Explainer: कैलिफोर्निया की आग में 12.45 लाख करोड़ रुपये स्वाहा, बीमा कंपनियों के छूटे पसीने, इतने पैसे पाकिस्तान को मिल जाते तो लोगों के घर आटे की बोरियों से भर जाते
California Fires: कुदरत के आगे किसी की भी नहीं चलती. इस ब्रह्मांड में आपकी ताक़त नील बटे सन्नाटे से ज़्यादा कुछ भी नहीं है. इसकी मिसाल अमेरिका में आग में जलकर ख़ाक होते कैलिफ़ोर्निया के तमाम जंगल और शहर हैं. अमेरिका को दुनिया सुपर पावर मानती है. यही इकलौता राष्ट्र है जो ख़ुद को विशेष दिखाने के लिए अपने नाम के आगे ‘The’ लगाता है. यानी ‘The United State of America’. लेकिन, तमाम वैज्ञानिक शोध संस्थाओं और तकतनीक से लैस यह सुपरपावर जंगल में लगी आग को काबू नहीं कर पा रहा है. बर्बादी के इस मंजर को बेबस होकर सिर्फ देख रहा है. इस बेबसी को देखकर गीता का यह श्लोक काफी प्रासंगिक हो जाता है,
कार्यकारणकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते।
पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते॥
यह श्लोक बताता है कि प्रकृति ही सारे कार्यों एवं घटनाओं का कारण है. वह सृष्टि, पालन और विनाश की अधिष्ठात्री शक्ति है. मनुष्य केवल सुख और दुःख का अनुभव करता है, लेकिन घटनाओं को पूरी तरह नियंत्रित करने में असमर्थ है. अब देखिए, अरबों डॉलर इस अग्निकांड में स्वाहा हो गए हैं. कई सारी हॉलीवुड की हस्तियों के घर ख़ाक में तब्दील हो गए. मगर, हॉलीवुड फ़िल्मों में ही दूसरे ग्रहों के आक्रमण से निपटने के लिए संकटमोचन बनकर पृथ्वी को बचाने वाला अमेरिका रीयल लाइफ में अपने जंगल की आग नहीं बुझा पा रहा है.
बहरहाल, इस भूमिका से इतर चलिए हम आपको त्रासदी का असल आँकलन के बारे में बताते हैं. जिसके बारे में आपने हेडलाइन देखकर इस ख़बर को पढ़ने की जहमत उठाई है.
कैलिफ़ोर्निया में लॉस एंजेलिस अग्निकांड का मेन सेंटरपॉइंट है. लॉस एंजेलिस में फैली जंगल की आग ने भारी तबाही मचाई है और यह अमेरिका के इतिहास की सबसे महंगी आपदाओं में से एक बनती जा रही है. अनुमान है कि इस आग से होने वाला नुकसान 135 अरब डॉलर से लेकर 150 अरब डॉलर के करीब हो सकता है.
भारतीय करेंसी में इसे काउंट करें तो यह रक़म 11.21 लाख करोड़ रुपये से 12.45 लाख करोड़ रुपये तक होगी. एक निजी संस्था एक्यूवेदर (Accuweather) ने अपने शुरुआती अनुमान में बताया है कि इस आग में जिस तरह से तबाही हो रही है, उसकी भरपाई करना अमेरिका के लिए बेहद ही मुश्किल भरा काम हो सकता है.
हजारों निर्माण जलकर ख़ाक
बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 5,300 के क़रीब घर और व्यापारिक प्रतिष्ठान आग में जलकर ख़ाक हो चुके हैं. यह आंकड़ा फ़ायर ब्रिगेड के मुताबिक़ दिया गया है. लोकल फ़ायर अथॉरिटी के मुताबिक़ “पलिसेडस ब्लेज” के चलते 5,300 से अधिक निर्माण तबाह हो चुके हैं.
वहीं, ‘ईटन फ़ायर’ ने भी भारी तबाही मचाते हुए 5,000 से ज़्यादा प्रॉपर्टीज़ को नुक़सान पहुँचाया है. आपको बता दें कि कैलिफ़ोर्निया के जंगलों में लगी आग को ‘पलिसेडस ब्लेज’ और ‘ईटन फायर’ नाम से पुकारा जा रहा है. पलिसेडस जगह से फैली आग को ‘पलिसेडस ब्लेज’ और ईटन से निकली आग को ‘ईटन फायर नाम दिया गया है.
बीमा कंपनियों के छूट रहे पसीने
अमेरिका में लोन कल्चर के साथ-साथ बीमा (Insurance) कल्चर का भी बोलबाला रहता है. यहाँ के अधिकांश लोग हर छोटी-बड़ी चीजों का बीमा कराते हैं. हालाँकि, कैलिफ़ोर्निया के इलाक़े में अक्सर आग की घटनाएँ घटती रहती हैं. लिहाज़ा, कई क्षेत्रों में कंपनियां हाउसिंग इंश्योरेंस नहीं प्रोवाइड कराती हैं. लेकिन, लॉस एंजेलिस एक प्रोमिनेंट एरिया है.
