उत्तर प्रदेश ही नहीं मध्य प्रदेश में भी साथ लड़ेंगे ‘यूपी के दो लड़के’, जानें खजुराहो सीट का पूरा समीकरण
Khajuraho Lok Sabha Seat: लोकसभा चुनावों को लेकर सरगर्मियां लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे में सबसे ज्यादा किसी चीज की अगर चर्चा है तो वह है इंडिया गठबंधन की. बिहार बंगाल और पंजाब में गठबंधन टूटने के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के साथ चल रही चर्चा पर भी विराम लग जाएगा बीते दिन गठबंधन टूटने की चर्चाओं को ज्यादा बल तब मिला जब अखिलेश यादव भारत न्याय यात्रा में शामिल होने नहीं पहुंचे. माना जा रहा था कि उत्तर प्रदेश में तीन सीटों को लेकर कांग्रेस और सपा के बीच पेंच फंस गया है.
यूपी ही नहीं एमपी में भी सपा का कांग्रेस के गठबंधन
गठबंधन को लेकर एक चौंकाने वाली खबर तब सामने आई जब सपा की तरफ से गठबंधन को मंजूरी मिलने का ऐलान कर दिया. और भी ज्यादा दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस और सपा के बीच मध्यप्रदेश में भी गठबंधन हुआ है जिसके बाद कांग्रेस और सपा ने मिलकर फैसला लिया है कि खजुराहो सीट पर समाजवादी पार्टी अपना प्रत्याशी उतारेगी मौजूदा वक्त में बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा यहां से सांसद हैं.
खजुराहो लोकसभा सीट पर बीजेपी का प्रभुत्व
बात करें अगर यदि खजुराहो लोकसभा सीट की तो ये उत्तर प्रदेश के बांदा से सटी हुई सीट है जिससे यह सीट अक्सर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के राजनीतिक मुद्दों के प्रभाव में रहती है. साल 1989 के तक यह सीट कांग्रेस के प्रभुत्व वाली सीट थी, पर 1989 के बाद चार बार सांसद चुनी गई उमा भारती ने इस सीट को पारंपरिक तौर पर बीजेपी के प्रभाव वाली सीट बना दिया. अपवाद के तौर पर यदि साल 1999 को छोड़ दिया जाए तो भाजपा का प्रत्याशी ही यहां से सांसद चुना गया.खास बात ये है कि खजुराहो संसदीय क्षेत्र से जो भी प्रत्याशी चुनकर संसद गया उसका राजनीतिक प्रभाव बढ़ता ही गया. इन बड़े चेहरों में कांग्रेस की विद्यावती चतुर्वेदी,सत्यव्रत चतुर्वेदी और भाजपा की उमा भारती और विष्णु दत्त शर्मा जैसे नाम शामिल हैं.
लोकसभा सीट पर जीत का इतिहास
1957 से 1962- यहां से कांग्रेस के पंडित राम सहाय जीते.
1977 में भारतीय लोकदल के लक्ष्मी नारायण नायक विजयी रहे.
1980 से 1984- कांग्रेस की विद्यावती चतुर्वेदी यहां से सांसद चुनी गईं.
1989, 1991, 1996, 1998- लगातार चार बार भाजपा की उमा भारती यहां से चुनाव जीतीं.
1999- कांग्रेस के सत्यव्रत चतुर्वेदी ने चुनाव जीता.
2004-भाजपा के रामकृष्ण कुसमरिया यहां से सांसद बने.
2009- भाजपा के बुंदेला जितेंद्र सिंह विजयी रहे.
2014- नागेंद्र सिंह(भाजपा) ने यहां से जीत दर्ज की.
2019 में वीडी शर्मा की जीत .
खजुराहो सीट का समीकरण
खजुराहो लोकसभा सीट पर पिछड़े वर्ग के मतदाताओं का खासा असर देखा जाता है. लगभग 14 लाख मतदाताओं वाले खजुराहो में पिछड़े वर्ग के वोटर जीत हार के समीकरण को बदल सकते हैं. वहीं साढ़े तीन लाख से ज्यादा ब्राह्मण वर्ग के वोटर भी इस सीट पर चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं . आरक्षित वर्ग के वोटर भी लगभग 45 प्रतिशत है ऐसे में खजुराहो लोकसभा सीट पर चुनावों के परिणाम जातीय समीकरण से प्रभावित होते हैं. ऐसे में ब्राह्मण और पिछड़े वर्ग के प्रत्याशियों की जीत का रास्ता तो आसान हो सकता है पर क्षत्रिय वर्ग से आने वाले उम्मीदवारों को यहां खासा संघर्ष करना पड़ सकता है .
2019 के परिणाम
खजुराहो सीट से कांग्रेस को आखिरी बार 1999 में जीत मिली थी जिसके बाद कांग्रेस ने बहुत उम्मीदों के साथ कविता सिंह को यहां से प्रत्याशी बनाया था पर वो संघ के करीबी माने जाने वाले और बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा से चुनाव हार गई थी. हालांकि वीडी शर्मा को प्रत्याशी बनाए जाने का विरोध ये कहते हुए किया गया था कि वो बाहरी प्रत्याशी हैं पर इसका कोई ज्यादा फायदा विपक्ष को हुआ नहीं और वीडी शर्मा भारी बहुमत से जीत गए थे .
2019 में सपा और बसपा का हुआ था गठबंधन
खजुराहो लोकसभा सीट पर यदि पिछले चुनाव की बात करें तो यहां पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी का गठबंधन हुआ था. इस सीट पर सपा ने मशहूर डकैत ददुआ के बेटे वीर सिंह को टिकट दिया था, वीर सिंह को टिकट देकर सपा बसपा यहां ओबीसी वोट बैंक को साधना चाहते थे पर ऐसा नहीं हुआ और ये गठबंधन भी फेल हो गया.
2024 में सपा और कांग्रेस का गठबंधन
साल 2024 को लेकर कांग्रेस और सपा के बीच मध्यप्रदेश में एक सीट पर गठबंधन हुआ है अब देखना होगा की जातीय समीकरणों और शेयर से प्रभावित होने वाली सीट पर कांग्रेस और सपा किसे प्रत्याशी बनाती है और क्या मध्यप्रदेश में इंडिया गठबंधन उस सीट को जीतने में कामयाब हो पाएगी जो बीजेपी के प्रभुत्व या दबदबे वाली सीट है .