Haryana Election 2024: अशोक तंवर की कांग्रेस में वापसी से BJP को कितना नुकसान, क्या चुनाव में दिखेगा असर?
Haryana Assembly Election 2024: हरियाणा में 90 विधानसभा सीटों के लिए शनिवार को मतदाता वोट डालेंगे. लेकिन इससे ठीक पहले हुए एक बड़े सियासी घटनाक्रम में पूर्व सांसद अशोक तंवर सत्ताधारी पार्टी भाजपा को छोड़कर कांग्रेस में वापसी कर लिए हैं. पार्टी के शीर्ष नेता राहुल गांधी की अपस्थिति में उन्होंने कांग्रेस का हाथ थामा. हरियाणा कांग्रेस के बड़े नेताओं की लिस्ट में शुमार अशोक तंवर ने साल 2019 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी को अलविदा कह दिया था. अशोक तंवर के अचानक पाला बदलने से कांग्रेस के साथ ही बीजेपी के नेता भी हैरान हैं क्योंकि दोनों ही दलों में शायद ही किसी को यह उम्मीद थी कि अशोक तंवर एक बार फिर पाला बदल लेंगे. तंवर के पार्टी बदलने से विधानसभा चुनाव में क्या असर होगा, ये जानने से पहले अशोक तंवर का राजनीतिक सफर जान लेते हैं.
हरियाणा के झज्जर जिले के चिमनी गांव के रहने वाले अशोक तंवर दलित समुदाय से आते हैं. बता दें कि कांग्रेस छोड़ने से पहले वह हरियाणा में पार्टी के प्रमुख चेहरों में शामिल थे. अशोक तंवर को राहुल गांधी के करीबियों के रूप में जाना जाता था. राहुल गांधी ने ही उन्हें भारतीय युवक कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था और लोकसभा चुनाव में भी टिकट देकर संसद पहुंचाया था. 2014 में तंवर को हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष भी बनाया गया था.
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हुड्डा-तंवर के बीच रिश्ते ठीक नहीं
तंवर जब तक हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे तब तक उनकी पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ कभी नहीं बनी. तंवर हरियाणा में एक युवा चेहरे के साथ ही दलित चेहरे के रूप में भी पहचाने जाते थे. जब उन्होंने पार्टी छोड़ी थी तब हरियाणा चुनाव 2019 के लिए कांग्रेस के टिकट बांटे जा रहे थे. तंवर ने तब टिकट बेचे जाने के आरोप लगाए थे और भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर जोरदार हमला बोला था.
कांग्रेस के बाद कई दलों में रह चुके हैं तंवर
पिछले कुछ सालों में अशोक तंवर कई राजनीतिक दलों की यात्रा करते रहे. कांग्रेस छोड़ने के बाद उन्होंने अपना राजनीतिक दल बनाया था. उसके बाद वह तृणमूल कांग्रेस में गए थे. 2022 में वह आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए और लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले वह बीजेपी में शामिल हो गए थे.
कुमारी शैलजा के खिलाफ लड़े चुनाव
बीजेपी ने उन्हें पूरा मान-सम्मान देते हुए सिरसा लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया था और तत्कालीन सांसद सुनीता दुग्गल का टिकट काट दिया था जबकि तंवर को पार्टी में आए मुश्किल से दो महीने हुए थे. लोकसभा चुनाव में उन्हें पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा ने 2.68 लाख वोटों से हरा दिया था. लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद बीजेपी जब हरियाणा में सरकार बनाने के लिए जोर लगा रही है तो ऐसे में क्या अशोक तंवर का जाना पार्टी के लिए कोई झटका हो सकता है? एक सवाल यहां यह भी अहम है कि बीजेपी में पूरा मान-सम्मान मिलने के बाद भी तंवर पार्टी छोड़कर क्यों चले गए?
शैलजा की नाराजगी को भुनाने की कोशिश
याद दिलाना होगा कि कुमारी शैलजा भी हरियाणा में एक बड़ा दलित चेहरा हैं और वो भारत सरकार में मंत्री रही हैं. हरियाणा कांग्रेस की अध्यक्ष रहने के साथ ही वह अंबाला और सिरसा से चुनाव जीत चुकी हैं. पिछले कुछ दिनों में उनकी भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ तनातनी की खबरों की वजह से हरियाणा कांग्रेस में काफी हलचल रही थी. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और विपक्ष के नेता राहुल गांधी के समझाने के बाद कुमारी शैलजा ने पिछले कुछ दिनों में पार्टी के उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार शुरू किया है. ऐसा माना जा रहा था कि उनकी नाराजगी से कांग्रेस को दलित वोटों का नुकसान हो सकता है.
दलित वोटरों पर कांग्रेस की नजर
पिछले कुछ सालों से अशोक तंवर राजनीतिक रूप से हाशिये पर चल रहे थे और लगातार एक के बाद एक राजनीतिक दल बदलने की वजह से उनका राजनीतिक कद पहले जैसा नहीं रहा था. चूंकि वह कुछ ही महीने बीजेपी में रहे इसलिए उन्हें बीजेपी का बहुत बड़ा चेहरा भी नहीं कहा जा सकता. इसलिए तंवर के कांग्रेस में आने से ऐसा नहीं लगता कि बीजेपी को दलित वोटों के मामले में कोई बड़ा नुकसान होगा क्योंकि अशोक तंवर का अब वह राजनीतिक कद नहीं दिखाई देता जैसा एक वक्त में कांग्रेस में हुआ करता था. उनके आने से दलित मतदाता कांग्रेस के पक्ष में आ जाएंगे ऐसा कहना मुनासिब नहीं होगा.