क्या सिर्फ AK-47 की खातिर Shri Prakash Shukla ने कर दिए थे वीरेंद्र शाही के शरीर में 110 छेद?
Shri Prakash Shukla: 90 के दशक में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का इलाका अपराध की दुनिया पर अपना सिक्का जमाने वाले बाहुबलियों के लिए जाना जाता था. ये वो दौर था जब रेलवे में ठेकेदारी के लिए गैंगवार हुआ करता था. तब पूर्वांचल में कोयला और रेलवे के ठेकेदारी में कई बाहुबली पनपे थे और उनमें से ही थे हरिशंकर तिवारी, जो रेलवे की ठेकेदारी में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते थे लेकिन यहां उनको गोरखपुर की छात्र राजनीति में तेजी से उभरे वीरेंद्र शाही से टक्कर मिलने लगी थी. दरअसल, ये अदावत ठेकेदारी पर कब्जे से इतर ब्राह्मण बनाम ठाकुर की भी थी.
तिवारी हाता गोरखपुर मठ की तर्ज पर जनता के मामलों की सुनवाई करता था और यह काफी हद तक ब्राहण बनाम ठाकुर की जंग का अखाड़ा बन गया था. इसी गोरखपुर के चिल्लूपार इलाके से एक 20-22 साल का युवक निकला जिसका नाम था श्रीप्रकाश शुक्ला. ये वही श्रीप्रकाश शुक्ला था जिसे ढेर करने के लिए यूपी सरकार को स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करना पड़ा था. लेकिन ये कहानी सिर्फ इतनी सी नहीं है… बल्कि श्रीप्रकाश के खौफ, बर्बरता, उसके आपराधिक साम्राज्य और वर्चस्व की कहानी है, जिसके वजह से कई बड़े-बड़े लोगों की हत्याएं हुईं.
कम उम्र में ही जरायम की दुनिया में कदम रखने वाले श्रीप्रकाश शुक्ला ने देखते ही देखते यूपी से लेकर बिहार तक अपने आतंक का राज कायम कर दिया. केबल टीवी की ठेकेदारी से लेकर अपहरण और जबरन वसूली, रेलवे के ठेकों के वर्चस्व की जंग…हर जगह श्रीप्रकाश शुक्ला का सिक्का चलता था. जो श्रीप्रकाश शुक्ला की राह का रोड़ा बनता था, उसके शरीर पर वह दर्जनों गोलियां दाग देता था. मारना ही श्रीप्रकाश शुक्ला का मकसद नहीं था, वह लोगों के बीच अपने नाम का खौफ बनाए रखना चाहता था. यही वजह थी कि उसने अधिकांश हत्याएं दिनदहाड़े पब्लिक के बीच की.
खौफ का दूसरा नाम था श्रीप्रकाश शुक्ला
इसी श्रीप्रकाश शुक्ला को एनकाउंटर में ढेर करने वाले आईपीएस राजेश कुमार पाण्डेय ने शुभांकर मिश्रा के पॉडकास्ट में 90 के दशक में खौफ का दूसरा नाम रहे इस गैंगस्टर के बारे में बात करते हुए बताया कि कैसे वह बिहार के बाहुबली सूरजभान के करीब आया और किस तरह वीरेंद्र शाही को मारकर उसने अपने आतंक के साम्राज्य का विस्तार किया.
राजेश पाण्डेय कहते हैं, “उन दिनों रेलवे के टेंडर को लेकर एक तरफ हरिशंकर तिवारी थे और दूसरी तरफ वीरेंद्र शाही थे. इन दोनों बाहुबलियों में से ही किसी एक के पास टेंडर जाता था और फिर ये अपने लोगों को बांटते थे. तब अधिकांश रेल मंत्री बिहार से हुए, फिर चाहें तो नीतीश कुमार हों, रामविलास पासवान हों या फिर लालू यादव…और इसलिए ही सूरजभान टेंडर के लिए आते थे. लेकिन, हरिशंकर तिवारी और शाही के आदमी सूरजभान के आदमियों को मारपीट कर भगा देते थे.”
