प्रेमानंद महाराज के पास पत्नी और बच्चों के साथ पहुंचे अनिरुद्धाचार्य, इन 5 जरूरी बातों का ध्यान रखने की दी नसीहत
प्रेमानंद महाराज ने अनिरुद्धाचार्य महाराज को दी नसीहतें
Premanand Maharaj: डॉ. अनिरुद्धाचार्य महाराज अपने विचारों और अलग शैली को लेकर सोशल मीडिया पर छाए रहते हैं. हाल ही में वह अपनी पत्नी और दोनों बेटों के साथ प्रेमानंद महाराज से मिलने के लिए वृंदावन स्थित उनके आश्रम पहुंचे. इस दौरान प्रेमानंद महाराज ने अनिरुद्धाचार्य को जीवन में 5 जरूरी बातों का ध्यान रखने की नसीहत दी.
मस्तक पर कभी अर्थ न चढ़े
प्रेमानंद महाराज ने कहा- ‘जीवन में ध्यान रखना कि कभी अर्थ की लोलुपता ना आने पाए. धर्म की प्रधानता रहे. वाणी में शास्त्र संयम रहे. अर्थ हमेशा चरणों में रहे. मस्तक पर न चढ़ने पाए. मस्तक तो सिर्फ भगवान के लिए है. वाणी में शास्त्र सम्मानित शब्द रहे तो सदैव विजयी रहोगे. जहां हमारे अंदर अर्थ की प्रधानता आएगी, वहां हम हार जाएंगे. संसार में सब कुछ अर्थ नहीं होता. एक प्रतिष्ठा भी होती है. अर्थ उतना जमा करिए जितने से सेवा, सामग्री ठीक से चलती रहे.’
भगवान के सिवा कोई सहयोगी नहीं
प्रेमानंद महाराज ने आगे कहा-‘भगवान के सिवा कोई आपका सहयोगी नहीं है. प्रश्न का उत्तर वही दो जानकारी के अनुसार और ज्ञान के अनुसार. आपको वहीं जाना चाहिए जहां आपकी प्रतिष्ठा हो. अगर 100 लोग आपको प्रणाम करने वाले हैं, तो 5 आपको गिराने वाले भी हैं. उन पांच के सामर्थ्य आप तक न पहुंच पाएं, इसलिए अर्थ प्रधानता मत रखना. सदैव धर्म का आश्रय रखना. स्वयं परिपक्व रहना होगा.’
कलियुग में केवल नाम के द्वारा कल्याण हो सकता है
महाराज ने कहा- ‘कलियुग में सिर्फ नाम के द्वारा कल्याण हो सकता है. भगवान को हमेशा दिमाग में रखो. घर बैठे सब होगा. अपने आप सब आएगा. जो भगवान का यश गाता है उसका सबकुछ भगवान करते हैं.’
कहां जाना है और कहां नहीं?
प्रेमानंद महाराज ने अनिरुद्धाचार्य महाराज से बातचीत के दौरान कहां जाना है और कहां नहीं जाने की भी हिदायत दी. उन्होंने कहा- ‘कहीं भी निमंत्रण हो, कहीं बुलावा हो तो पहले देखो कि मेरे यहां जाने से धर्म-प्रतिष्ठा पर आंच तो नहीं आएगी. अगर आंच आ रही है तो बिल्कुल ना जाएं. अगर धर्म की प्रतिष्ठा हो रही है और समाज प्रशंसा करे तो जरूर जाएंगे. आप वहीं जाइए जहां आपकी प्रतिष्ठा में और धर्म की प्रतिष्ठा में आंच ना आए. अर्थ की व्यवस्था में भी उपहास हो तो नहीं जाना है.’
कंचन और कामिनी के लिए आकर्षन न हो
प्रेमानंद महाराज ने अनिरुद्धाचार्य महाराज से कहा- ‘संयम से रहें. कंचन और कामिनी के लिए आकर्षन ना हो. कंचन तो खुद बरसेगा. हम धर्म से चल रहे हैं. जैसे समुद्र में बिना बुलाए नदियां अपने आप जा रही हैं, वैसे धर्मात्मा पुरुष के पास समस्त वैभव अपने आप आ जाता है. सनातन धर्म को आगे बढ़ाओ.’