US के साथ न्यूक्लियर डील पर अड़ गए थे Manmohan Singh, कर दी थी इस्तीफे की पेशकश

मनमोहन सिंह की सरकार को लेफ्ट का समर्थन था और ये खेमा अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील होने का विरोध कर रहा था.
Manmohan singh

जॉर्श बुश और मनमोहन सिंह

Manmohan Singh: देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) का गुरुवार की रात दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया. 92 वर्षीय मनमोहन सिंह लंबे समय से बीमार थे और वे बेहद कमजोर भी हो गए थे. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल का जिक्र जब भी होता है तो भारत-अमेरिका के बीच न्यूक्लियर डील की चर्चा जरूर होती है. यह वो डील थी जिसको लेकर मनमोहन सिंह पर काफी दबाव था, लेकिन मनमोहन सिंह ने देशहित में फैसला लिया.

डॉ. मनमोहन सिंह को उनके कार्यकाल के दौरान विपक्ष ने कई बार ‘डमी पीएम’ या फिर ‘रिमोट कंट्रोल से चलने वाला पीएम’ करार दिया. आरोप लगते रहे कि सोनिया गांधी का सरकार में काफी दखल था और मनमोहन सिंह की अपनी ही सरकार में कोई सुनने वाला नहीं था. लेकिन, इसके बावजूद मनमोहन सिंह के देश के प्रति योगदान को नकारा नहीं जा सकता है. मनमोहन सरकार ने कुछ ऐसे भी फैसले लिए, जिसके लिए भले उन्हें गांधी परिवार के खिलाफ भी जाना पड़ा तो वे उससे पीछे नहीं हटे. अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौता एक ऐसा ही उदाहरण था, जिसने मनमोहन सिंह को ‘सिंह इज किंग’ बना दिया.

इस्तीफे की पेशकश भी कर चुके थे

इस न्यूक्लियर डील के कारण मनमोहन सिंह की सरकार का अस्तित्व खतरे में पड़ गया था. कहा जाता है कि राजनीतिक दलों के विरोध के बीच खुद सोनिया गांधी भी मनमोहन सिंह के फैसले से सहमत नहीं थीं. इस डील पर सोनिया गांधी के रवैये से वे बेहद नाराज थे और उन्होंने इस्तीफे की पेशकश भी कर दी थी.

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डील के विरोध में था लेफ्ट का खेमा

मनमोहन सिंह की सरकार को लेफ्ट का समर्थन था और ये खेमा अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील होने का विरोध कर रहा था. लेफ्ट फ्रंट ने इस डील के विरोध में सरकार से समर्थन भी वापस ले लिया. लेकिन मनमोहन सिंह ने अमेरिका के साथ ये डील साइन करने की ठान ली थी और सरकार गिरने के डर से वे अपने कदम पीछे खींचने वाले नहीं थे. वे तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की मदद से वह कुछ दलों को समझाने में कामयाब रहे थे. तब मुलायम सिंह यादव की पार्टी सपा ने सरकार को बाहर से समर्थन दिया था.

मनमोहन सिंह के सलाहकार रहे संजय बारू अपनी किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर: द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह’ में लिखते हैं, ‘इस डील को लेकर मनमोहन सिंह द्वारा अपनाए गए रुख ने सोनिया गांधी के प्रति उनकी ‘अधीनता’ को लोगों के जेहन से मिटा दिया. उन्होंने इस डील को ‘मनमोहन सिंह का सर्वोच्च गौरव’ बताया. इसके बाद आगामी लोकसभा चुनाव 2009 में एक बार फिर यूपीए की सरकार बनी और पीएम के तौर पर मनमोहन सिंह ने शपथ ग्रहण किया. बारू मानते हैं कि इस जीत के आर्किटेक्ट मनमोहन सिंह थे लेकिन उनको कभी भी इसका श्रेय नहीं मिल पाया.

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