शाही को मारने की ली थी सुपारी
पांडेय आगे बताते हैं, “जब धीरे-धीरे हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही के बीच तल्खी बढ़ने लगी और लगा कि शाही का दबदबा बढ़ने लगा है तो हरिशंकर तिवारी ने सूरजभान से संपर्क किया. उन्होंने सूरजभान को आगे किया, लेकिन फिर भी सूरजभान टेंडर नहीं ले पा रहे थे. उस वक्त सूरजभान ने कहा कि कुछ लोगों का साथ मिल जाए तो वह टेंडर डाल देंगे और उसे हासिल भी कर लेंगे. यहीं पर श्रीप्रकाश शुक्ला का जिक्र आया और बताया गया कि वह लोकल है और उसका काफी दबदबा भी है.”
श्रीप्रकाश की मुलाकात सूरजभान से कराई गई और कहा गया कि इनको टेंडर दिलाने में मदद करना है. श्रीप्रकाश को असलहों का बड़ा शौक था और उसने जैसे ही सूरजभान के पास एके-47 देखी, उसमें एक मांगने लगा. तब सूरजभान ने भी कह दिया था- ‘दो दे दूंगा, शाही को खत्म कर दो.’ इस पर शुक्ला ने कहा कि एक दे देना, उसे मैं ही चलाकर मारुंगा.
इसके कुछ दिनों बाद, श्रीप्रकाश शुक्ला ने गोरखपुर के ही एक इलाके में वीरेंद्र शाही पर हमला कर दिया. इस हमले में शाही का गनर मारा गया लेकिन शाही अपनी गाड़ी में नीचे की ओर छिपकर बच निकले. शाही का खात्मा नहीं हुआ था. अब तक श्रीप्रकाश के दिलो-दिमाग में शाही का नाम घर कर गया और वह उस बाहुबली का पीछा करने लगा. उसने शाही के पीछे अपने आदमी लगा रखे थे.
बात 31 मार्च 1997 की है, उस दिन लखनऊ के इंदिरानगर स्थित एक स्कूल का रिजल्ट डे था. वहां वीरेंद्र शाही कभी-कभी अपनी महिला मित्र से मिलने आते थे. वह गाड़ी एक किलोमीटर दूर खड़ी कर देते थे और गनर-ड्राइवर को वहीं पर छोड़कर खुद स्कूल आ जाते थे. उस दिन रिजल्ट डे होने के कारण काफी बच्चे और उनके माता-पिता भी स्कूल के बाहर खड़े थे और श्रीप्रकाश शुक्ला ने भी अपने आदमी लगा रखे थे.
आंखों में भी मारी थी गोलियां
राजेश पांडेय कहते हैं, “जैसे ही शाही उस महिला मित्र और बच्चे के साथ भीड़ से होकर गुजर रहे थे, उसी वक्त शुक्ला ने उनके सिर में पिस्टल सटाकर गोली मार दी. उसके बाद सिर पर 5-6 गोलियां दागीं, पैर से शाही के शरीर को सीधा करके दोनों आंखों में 5-5 गोलियां मारीं और कहा कि बहुत खराब नजर से देखता था. श्रीप्रकाश को समझ नहीं आया कि हार्ट किस तरफ है तो शरीर के दोनों तरफ फिर गोलियां दाग दीं. आलम यह था कि शाही के शरीर में उसने पूरी की पूरी मैगजीन उतार दी थी. ये सब 400-500 लोग खड़े होकर देख रहे थे, जिसमें करीब 200-250 बच्चे भी थे.”
शाही के शरीर में 110 छेद थे
पहले लोगों को लगा कि किसी बदमाश को गोली मारी गई है लेकिन शाम होते-होते ये खबर फैल गई कि वीरेंद्र शाही को दिनदहाड़े मार दिया गया. बाद में वीरेंद्र शाही के शरीर पर करीब 110 छेद मिले थे. शाही की हत्या के बाद श्रीप्रकाश शुक्ला के नाम की दहशत फैल गई थी और उसका नाम सुनते ही बड़े-बड़े बाहुबली डरने लगे थे. बता दें कि 1998 में राजेश पांडेय ने एक एनकाउंटर में श्रीप्रकाश शुक्ला को ढेर किया था.