भारत-पाकिस्तान के ‘मैच’ से जुड़ा है राष्ट्रपति की रॉयल बग्घी का इतिहास, जानें इसकी रोचक कहानी

Republic Day 2025: गणतंत्र दिवस के मुख्य कार्यक्रम में शामिल होने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू रॉयल बग्घी में सवार होकर आईं तो हर किसी की निगाहें उस पर टिक गईं. इस बग्घी की कहानी भारत-पाकिस्तान के बीच से टॉस से जुड़ी हुई है. जानें इसका रोचक इतिहास.
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राष्ट्रपति की शाही बग्घी की कहानी

Republic Day 2025: भारत में आज 76वें गणतंत्र दिवस (Republic Day) का जश्न मनाया जा रहा है. भारत का गणतंत्र देश की गौरवशाली विरासत का प्रतीक है. पूरा देश जब इस उत्सव में डूबा हुआ था, तब दिल्ली के कर्तव्य पथ पर आयोजित मुख्य कार्यक्रम में राष्ट्रपति की शाही बग्घी (President Carriage) ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा. गणतंत्र दिवस परेड में शामिल हुई राष्ट्रपति की शाही बग्घी की मौजूदगी हर भारतीय को गर्व से भर देती है. इस बग्घी का इतिहास काफी दिलचस्प है. यह रॉयल बग्घी देखने में जितनी आकर्षक लगती है, उतनी ही आकर्षक भारत के हिस्से में आने की इसकी कहानी है.राष्ट्रपति की इस बग्घी का इतिहास सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ है.

राष्ट्रपति की रॉयल बग्घी

1950 में हुए पहले गणतंत्र दिवस समारोह में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद बग्घी पर सवार होकर गणतंत्र दिवस समारोह में पहुंचे थे.आजादी से पहले इसमें वायसराय और बाद में देश के राष्ट्रपति इस शाही बग्घी की सवारी करते थे.

भारत-पाक बंटवारे से जुड़ा है ‘रॉयल बग्घी’ का इतिहास

साल 1947 में अंग्रेजों से हमारे देश को आजादी तो मिल गई थी लेकिन इस आजादी ने हमारे अखंड भारत को दो भागों में विभाजित होने पर विवश कर दिया. इस कारण दोनों देशों के बीच जमीन से लेकर सेना और अन्य सभी चीजों को बंटवारा होना था. इसके लिए नियम भी तय किए जाने थे. बंटवारे के समय भारत के प्रतिनिधि एच एम पटेल और पाकिस्तान के चौधरी मुहम्मद अली को ये अधिकार दिया गया था कि वे अपने-अपने देश का पक्ष रखते हुए इस बंटवारे के काम को आसान करें. वहीं, बात जब राष्ट्रपति के अंगरक्षकों की आई तो उन्हें दोनों देशों के बीच 2:1 के अनुपात से बांट दिया गया. आखिरी में वायसराय की बग्घी को लेकर दोनों देशों ने अपना-अपना दावा किया.

टॉस के बाद हुआ फैसला

बग्घी को लेकर जब दोनों ही देश अड़ गए तो इस विवाद को सुलझाने के लिए टॉस का सहारा लिया गया. उस दौरान राष्ट्रपति (तब वायसराय) के बॉडीगार्ड रेजिमेंट के पहले कमांडडेंट लेफ्टिनेंट कर्नल ठाकुर गोविंद सिंह और पाकिस्तानी सेना के साहबजादा याकूब खान के बीच बग्घी को लेकर टॉस हुआ. टॉस में भारत की जीत हुई और बग्घी भारत के हिस्से में आ गई.

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यूं ही नहीं कहते ‘महामहीम’ की बग्घी

काले रंग की इस शाही बग्घी के ऊपर सोने की परत चढ़ी हुई है और इसे खींचने के लिए खास किस्म में घोड़ों का चयन किया जाता है. आजादी के पहले इसे 6 ऑस्ट्रेलियाई घोड़ों से खिंचवाया जाता था. लेकिन, अब इसे सिर्फ 4 ही घोड़े खींचते हैं. इस पर भारत के राष्ट्रीय चिह्न को भी अंकित किया गया है.

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुई बुलेटप्रुफ कार की एंट्री

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश के VVIP सुरक्षा की समीक्षा की गई थी. राष्ट्रपति की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बग्घी को हटा दिया गया और उसकी जगह बुलेटप्रूफ कार का इस्तेमाल किया जाने लगा. कई सालों तक राष्ट्रपति बुलेटप्रूफ कार का ही उपयोग करते रहे.

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30 साल बाद 2014 में फिर से इस्तेमाल की गई ‘रॉयल बग्घी’

30 साल बाद 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक बार फिर बग्घी का इस्तेमाल किया. वह बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम में शामिल होने के लिए इसी बग्घी में पहुंचे थे. इसके बाद 25 जुलाई 2017 को रामनाथ कोविंद ने भी राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद राष्ट्रपति भवन से संसद तक बग्घी से ही यात्रा की थी. प्रणब मुखर्जी से पहले, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और प्रतिभा पाटिल को भी कुछ खास अवसरों पर इस शाही बग्घी का इस्तेमाल करते देखा गया था. साल 2024 में गणतंत्र दिवस के दौरान जब फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों भारत आए थे तो उन्होंने राष्ट्रपति के साथ इस शाही बग्घी का आनंद लिया था.

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