कुंभ नगरी में चर्चा का विषय बने ‘Chabi Wale Baba’, इस वजह से साथ रखते हैं 20 किलो की चाबी

बाबा का असली नाम हरिश्चंद्र विश्वकर्मा है, और वे उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले से हैं. 50 वर्षीय हरिश्चंद्र बचपन से ही आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित थे, लेकिन परिवार के डर के कारण वे अपनी बातों को खुलकर नहीं कह पाते थे. 16 साल की उम्र में उन्होंने समाज में फैली बुराइयों और नफरत के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया और घर छोड़ दिया.
Chabi Wale Baba

चाबी वाले बाबा

Chabi Wale Baba: प्रयागराज के कुंभ मेला में इन दिनों एक अनोखा दृश्य देखने को मिल रहा है, जहां साधु-संतों का एक विविध संसार बसा हुआ है. यहां हर बाबा की एक खास पहचान है—कुछ ई-रिक्शा में सफर करते हैं, कुछ योगी होते हैं, तो कुछ अपने साथ जानवरों या घोड़ों को रखते हैं. मगर इनमें से एक बाबा हैं, जिन्हें ‘चाबी वाले बाबा’ के नाम से जाना जाता है. इनके पास एक भारी लोहे की चाबी है, जिसे वे हमेशा अपने हाथ में लेकर चलते हैं. इस चाबी के पीछे एक रहस्यमयी कहानी छुपी हुई है, और लोग इस राज को जानने के लिए उनके दर्शन करने आते हैं.

कौन हैं चाबी वाले बाबा?

बाबा का असली नाम हरिश्चंद्र विश्वकर्मा है, और वे उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले से हैं. 50 वर्षीय हरिश्चंद्र बचपन से ही आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित थे, लेकिन परिवार के डर के कारण वे अपनी बातों को खुलकर नहीं कह पाते थे. 16 साल की उम्र में उन्होंने समाज में फैली बुराइयों और नफरत के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया और घर छोड़ दिया. अब वे कबीरा बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं, क्योंकि वे कबीर पंथी विचारधारा का पालन करते हैं.

चाबी का रहस्य

कबीरा बाबा का कहना है कि उनकी लोहे की चाबी सिर्फ एक सामान्य वस्तु नहीं है, बल्कि यह अहंकार के ताले को खोलने का प्रतीक है. बाबा के अनुसार, इस चाबी के जरिए वे लोगों के अहंकार को तोड़कर उन्हें अध्यात्म की राह दिखाते हैं. उनका मानना है कि जब तक समाज में अहंकार और नफरत की समाप्ति नहीं होती, तब तक सच्ची शांति और प्रेम की उम्मीद नहीं की जा सकती. बाबा यात्रा करते हुए जहां भी जाते हैं, लोग उनसे चाबी के बारे में पूछते हैं और उनके दर्शन करने आते हैं.

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यात्रा की शुरुआत और रथ

कबीरा बाबा की यात्रा की शुरुआत साइकिल से हुई थी, लेकिन अब उनके पास एक रथ है, जिसे वे अपने हाथों से खींचते हैं. इसके लिए उन्होंने खुद एक हैंडल भी तैयार किया है. बाबा का कहना है कि उनके बाजू बहुत मजबूत हैं और वे इस रथ को खींच सकते हैं. अब तक वे हजारों किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं, और अब कुंभ मेला में पहुंच चुके हैं.

कबीरा बाबा का कहना है कि वे स्वामी विवेकानंद से प्रेरित हैं. उनका मानना है कि अध्यात्म कहीं बाहर नहीं है, बल्कि वह हमारे भीतर ही विद्यमान है. बाबा का उद्देश्य यह है कि अब समय आ गया है जब लोग अध्यात्म की असली सच्चाई को समझें, और वे इसे अपनी चाबी के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं.

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