बेटियों के लिए देश बना ‘बदलापुर’; बंगाल से लेकर महाराष्ट्र तक प्रदर्शन, अजमेर में 100 लड़कियों से हैवानियत के दोषियों को उम्रकैद
Rape Case In India: 2017 में निर्भया गैंगरेप के दोषियों को सजा सुनाते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कड़ी चेतावनी दी थी. देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि बलात्कार के खिलाफ सिर्फ़ कड़े क़ानून और सजा देने से महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों पर काबू नहीं किया जा सकता. आज साल 2024 भी खत्म होने के कगार पर है और परेशानी पहले के मुकाबले और ज़्यादा बढ़ी है.
मंगलवार यानी 20 अगस्त, 2024 की तारीख महिला सुरक्षा के मामले में काफ़ी संजीदगी से देखी जाएगी. वर्तमान समय में कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी डॉक्टर से हुई बर्बरता पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए पश्चिम बंगाल सरकार को कड़ी फटकार लगाई तो वहीं सीबीआई को भी अब मामले में स्टेटस रिपोर्ट 22 अगस्त को देने को कह दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान ‘नेशनल टास्क फोर्स’ यानी NTF का भी गठन कर दिया और 3 हफ़्ते के भीतर अपनी अंतरिम रिपोर्ट देने की डेडलाइन भी रख दी. NTF अब सुरक्षा मानकों को मजबूत करने के लिए अलग-अलग फील्ड के विशेषज्ञों से सलाह-मशवरा करेगी और मेडिकल प्रैक्टिशनर्स को सुरक्षित माहौल देने के लिए अपनी विशेष रिपोर्ट तैयार करेगी.
इसके अलावा मंगलवार को ही राजस्थान के अजमेर में 32 साल बाद 10 लड़कियों को ब्लैकमेल कर गैंगरेप करने वाले दरिंदों को उम्रकैद की सजा मिली. POCSO कोर्ट ने 1992 में हुए ‘सेक्स स्कैंडल’ मामले में 6 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और 5-5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. इस दौरान अदालत में दोषी नफ़ीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी और सैयद जमीन हुसैन अदालत में मौजूद थे. जबकि एक आरोपी अभी भी फरार है.
32 साल पहले हुए सेक्स स्कैंडल में कुल 18 लोग शामिल थे. इनमें से 9 को पहले ही सजा सुनाई जा चुकी है. वहीं एक आरोपी ने आत्महत्या कर ली थी.
इसके अलावा पश्चिम बंगाल की तर्ज पर मंगलवार को ही महाराष्ट्र में जनता का गुस्सा सड़क और रेलवे ट्रैक पर निकला. दो बच्चियों के साथ यौन शोषण के मामले में जनता उग्र हो गई और प्रदर्शन करते हुए रेल-नेटवर्क को ठप कर दिया. आरोपी की गिरफ्तारी हालांकि पुलिस ने कर ली थी. लेकिन, मामला उग्र होता देख महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी सामने आए और लोगों से शांति बनाए रखने का आह्वान किया. लेकिन, लोगों के बढ़ते आक्रोश को हैंडल करने के लिए पुलिस को लाठी भी चार्ज करनी पड़ी. ठाणे के बदलापुर के एक स्कूल में दो बच्चियों के साथ यौन शोषण की बात सामने आई. यह मामला 13 अगस्त को सुबह 9 बजे से दोपहर के 12 बजे बीच का है. इस वारदात के बाद 16 अगस्त को जब बच्चियों ने स्कूल जाने से मना किया तब परिजनों ने पूछताछ की और फिर इस मामले में खुलासा हुआ. बच्चियों के आपबीती पीड़ा सुनकर परिजनों को होश उड़ गए. इस घटना के बाद दूसरे पेरेंट्स ने अपनी बच्चियों का मेडिकल चेकअप कराया तो उनके वेजाइनल पेनेट्रेशन की पुष्टि हो गई. लोगों में ग़ुस्सा पुलिस के ख़िलाफ़ भी इसलिए बढ़ा क्योंकि शिकायत करने 9 घंटे बाद भी FIR दर्ज नहीं की गई थी.
कड़े क़ानून फिर भी नहीं थम रहे अपराध
महिला अपराधों के ख़िलाफ़ सख़्त क़ानून होने के बावजूद देश की बेटियां दरिंदगी की शिकार लगातार हो रही हैं. आंकड़े हमारी सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था की पोल-पट्टी खोलने के लिए काफ़ी हैं. ‘नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो’ (NCRB) के आंकड़ों पर गौर करें तो साफ पता चलता है कि महिला अपराधों में साल दर साल बढ़ोतरी ही हुई है. 2018 से 2022 के बीच मिलें आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ हिंसा में 12.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई. महिला अपराधों में 7 फीसदी संख्या बलात्कार से जुड़ी हैं.
डराने वाले हैं रेप के बढ़ते मामले
NCRB की सालाना रिपोर्ट में रेप से जुड़े आंकड़े डराने वाले हैं. क्योंकि, साल-दर-साल रेप की वारदातों में इज़ाफ़ा होता जा रहा है. साल 2012 में जहां रेप के 30,000 मामले दर्ज हुए तो वहीं साल 2016 में आकर इनकी संख्या 39,000 हो जाती है. 2018 में तो स्थिति इतनी बदतर होती है कि पूरे देश भर में हर 15 मिनट में एक लड़की या महिला के बलात्कार का शिकार होती है. गौर करने वाली बात ये है कि कोविड काल के दौरान बलात्कार के मामलों में थोड़ी कमी ज़रूरी आई थी. अमेरिका के जॉर्ज टाउन इंस्टीट्यूट ने 2023 में महिला सुरक्षा को लेकर दुनिया भर के देशों का अध्ययन करके एक आंकड़ा प्रकाशित किया. आंकड़े के मुताबिक महिला सुरक्षा के पैमाने पर 177 देशों की सूची में भारत 128 वें पायदान पर था. इन तमाम आंकड़ों से साफ़ पता चलता है कि क़ानून होने के बावजूद महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही.
कैसे रुके यौन अपराध?
जैसा की लेख के शुरुआत में ही सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का हवाला दिया है. इसका मतलब साफ़ है कि कानूनी प्रक्रिया से हटकर पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर भी एक बड़े संवेदनशील आंदोलन की ज़रूरत है. एक ऐसे अभियान की दरकार है जहां पर बच्चों से लेकर वयस्कों में महिलाओं के प्रति सम्मान और स्नेह के भाव को पैदा किया जाए. सामाजिक मूल्यों को विशेष तौर पर प्रधानता दी जाए. इसके लिए क़ानून के साथ-साथ पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों को दुरुस्त रखने का संकल्प पहला पायदान होना चाहिए. एक तरफ़ जहां नागरिक इस पर अपनी सजगता रखें तो वहीं सरकारों को भी राजनीतिक गोलबंदी और नफा-नुकसान छोड़ इस ओर ध्यान देना चाहिए. महिला से जुड़े तमाम प्रतिष्ठानों या फिर उनके ऑफिस में सुरक्षा के पैमाने सेट किए जाने चाहिए. सेफ्टी मेजर के जितने भी पैरामीटर हो सकते हैं उन्हें अनिवार्य करना चाहिए. साथ ही पुलिस- प्रशासन को भी इसके प्रति ज्यादा संवेदनशील और क्रियाशील बनाने की जरूरत है.