क्या है ड्रैगन कैप्सूल की डॉकिंग प्रक्रिया? जिसके बाद स्पेस स्टेशन में दाखिल हुआ शुभांशु शुक्ला का यान

शुभांशु समेत चारों एस्ट्रोनॉट आज भारतीय समयानुसर शाम 4 बजे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंचे. डॉकिंग प्रक्रिया के बाद शुभांशु का यान ड्रैगन कैप्सूल स्पेस स्टेशन के अंदर दाखिल हो गया.
After the dogging process, the Dragon capsule reached the International Space Station.

डॉगिंग प्रक्रिया के बाद ड्रैगन कैप्सूल इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर पहुंचा.

Shubhanshu On ISS: भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर पहुंच गए हैं. शुभांशु ISS पर पहुंचने वाले पहले भारतीय बन गए हैं. शुभांशु समेत चारों एस्ट्रोनॉट आज भारतीय समयानुसर शाम 4 बजे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंचे. डॉकिंग प्रक्रिया के बाद शुभांशु का यान ड्रैगन कैप्सूल स्पेस स्टेशन के अंदर दाखिल हो गया.

क्या होती है डॉकिंग प्रक्रिया

डॉकिंग का मतलब दो यानों को एक-दूसरे से जोड़ना होता है. डॉगिंग प्रक्रिया में तेज गति से चलने वाले 2 यानों को एक ही कक्षा में लाकर जोड़ा जाता है. इस प्रक्रिया में दोनों यानों पर लगे सेंसर एक-दूसरे की निगरानी करते हैं. डॉकिंग के दौरान दोनों यानों को एक-दूसरे के करीब लाया जाता है. जब दोनों यान जब एक-दूसरे के करीब आ जाते हैं, तो दोनों एक-दूसरे के साथ जुड़ जाते हैं. इस तरह डॉकिंग की प्रक्रिया पूरी की जाती है.

स्पेस स्टेशन पर पहुंचने के लिए ऑर्बिटल मैकेनिक्स हैं जरूरी

पृथ्वी से सीधे स्पेस स्टेशन तक “सीधी” यात्रा संभव नहीं है, जैसा कि हम आमतौर पर हवाई जहाज में करते हैं. स्पेस स्टेशन पृथ्वी के चारों ओर लगभग 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से परिक्रमा कर रहा है. इसे पकड़ने के लिए, स्पेस शटल को भी उसी गति और ऊंचाई पर पहुंचना होता है. इस प्रक्रिया को ऑर्बिटल मैकेनिक्स कहा जाता है.

रॉकेट लॉन्च का समय बहुत सटीक होता है. इसे एक विशिष्ट “लॉन्च विंडो” के भीतर ही लॉन्च किया जाना चाहिए ताकि स्पेस स्टेशन अपनी परिक्रमा के दौरान सही स्थिति में हो और स्पेस शटल उसे इंटरसेप्ट कर सके. स्पेस शटल को स्पेस स्टेशन के साथ धीरे-धीरे गति और ऊंचाई में तालमेल बिठाना होता है.

कई ऑर्बिट की आवश्यकता

स्पेस शटल को सीधे स्पेस स्टेशन तक नहीं भेजा जाता है. पहले उसे पृथ्वी की निचली ऑर्बिट में प्लेस किया जाता है. इसके बाद, कई घंटों या कभी-कभी दिनों तक, स्पेस शटल अपनी ऑर्बिट में रहता है. शटल को अपनी गति और ऊंचाई को धीरे-धीरे बढ़ाने या घटाने के लिए छोटे-छोटे रॉकेट थ्रस्टर्स का उपयोग करना पड़ता है. इन “बर्न्स” का उपयोग स्टेशन के साथ सटीक मिलान करने के लिए किया जाता है. तब जा कर स्पेस स्टेशन के डॉकिंग पोर्ट तक पहुंचता है.

तकनीकी दिक्कत के कारण 6 बार टला मिशन

शुभांशु ISS पर जाने वाले पहले और स्पेस में जाने वाले दूसरे भारतीय हैं. 41 साल पहले राकेश शर्मा ने 1984 में सोवियत यूनियन के स्पेसक्राफ्ट से अंतरिक्ष यात्रा की थी. भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला एक्सियम मिशन 4 तहत 25 जून को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के लिए रवाना हुए थे. उनके साथ 3 अन्य अंतरिक्ष यात्री भी स्पेस स्टेशन के लिए रवाना हुए हैं. शुभांशु का यह मिशन इसके पहले 6 बार तकनीकी परेशानी के कारण टल चुका है.

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