EXPLAINER: उत्तर और दक्षिण भारत में दरार डालने वालों को RSS का तगड़ा जवाब, तीन भाषा फ़ॉर्मूले को बताया सही, कहा- हिंदी नहीं थोपी जा रही, हिंदी नहीं तो कोई और भारतीय भाषा सिखाएं

RSS नेता सीआर मुकुंदा ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और DMK के मुखिया एमके स्टालिन की नीयत पर सवाल उठाए. उन्होंने स्टालिन पर अपने निजी सियासत के लिए विभाजनकारी सोच को बढ़ावा देने का आरोप लगाया.
CR Mukunda

RSS नेता सीआर मुकुंदा

RSS: भाषा को लेकर बढ़ते विवाद के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपनी स्पष्ट राय रखी है. संघ का मानना है कि हर व्यक्ति को तीन भाषाएँ सीखनी चाहिए. जिसमें मातृभाषा, जिस राज्य में रहता है वहाँ की क्षेत्रीय भाषा और करियर की भाषा जो अंग्रेज़ी या कोई भी तीसरी भाषा हो सकती है. बेंगलुरु में शुरू हुए तीन दिवसीय अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (ABPS) के पहले दिन संघ ने यह संदेश दिया कि देश में भाषा के आधार पर उत्तर-दक्षिण विभाजन को बढ़ावा देना राष्ट्रीय एकता के लिए नुकसानदायक है.

RSS नेता सीआर मुकुंदा ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और DMK के मुखिया एमके स्टालिन की नीयत पर सवाल उठाए. उन्होंने स्टालिन पर अपने निजी सियासत के लिए विभाजनकारी सोच को बढ़ावा देने का आरोप लगाया. मुकुंदा ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान कहा, “कुछ ताकतें भाषा और परिसीमन (Delimitation) जैसे मुद्दों पर उत्तर-दक्षिण का विभाजन कर रही हैं, जो देश की एकता के लिए ठीक नहीं है. हमें आपस में झगड़ने की बजाय सौहार्दपूर्ण समाधान निकालना चाहिए.”

तीन-भाषा फ़ॉर्मूला सही: RSS

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में तीन-भाषा फ़ॉर्मूले को लेकर केंद्र की मोदी सरकार और तमिलनाडु में डीएमके सरकार के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है. जहाँ DMK (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) सरकार दो-भाषा नीति (तमिल और अंग्रेज़ी) पर ज़ोर दे रही है, वहीं केंद्र सरकार उत्तर के राज्यों की तर्ज़ पर तीन भाषा को अपनाने की बात कह रही है. डीएमके का आरोप है कि केंद्र इसकी आड़ में हिंदी को थोपना चाहती है जबकि, केंद्र सरकार का कहना है कि ‘तीन भाषा फ़ॉर्मूला’ से क्षेत्रीय भाषाओं का विकास होगा, इससे हिंदी थोपने की कोशिश नहीं हो रही.

बेंगलुरू के अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के आयोजन के पहले दिन RSS ने इस मुद्दे पर साफ कहा कि संघ की नीति मातृभाषा के संरक्षण और संवर्धन की है, न कि किसी भाषा को किसी पर थोपने की. सीआर मुकुंदा ने कहा, “हमने (RSS) कभी यह तय नहीं किया कि स्कूलों में दो-भाषा या तीन-भाषा फ़ॉर्मूला होना चाहिए. लेकिन हमने यह तय किया है कि मातृभाषा को प्राथमिकता मिलनी चाहिए.” ग़ौरतलब है कि RSS प्रमुख मोहन भागवत भी पहले कह चुके हैं कि घर में मातृभाषा का उपयोग करना चाहिए, स्थानीय भाषा को अपनाना चाहिए और करियर के लिए आवश्यक भाषा भी सीखनी चाहिए.

हिंदी थोपने का आरोप बेबुनियाद

मुकुंदा ने मीडिया से बातचीत में कहा कि लोगों को अपनी मातृभाषा के साथ उस राज्य की भाषा भी सीखनी चाहिए, जहाँ वे रहते हैं. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, “अगर मैं तमिलनाडु में रहता हूँ, तो मुझे तमिल सीखनी चाहिए. अगर मैं दिल्ली में हूँ, तो हिंदी सीखनी चाहिए ताकि बाज़ार में या रोज़मर्रा की ज़िंदगी में संवाद आसान हो.” RSS ने स्पष्ट किया कि ‘तीन-भाषा फ़ॉर्मूले’ में हिंदी सीखना अनिवार्य नहीं है. संघ का कहना है कि तमिलनाडु यदि चाहे, तो हिंदी की जगह तमिल, अंग्रेज़ी और कोई अन्य दक्षिण भारतीय भाषा पढ़ा सकता है.

भाषा विवाद पर राजनीति क्यों?

भाषा की राजनीति के बीच देखा जाए तो दक्षिण भारत में अलग-अलग सुर सुनाई पड़ रहे हैं. डीएमके ने जहां हिंदी को सहारा बनाकर भाषा के फ़ॉर्मूले के ख़िलाफ़ दूसरे राज्यों का साथ हासिल करना चाह रही है, वहीं आंध्र प्रदेश के मुखिया चंद्रबाबू नायडू इसके उलट खड़े हैं. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और BJP के सहयोगी चंद्रबाबू नायडू ने तीन-भाषा नीति का समर्थन किया है. नायडू ने कहा, “तेलुगु भाषा ज़रूरी है, लेकिन अंग्रेज़ी और हिंदी सीखना भी आज के समय की माँग है।” जबकि इसके उलट, तमिलनाडु की DMK सरकार इसे हिंदी थोपने की साज़िश बता रही है. संघ ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “किसी भी भाषा को लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए.”

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मुंबई में मराठी सीखना ज़रूरी या नहीं?

वहीं, एक और सवाल उठा कि क्या मुंबई में मराठी सीखनी ज़रूर है? यह सवाल इसलिए भी प्रासंगिक हो गया, क्योंकि संघ के वरिष्ठ नेता सुरेश भैय्याजी जोशी का एक बयान हाल ही में विवादों में आ गया था. उन्होंने कहा था कि मुंबई में रहने वालों के लिए मराठी सीखना ज़रूरी नहीं है. हालाँकि, बाद में उन्होंने सफ़ाई दी थी कि मुंबई में रहने वालों को मराठी भाषा समझ में आनी चाहिए और लोगों को सीखनी भी चाहिए. ग़ौरतलब है कि मुंबई में रहने वाले मराठी भाषी ख़ास तौर पर बाहरी राज्यों के रहने वाले लोगों से मराठी बोलने और समझने की माँग करते रहे हैं.

RSS का कहना है कि भाषा को लेकर विवाद पैदा करना सिर्फ़ राजनीतिक मकसद से किया जा रहा है. संघ ने सभी से अपील की कि भाषाओं को लेकर लड़ाई करने की बजाय, हमें सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान करना चाहिए और राष्ट्रीय एकता को प्राथमिकता देनी चाहिए.

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