शामिल हैं, उन सभी दवाबों के बावजूद उन्हें साथ रहने की अनुमति देती है.

जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे की बेंच ने यह बात लड़की को शेल्टर होम से रिहा करने का निर्देश देते हुए कही, जहां उसे पुलिस ने रखा था. जज ने आगे कहा कि लड़का वर्तमान में 20 साल का है और इस प्रकार वह ‘विवाह योग्य’ आयु का नहीं है और इसलिए, लड़की और लड़के ने ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ में रहने का निर्णय लिया है, जो लड़के की विवाह योग्य शादी होने तक रहेगा.

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कानून के तहत लड़की हकदार

कोर्ट ने यह भी कहा- हम माता-पिता की चिंता को समझते हैं, जिनके बारे में न्यायाधीशों ने कहा कि वे उसके भविष्य को सुरक्षित करने में रुचि रखते हैं, लेकिन जब उसने चुनाव करने की अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग किया है, तो हमारी राय में हमें उसकी चुनाव करने की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने की अनुमति नहीं है, जिसका वह कानून के तहत हकदार है.

लड़के ने कोर्ट दायर की थी याचिका

लड़की के प्रेमी ने कोर्ट में याचिका दायर की थी. लड़के ने कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करवाई थी. इसी याचिका में मांग की गई थी कि लड़की को आश्रय गृह से रिहा किया जाए. पिता द्वारा शिकायत दर्ज कराए जाने के बाद पुलिस ने लड़की को आश्रय गृह भेज दिया था.

प्रेमी की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया कि शिकायत दर्ज होने के बाद लड़की को पुलिस स्टेशन बुलाया गया, जहां बजरंग दल के सदस्य और उसके परिवार के सदस्य मौजूद थे. इसके बाद पुलिस अधिकारियों ने उसे डराने-धमकाने और रिश्ता खत्म करने के लिए मजबूर करने की कोशिश की. इस दबाव के बावजूद, लड़की ने याचिकाकर्ता से शादी करने की ख्वाहिश जताई और अपने माता-पिता के पास लौटने से इनकार कर दिया. इसी के बाद लड़की को आश्रय गृह भेज दिया गया था.

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