Farmers Protest: ‘MSP गारंटी के अलावा कुछ मंजूर नहीं’, किसान मोर्चा ने खारिज किया केंद्र का प्रस्ताव, चौथे दौर की वार्ता भी फेल

Farmers Protest: किसान मोर्चा ने कहा कि स्वामिनाथान आयोग ने वर्ष 2006 में C2+50% के आधार पर एमएसपी देने का सुझाव दिया था.
Farmers Protest

किसान आंदोलन की वजह से हरियाणा के कुछ इलाकों में इंटरनेट बंद

Farmers Protest: रविवार, 18 फरवरी की देर रात तक संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्र सरकार के बीच चौथे दौर की वार्ता हुई. चौथे दौर की वार्ता भी विफल हो गई. केंद्र सरकार ने किसानों की प्रमुख मांग एमएसपी के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. बता दें कि केंद्र सरकार की तरफ से किसानों को एमएसपी पर पांच साल के कॉन्ट्रेक्ट का प्रस्ताव दिया गया है. वहीं किसानों का कहना है कि मीडिया रिपोर्ट्स के जरिए उन्हें पता चला है कि केंद्र सरकार A2+FL+50% के आधार पर एमएसपी का अध्यादेश लाने की योजना बना रही है. इन दावों पर किसानों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि C2+50% के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं किया जाएगा.

‘2014 में BJP के मेनिफेस्टो में था शामिल’

केंद्र सरकार ने किसानों के सामने मक्का, कपास, अरहर/तूर, मसूर और उड़द जैसी पांच फसलों की खरीद को लेकर पांच साल का कॉन्ट्रेक्ट का प्रस्ताव रखा गया है. हालांकि, किसानों के नेतृत्व ने स्पष्ट किया है कि वह सराकर से C2+50% के फॉर्मूले के आधार पर ही एमएसपी की गारंटी चाहते हैं. किसान मोर्चा ने मीडिया को दिए एक बयान में कहा कि बीजेपी ने खुद वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में अपने घोषणापत्र में इसका वादा किया था.

‘स्वामिनाथान आयोग के सुझाव माने सरकार’

किसान मोर्चा ने कहा कि स्वामिनाथान आयोग ने वर्ष 2006 में अपनी रिपोर्ट में केंद्र सरकार को C2+50% के आधार पर एमएसपी देने का सुझाव दिया था. बयान में किसानों ने दावा किया कि वह इसी के आधार पर तमाम फसलों पर वह एमएसपी की गारंटी चाहते हैं. बताते चलें कि इसके जरिए किसान अपनी फसल को एक तय कीमत पर बेच सकेंगे और उन्हें नुकसान नहीं भी उठाना पड़ेगा. मोर्चा ने कहा कि अगर सरकार बीजेपी के वादे को लागू नहीं कर पा रही है तो प्रधानमंत्री ईमानदारी से इसे जनता के सामने रखे.

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सरकार प्रस्तावित एमएसपी पर स्पष्ट नहीं

संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि सरकार के मंत्री यह स्पष्ट करने को तैयार नहीं हैं कि उनकी ओर से प्रस्तावित एमएसपी A2+FL+50% पर आधारित है या C2+50% पर. उन्होंने दावा किया कि सरकार की चर्चा में कोई पारदर्शिता नहीं है जबकि चार बार की वार्ता हो चुकी है. यह दिल्ली सीमाओं पर 2020-21 के ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दौरान एसकेएम की ओर से स्थापित लोकतांत्रिक संस्कृति के खिलाफ है.

21 फरवरी तक का डेडलाइन

किसानों ने केंद्रीय मंत्रियों से ऋण माफी, बिजली का निजीकरण नहीं करने, सार्वजनिक क्षेत्र की फसल बीमा योजना, 60 वर्ष से अधिक उम्र के किसानों को 10 हजार रुपए मासिक पेंशन और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी को बर्खास्त करने की भी मांग की है. इन मांगों पर अपनी आगे की रणनीति पर चर्चा के लिए किसान मोर्चा 21-22 फरवरी तक अगली मीटिंग करेगा. किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा कि सरकार के पास सिर्फ 21 फरवरी तक का समय है. अगर 21 फरवरी तक सरकार नहीं मानी तो हरियाणा भी आंदोलन में शामिल होगा.

 

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