Himachal: दल-बदल में अयोग्य पूर्व विधायकों को नहीं मिलेगी पेंशन, विधानसभा में पास हुआ विधेयक
Himachal News: हिमाचल प्रदेश विधानसभा में बुधवार को विपक्ष के विरोध के बीच दल-बदल में अयोग्य पूर्व विधायकों की पेंशन-भत्ते बंद करने का विधेयक पारित हुआ. मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने संशोधन के पारण का प्रस्ताव पेश किया. विपक्ष ने इसे पूर्वाग्रह से बना बिल करार दिया. पेंशन अधिकार से वंचित कांग्रेस के पूर्व विधायकों से पिछली रकम की वसूली का भी इसमें प्रावधान है. कांग्रेस विधायकों ने ध्वनिमत से संशोधित विधेयक पास किया. अब राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल की मंजूरी मिलने पर ही हिमाचल प्रदेश ऐसा कानून बनाने वाला देश का पहला राज्य बनेगा.
विधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्ष के कुछ विधायकों ने इसे सदन की प्रवर समिति को भेजने तो कुछ ने इसे वापस लेने का आग्रह किया. संशोधित विधेयक में व्यवस्था की है कि किसी बात के प्रतिकूल होते हुए भी कोई व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत पेंशन का हकदार नहीं होगा, यदि उसे संविधान की दसवीं अनुसूची के अधीन किसी भी समय अयोग्य घोषित किया गया है. यदि कोई व्यक्ति इस उपधारा के अधीन पेंशन के अधिकार से वंचित होता है तो उसकी ओर से पहले से ली पेंशन ऐसी रीति से वसूली जाएगी, जैसे निर्धारित किया जाएगा.
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संशोधन क्यों जरूरी है?
विधेयक में संशोधन के कारण स्पष्ट करते लिखा कि विस सदस्यों के भत्ते-पेंशन प्रदान करने के दृष्टिगत अधिनियमित किया था. वर्तमान में भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची के अधीन विधायी सदस्यों के दल-बदल को हतोत्साहित करने के लिए अधिनियम में कोई उपबंध नहीं है. इसलिए सांविधानिक उद्देश्य के लिए राज्य के लोगों की ओर से दिए जनादेश की रक्षा और लोकतांत्रिक मूल्यों के संरक्षण के लिए संशोधन आवश्यक है.
राज्यपाल से मंजूरी मिलते ही कानून बनने के बाद पहली बार विधायक बनने के बाद अयोग्य घोषित पूर्व विधायक चैतन्य शर्मा और देवेंद्र भुट्टो पेंशन-भत्तों से वंचित होंगे. इन्हें पेंशन के तौर पर 36 हजार रुपये बेसिक और भत्ते जोड़कर कुल 94 हजार रुपये मिलते हैं. दूसरी बार विधायक बनने पर हर साल पेंशन में पांच हजार रुपये बढ़ते हैं. विस अध्यक्ष ने छह कांग्रेस विधायकों सुधीर शर्मा, राजेंद्र राणा, भुट्टो, चैतन्य, रवि ठाकुर और इंद्रदत्त लखनपाल को दल बदलने के आरोप में अयोग्य घोषित कर दिया. सुधीर और लखनपाल तो उपचुनाव लड़कर भाजपा से विधायक बन गए, लेकिन राणा, भुट्टो, चैतन्य और रवि हार गए। ऐसे में अब सुधीर, लखनपाल, राणा, रवि की पेंशन में भी पूर्व कार्यकाल की गणना संभवतया नहीं होगी.
राज्यपाल की मंजूरी के बाद बन जाएगा कानून
विधि विशेषज्ञों के अनुसार पारित विधेयक की प्रति फिर विधि विभाग को जाएगी. उसके बाद इसे राज्यपाल को भेजा जाएगा. राज्यपाल इसे मंजूर भी कर सकते हैं या अपने पास रोके रख सकते हैं. एक अन्य विकल्प यह भी होगा कि वह इसे राष्ट्रपति को भी भेज सकते हैं. विपक्ष इस संबंध में राज्यपाल को भी ज्ञापन देकर इसे स्वीकृत न करने का अनुरोध कर सकता है.