क्या BJP से अलग होकर कांग्रेस के अरमानों पर पानी फेर देगी JJP? समझिए सियासी मिजाज

जाटलैंड में बीजेपी की कोशिश सैनी के जरिए ओबीसी पॉलिटिक्स की पिच मजबूत करने की है. इसके भी दो कारण बताए जा रहे हैं. हरियाणा की सत्ता के शीर्ष पर लंबे समय तक जाट चेहरे काबिज रहे हैं.
chautala and manohar lal khattar

चौटाला और मनोहर लाल खट्टर

Harayana Politics: मनोहर लाल खट्टर के सीएम पद से इस्तीफा देने के बाद अब हरियाणा के नए मुख्यमंत्री हैं नायब सिंह सैनी. राज्य में बीजेपी और जेजेपी का गठबंधन टूट चुका है. दुष्यंत चौटाला अब सत्ता से बर्खास्त हो चुके हैं. सूत्रों के मुताबिक, दुष्यंत चौटाला की तरफ से लोकसभा चुनाव में दो सीटें मांगी जा रही थीं. बीजेपी आला नेतृत्व एक सीट देने की बात मानने को तैयार था लेकिन दुष्यंत दो सीटों पर अड़े थे. लेकिन मनोहर लाल खट्टर के इस्तीफे की ‘मनोहर’ कहानी से किसी भी पार्टी को अगर नुकसान होने वाला है तो वो है कांग्रेस.

इससे कांग्रेस को क्या नुकसान?

जी हां… ऐसा माना जा रहा है कि जजपा के अलग होने के बाद भाजपा को लोकसभा चुनाव में फायदा मिलेगा और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही कांग्रेस के वोट बैंक में बिखराव होगा. अब जरा जान लेते हैं कि जजपा के भाजपा से अलग होने पर कांग्रेस को क्यों नुकसान होने की संभावना है. इसे समझने के लिए हरियाणा से सामाजिक समीकरण के साथ ही सियासी मिजाज की भी चर्चा करनी जरूरी है. हरियाणा में करीब 22 फीसदी जाट आबादी है. नए मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी जिस ओबीसी वर्ग से आते हैं, उस वर्ग की आबादी करीब 30 से 32 फीसदी है. सैनी समाज की आबादी तीन फीसदी के आसपास होने के अनुमान हैं. हरियाणा की 90 में से करीब 40 विधानसभा सीटों और 10 में से करीब तीन से चार सीटों पर जाट वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

जाटलैंड में बीजेपी की कोशिश सैनी के जरिए ओबीसी पॉलिटिक्स की पिच मजबूत करने की है. इसके भी दो कारण बताए जा रहे हैं. हरियाणा की सत्ता के शीर्ष पर लंबे समय तक जाट चेहरे काबिज रहे हैं. चौटाला परिवार की इंडियन नेशनल लोक दल हो या भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सहारे कांग्रेस पार्टी, दोनों ही दलों की राजनीति का आधार जाट ही रहे हैं. पार्टी का फोकस गैर जाट पॉलिटिक्स के साथ ही कांग्रेस की ओर से जातिगत जनगणना की पिच पर घेरने की रणनीति की काट की भी है. अब जब दोनों दल मैदान में हैं तो वोटों का बिखराव होगा ही…और इसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा. इसलिए लोकसभा चुनाव से ठीक पहले गठबंधन टूटने को लेकर कांग्रेस भी चिंतित नजर आ रही है.

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कितनी बढ़ी है कांग्रेस की चिंता

दिल्ली में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने तो साफतौर पर कहा कि 2019 में भाजपा-जजपा गठबंधन स्वार्थ की राजनीति पूरा करने के लिए हुआ था. अन्यथा 2019 के चुनाव में जहां भाजपा ने नारा दिया था कि अबकी बार 75 पार, यानी 90 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को 75 से अधिक सीटें मिलेंगी.

इस राजनीतिक नारे का जजपा ने चुनाव में यह जवाब दिया था कि अबकी बार भाजपा जमुना पार, यानी भाजपा कहीं नहीं टिकेगी. 2019 में भाजपा को 90 में से 40 सीट मिली और चुनाव के बाद भाजपा ने जजपा के 10 विधायकों के साथ गठबंधन में सरकार बनाई. अब एक बार फिर इन्होंने गठबंधन तोड़ने का समझौता किया है.
भूपेंद्र हुड्डा का यह बयान बता रही है कि कांग्रेस की चिंता कितनी बढ़ी हुई है.

पिछले चुनावों के जातीय समीकरण

हरियाणा को जाटलैंड कहा जाता है और यहां जाटों की आबादी करीब 30 से 32 फीसदी है. लेकिन, इसके अलावा जट सिख, सैनी, बिश्नोई और त्यागी वोटर्स की आबादी भी अच्छी खासी है. यही कारण है कि बीजेपी की नजर ओबीसी वोट बैंक पर है. बीजेपी ने हरियाणा में गैर-जाट राजनीति की शुरुआत साल 2014 में की थी, जब पार्टी ने 10 में से 7 सीटों पर जीत हासिल की थी. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 34.7 फीसदी वोट मिले. उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 33.2 फीसदी वोट मिले और पार्टी ने 90 में से 47 सीटों पर जीत दर्ज की. इसके बाद बीजेपी ने हरियाणा को मनोहर लाल खट्टर के रूप में पहला गैर-जाट मुख्यमंत्री दिया. इसके बाद जाट समुदाय बीजेपी से नाराज हुआ, लेकिन पार्टी ने अपनी रणनीति नहीं बदली. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जाट वोटों के कारण 58.02 फीसदी मत प्राप्त हुआ और पार्टी ने सभी 10 सीटों पर कब्जा कर लिया.

 

 

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