Coco Islands Dispute: कच्चातिवु के बाद कोको आइलैंड को लेकर BJP का बड़ा दावा, कहा-नेहरू ने म्यांमार को दिया तोहफे में, जानें क्यों छिड़ा विवाद
Coco Islands Dispute: देश में लोकसभा चुनाव सिर पर है. पहले चरण के मतदान में अब सिर्फ 2 दिन ही बचे हैं. इस बीच राजनीतिक दलों की ओर से आरोप-प्रत्यारोप का भी दौर जारी है. अब ऐसे में अंडमान-निकोबार समूह से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी विष्णु पद रे ने बड़ा दावा किया है. उन्होंने दावा किया कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अंडमान द्वीप समूह के कोको द्वीप को म्यांमार को तोहफे में दे दिया. अब यह द्वीप सीधे तौर पर चीन के कब्जे में है. एक न्यूज एजेंसी से बातचीत के दौरान रे ने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि उनके शासन के दौरान बीते 70 सालों में इस पर कभी नहीं दिया गया. आज केंद्र की BJP सरकार कैंपबेल खाड़ी में चीन से निपटने के लिए एक शिपयार्ड और दो सैन्य हवाई अड्डे बनवा रही है.
बर्मा पर ब्रिटिशर्स का लंबे समय तक कब्जा
ऐसे में सवाल उठता है कि सच क्या है. ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के साथ ही अंडमान-निकोबार द्वीप समूह पर अंग्रेजी राज था. देश के आजाद होते ही अंडमान-निकोबार भी भारत का हिस्सा बन गया. वहीं कोको द्वीप समूह को ब्रिटिश शासन ने म्यांमार(बर्मा) को सौंप दिया. बता दें कि भारत में आजादी के बाद भी बर्मा पर ब्रिटिशर्स ने कब्जा कर रखा था.
ब्रिटिशर्स ने लीज पर दिया द्वीप
एक अन्य दावे के मुताबिक ब्रिटिश सरकार ने भारतीय क्रांतिकारियों को सजा देने के लिए अंडमान द्वीप को चुना. इस दौरान कैदियों और बाकी स्टाफ के लिए खाना कोको आइलैंड से आता था. कथित तौर पर ब्रिटिशर्स ने कोको द्वीप को बर्मा के एक प्रभावशाली परिवार को लीज पर दे दिया. इसके बाद साल 1882 में इसे आधिकारिक तौर पर बर्मा का हिस्सा घोषित कर दिया गया.
तीसरी थ्योरी में ब्रिटिश सरकार की साजिश
तीसरे दावे के अनुसार देश के आजाद होने से पहले ब्रिटिश सरकार ने जानबूझकर कोको आइलैंड को भारत से अलग कर दिया. इसका उद्देश्य था कि भारत सामरिक तौर पर मजबूत न बन पाए. द ट्रिब्यून में छपे एक लेख के मुताबिक ब्रिटिश सरकार के सच को बताते हुए कहा गया कि ब्रिटिश आर्मी के जॉइंट प्लानिंग स्टाफ ने कोको द्वीप को लेकर पहले ही फैसला ले लिया था.
चीन ने म्यांमार से लीज पर लिया पोर्ट
कोको द्वीप की दूरी अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से लगभग 55 किमी है. 70 दशक में चीन ने इसपर दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी. यह वह दौर था जब तत्कालीन सैन्य कमांडर जनरल ने विन ने इसे पीनल कॉलोनी बना दिया था. समुद्र के बीच जमीन के छोटे से टुकड़े को लेने के लिए रस्साकशी होड़ मची रहती है. इस तरह के द्वीप किसी भी देश के लिए महत्वपूर्ण होता है. इस बीच इसे चीन ने म्यांमार से लीज पर ले लिया और सैन्य गतिविधियां को बढ़ावा देने लगा. चीन ने इस पर जेटी, नेवल सर्विस और इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस सिस्टम स्थापित किए.
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क्याउकफ्यू पोर्ट पर भी चीन का कब्जा
चीन ने म्यांमार की आर्थिक कमजोरी का फायदा उठाते हुए उसे भारी कर्ज दिया. द गार्जियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 से पहले तक कुल कर्ज में चीन का हिस्सा 40% था और यह लगातार बढ़ ही रहा है. ऐसी स्थिति में म्यांमार मजबूरी में चीन के कई दूसरे प्रोजेक्ट्स को भी मंजूरी दे दी है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है क्याउकफ्यू पोर्ट, जहां से चीन की नौसेना भारतीय परमाणु पनडुब्बियों की गतिविधियों को ट्रैक करने में सक्षम हैं. बता दें कि कुछ दिनों पहले भारत और श्रीलंका के बीच स्थित कच्चातिवु द्वीप को लेकर BJP ने कांग्रेस को आड़े हाथों ले लिया था.