लिहाज़ा, यहाँ पर अधिकांश कंपनियाँ हाउसिंग इंश्योरेंस देने में देरी नहीं करतीं. लिहाजा, यहां जिस लेवल पर तबाही मची है, उससे बीमा कंपनियों में खलबली मची है. मोरिंगस्टार(Morningstar) और जेपी मोर्गन (JP Morgan) जैसी फर्मों के विश्लेषकों का कहना है कि अभी तक बीमा की गई संपत्तियों में से 8 अरब डॉलर यानी तकरीबन 66,400 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है. बीमा कंपनियों के इस चोट का असर शेयर बाजार पर भी देखने को मिल रहा है.
जितना नुकसान, उतने में एक देश की अर्थव्यवस्था सुधर जाए
लॉस एंजेलिस में आग के चलते जितनी क्षति पहुँची है, उतने में देखा जाए तो दुनिया में कई ऐसे देश हैं जिनकी अर्थव्यवस्था पटरी पर आ सकती हैं. अगर आप सोच रहे हैं कि इस कैटगरी में पाकिस्तान को भी शामिल कर लिया जा सकता है, तो आप ठीक सोच रहे हैं. लेकिन, पाकिस्तान की क़र्ज़ लेने और नहीं चुकाने की आदत दुनिया के बाक़ी देशों से काफ़ी ज़्यादा है. हालाँकि, यदि यह रक़म पाकिस्तान को मिल जाती तो कम से कम उसके आटे की समस्या हल हो जाती.
इस पैसे से पाकिस्तान के हर एक आदमी को तक़रीबन 30-30 किलो आटा फ़्री में दिया जा सकता है. दरअसल, पाकिस्तान में इस वक़्त एक 20 किलों की एक बोरी आटे की क़ीमत 3 हज़ार रुपये है. ऐसे में 12 लाख करोड़ रुपये में तक़रीबन 40 करोड़ आटे की बोरी ख़रीदी जा सकती है. वहीं, यहाँ के आवाम की कुल आबादी 25 करोड़ के आसपास है. लिहाज़ा, प्रति व्यक्ति डेढ़ बोरी से कुछ ज़्यादा ही आटा फ़्री में दिया जा सकता है.
वहीं, अमेरिका में जितना नुक़सान हुआ है, यह रक़म अफ़ग़ानिस्तान की कुल GDP का 10 गुना है. फ़िलहाल, 2023 में अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था 14.58 बिलियन डॉलर की थी. वहीं, वियतनाम की अर्थव्यवस्था से अगर तुलना करें तो लॉस एंजिलेस का नुक़सान उसकी अर्थव्यवस्था का 41% है. वहीं, बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था का यह हिस्सा तक़रीबन 32.5% है.
भारत के इन राज्यों का कर्ज़ हो सकता है खत्म
लॉस एंजेलिस में जितना नुक़सान हुआ है अगर उस 12.45 लाख करोड़ रुपये की क़ीमत को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा और पंजाब के राज्यों से तुलना करें. तो इतनी रक़म में इन चारों राज्यों का क़र्ज़ एक झटके में ख़त्म हो जाएगा. ग़ौरतलब है कि मध्य प्रदेश के ऊपर तक़रीबन 3.85 लाख करोड़ रुपये से अधिका का क़र्ज़ है. वहीं, छत्तीसगढ़ के ऊपर भी एक लाख करोड़ से ज़्यादा का कर्ज है. इसके अलावा पंजाब पर 3.74 लाख करोड़ और हरियाणा पर 4 लाख करोड़ से अधिक का क़र्ज़ है.
कैलिफ़ोर्निया का शोक ‘सेंट एना’ या क्लाइमेंट चेंज?
अमेरिका की सबसे ज़्यादा आबादी कैलिफ़ोर्निया राज्य के लॉस एंजेलिस में रहती है. और तेज़ हवाओं के बीच धधकती आग की लपटों से यही इलाक़ा सबसे ज़्यादा बर्बाद हुआ है. हालाँकि, अक्सर इस क्षेत्रों में इस तरह के ख़तरे बने रहते हैं. क्योंकि, यह एक शुष्क इलाक़ा है और अक्सर गर्मी के साथ तेज़ हवाओं के बीच जंगलों में आग भड़क जाती है. यहाँ पर चलने वाली तेज़ और शुष्क रेगिस्तानी हवाओं को ‘सेंट एना’ कहा जाता है. जैसे भारत में गर्मियों के दिनों में उत्तर भारत में ‘लू’ चलती है, उसी तरह सेंट एना का क़हर कैलिफ़ोर्निया के अधिकांश हिस्सों में देखा जाता है.
वातावरण में नमी कम होने के चलते जंगलों में तापमान काफ़ी ज़्यादा बढ़ जाता है. ऐसे में तेज़ हवाओं के बीच एक चिंगारी भी भीषण आग का रूप ले लेती है सेंट एना पहले भी क़हर बरपा चुकी है. 2018 में वूल्सी में भी भीषण आग लगी थी. तब 3 लोगों की मौत हो गई थी.
पर्यावरणविद इस बार की तबाही को कुछ अलग चश्मे से देख रहे हैं. अमेरिका में मौसम से जुड़ी एजेंसियों ने बताया कि पिछले साल कैलिफ़ोर्निया में 4% से भी कम हिस्से में सूखा पड़ा था. लेकिन, इस बार 60% हिस्सा सूखे की चपेट में हैं. कई महीनों से यहाँ बारिश की एक बूंद भी नहीं गिरी है. अमेरिका की पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी एजेंसी, EPA की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ क्लाइमेट चेंज के चलते इस तरह की घटनाओं में तेज़ी आई है.