तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के Supreme Court के फैसले को क्यों कहा जा रहा शाहबानो 2.0?

सीआरपीसी की धारा 125 के मुताबिक, कोई भी पुरुष अलग रहने की स्थिति में अपनी पति, बच्चों व माता-पिता को गुजारा भत्ता देने से मना नहीं कर सकता है.
Hijab Controversy

प्रतीकात्मक तस्वीर

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अन्य धर्मों की तरह ही एक तलाकशुदा महिला को गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति (तलाक ले चुके) से गुजारा भत्ता की मांग कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने सालों पहले के शाहबानो मामले की याद ताजा कर दी है. दरअसल, शाहबानो केस में भी सर्वोच्च अदालत ने कुछ ऐसा ही फैसला दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

हालिया मामले में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने ये फैसला सुनाया. हालांकि दोनों जजों ने अलग-अलग फैसला सुनाया, लेकिन पूरे मामले में दोनों की राय एक ही थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं समेत सभी शादीशुदा महिलाओं पर लागू होती है. कोर्ट ने ये भी कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 सभी गैर-मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं पर भी लागू होती है.

ये पूरा मामला साल 2012 का है जब महिला ने अपने पति का घर छोड़ा था. इसके बाद महिला ने अपने के खिलाफ 2017 में केस दर्ज कराया था, जिसके भड़के पति ने महिला को तलाक दे दिया. रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि तलाक के बाद पति ने महिला को इद्दत की तीन माह की अवधि तक 15 हजार रु के गुजारा भत्ते की पेशकश की थी, लेकिन महिला ने इससे इनकार कर दिया था. महिला ने फैमिली कोर्ट में याचिका करते हुए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ते की मांग की. कई साल के बाद 2023 में कोर्ट ने हर महीने 20 हजार रु का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था. लेकिन इस फैसले के खिलाफ पूर्व पति ने तेलंगाना हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

इस मामले में सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा लेकिन 20 हजार रु गुजारा भत्ता देने के आदेश को घटाकर 10 हजार रु कर दिया. लेकिन पूर्व पति को ये फैसला भी मंजूर नहीं हुआ और उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उसने कोर्ट में ये दलील दी कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर नहीं कर सकती है. अब इस मामले में आए फैसले को शाहबानो के फैसले की तरह देखा जा रहा है.

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क्या कहती है सीआरपीसी की धारा 125

सीआरपीसी की धारा 125 के मुताबिक, कोई भी पुरुष अलग रहने की स्थिति में अपनी पति, बच्चों व माता-पिता को गुजारा भत्ता देने से मना नहीं कर सकता है. इस धारा के मुताबिक अगर पत्नी, बच्चे व माता-पिता अपना खर्च वहन नहीं कर सकते तो पुरुष को हर महीने गुजारा भत्ते के तौर पर एक राशि उन्हें देनी होगी. ये गुजारा भत्ता कितना होगा, ये मजिस्ट्रेट तय करेंगे.

क्या था शाहबानो का केस

दरअसल, इंदौर की रहने वाली शाहबानो को उनके पति ने तलाक दे दिया था. तब 1985 में इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत शाहबानो अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर सियासत खूब गरमाई थी. मुस्लिम धर्मगुरुओं ने इसका विरोध किया तो वहीं पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी इस फैसले पर अपनी कड़ी आपत्ति जाहिर की. आखिर में 1986 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार का संरक्षण) कानून लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था. इसे बीजेपी ने कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण का हिस्सा बताया था.

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