यूपी के बलिया में कच्चे तेल की खोज: अंग्रेजों को भगाने वाले चित्तू पांडेय के खेत से निकला ‘काला सोना’, ONGC ने शुरू की खुदाई

कच्चा तेल
Crude Oil in Ballia: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2029 तक प्रदेश को एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला राज्य बनाने का दावा किया है. योगी के वादे को पूरा करने के शुभ संकेत अभी से मिलने लगे हैं. पहला संकेत बलिया ज़िले से मिला है, जो अक्सर अपने आर्थिक रूप से पिछड़ेपन के लिए जाना जाता था. लेकिन यहाँ एक ऐतिहासिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण घटना सामने आई है. 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में बलिया को अंग्रेज़ी हुकूमत से आज़ाद कराने वाले क्रांतिकारी नेता चित्तू पांडेय की ज़मीन में कच्चे तेल का विशाल भंडार मिला है. जी हां, आज की तारीख़ में चित्तू पांडे के परिवार के कई सदस्य हैं, जिनके खेत में कच्चे तेल का भंडार मिला है.
इस खबर से पूरे बलिया ही नहीं बल्कि देश भर में हलचल मच गई है. ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ONGC) ने तेल के भंडार के लिए चितू पांडे के परिवार के लोगों से जमीन का करार भी कर लिया है और खुदाई का काम भी शुरू कर दिया है. यह खुदाई साढ़े 6 एकड़ ज़मीन पर हो रही है और इसे तीन साल के लीज़ पर लिया गया है. इसके लिए परिजनों को ONGC सालाना 10 लाख रुपये देने वाली है.
चित्तू पांडेय: बलिया का शेर
इससे पहले कि आपके लिए कच्चे तेल के भंडार की खबर विस्तार से बताएं, पहले आप संक्षेप में जान लीजिए कि चित्तू पांडे कौन थे और उनकी ज़मीन में तेल का भंडार वैचारिक रूप से भी ज़्यादा मायने क्यों रखता है. चित्तू पांडेय (10 मई 1865 – 6 दिसंबर 1946) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक नायक थे, जिन्हें “शेर-ए-बलिया” के नाम से जाना जाता है. बलिया जिले के रत्तूचक गांव में जन्मे चित्तू पांडेय ने 1942 के ‘अगस्त क्रांति’ के दौरान अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत का नेतृत्व किया था. 19 अगस्त 1942 को उन्होंने बलिया में एक समानांतर सरकार “स्वतंत्र बलिया प्रजातंत्र” की स्थापना की, जिसने अंग्रेजी कलेक्टर को सत्ता सौंपने और जेल में बंद कांग्रेस नेताओं को रिहा करने के लिए मजबूर किया. यह देश भर में एक अभूतपूर्व घटना थी. एक ओर जहां देश 1947 में आज़ाद हुआ. उसके पहले ही बलिया ने 1942 में ही आज़ादी की मुहर अपने नाम लगा दी. इस क्रांति के बाद ही बलिया को ‘बागी बलिया’ का नाम दिया गया.
हालांकि आज़ाद बलिया की सरकार कुछ दिनों बाद ब्रिटिश सेना द्वारा आक्रमण करके दबा दी गई. लेकिन चित्तू पांडेय का नाम इतिहास में अमर हो गया. आज उसी क्रांतिकारी के परिवार की जमीन एक बार फिर सुर्खियों में है, इस बार सुर्ख़ियाँ आजादी की लड़ाई या वैचारिक नज़रिए के लिए नहीं, बल्कि आर्थिक समृद्धि की संभावना के लिए है.
कच्चे तेल की खोज: कैसे हुई शुरुआत?
अब चलिए मूल ख़बर को थोड़ा विस्तार देते हैं. दरअसल, गंगा बेसिन में हाइड्रोकार्बन संसाधनों की खोज के लिए ONGC पिछले कुछ समय से सर्वेक्षण कर रही थी. इस सर्वेक्षण के दौरान बलिया के सागरपाली गांव के पास वैना रट्टूचक मौजा में कच्चे तेल के भंडार होने के संकेत मिले. यह वह क्षेत्र है जहां चित्तू पांडेय का परिवार पीढ़ियों से खेती करता आ रहा है. सर्वेक्षण में पाया गया कि जमीन के नीचे लगभग 3,000 मीटर की गहराई में तेल का भंडार मौजूद हो सकता है. इस खोज की पुष्टि के लिए ONGC ने भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन से ज़रूरी अनुमति यानी NOC हासिल की और खुदाई का काम शुरू कर दिया.
ONGC का कदम: जमीन का पट्टा और खुदाई
ONGC ने चित्तू पांडेय के पड़पोते मिंटू पांडेय और उनके परिवार के चार अन्य सदस्यों की साढ़े छह एकड़ जमीन को तीन साल के लिए पट्टे पर लिया है. इसके लिए परिवार को प्रति वर्ष 10 लाख रुपये का भुगतान किया जाएगा. समझौते के तहत, यदि तीन साल बाद तेल निकासी की प्रक्रिया जारी रखने की जरूरत हुई, तो पट्टे को एक साल और बढ़ाया जा सकता है. खुदाई के लिए अत्याधुनिक मशीनें असम से मंगाई गई हैं और ट्रेंड कर्मचारी दूसरे राज्यों से बुलाए गए हैं. अधिकारियों का कहना है कि रोजाना 25,000 लीटर पानी का इस्तेमाल करते हुए 3,001 मीटर गहरी बोरिंग की जा रही है. उम्मीद है कि अप्रैल 2025 के अंत तक तेल की सतह तक पहुंचने में सफलता मिल सकती है.
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बलिया के लिए गेमचेंचर बनेगी खोज
तेल का भंडार यदि व्यापारिक लिहाज से भरपूर मिल जाता है तो यह खोज बलिया के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है. गंगा कछार क्षेत्र, जहां साल में मुश्किल से एक फसल हो पाती है और बाढ़ से हर साल नुकसान होता है, अब आर्थिक समृद्धि की राह पर बढ़ सकता है. यही नहीं उत्तर प्रदेश जो 2029 तक 1 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बनने का लक्ष्य रखा है, वो भी जल्दी से पूरा हो जाएगा. ONGC के अनुसार, यह तेल भंडार बलिया के सागरपाली से लेकर प्रयागराज के फाफामऊ तक 300 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हो सकता है. यदि खुदाई सफल रही, तो आसपास के किसानों की जमीन भी अधिग्रहित की जा सकती है, जिससे उन्हें मुआवजे के रूप में बड़ी रकम मिल सकती है. इसके अलावा तेल निकासी से रोजगार के अवसर पैदा होंगे और क्षेत्र का बुनियादी ढांचा भी बेहतर होगा.
चुनौतियां अभी बाक़ी हैं
हालांकि यह खोज उम्मीद और उत्साह को बढ़ाने वाला है, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं. ONGC अधिकारियों ने बताया कि तेल बहुत गहराई में है, जिसके कारण खुदाई में समय और संसाधनों की जरूरत है. अभी यह पक्का नहीं है कि तेल की मात्रा व्यावसायिक उत्पादन के लिए पर्याप्त होगी या नहीं. अगर सकारात्मक परिणाम आए, तो गंगा बेसिन के अन्य चिह्नित स्थानों पर भी इसी तरह की परियोजनाएं शुरू की जा सकती हैं