DGP Rajeev Kumar: कौन हैं राजीव कुमार? जिन पर चुनाव आयोग ने दोबारा लिया एक्शन, उनकी खातिर धरने पर बैठ गई थीं ममता बनर्जी
Who Is DGP Rajeev Kumar: लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में बड़ा एक्शन लिया है. चुनाव आयोग ने बंगाल के पुलिस महानिदेशक(DGP) राजीव कुमार को पद से हटा दिया है. चुनाव आयोग की ओर से इस बाबत पश्चिम बंगाल सरकार के मुख्य सचिव को आदेश भी जारी कर दिया गया है. चुनाव आयोग ने अपने आदेश में साफ तौर पर कह दिया है कि राजीव कुमार को पुलिस महानिदेशक और आईजी के पद से हटाकर गैर चुनावी ड्यूटी में लगाया जाएगा. राजीव कुमार पश्चिम बंगाल के उन अधिकारियों में से एक हैं, जिन्हें सीएम ममता बनर्जी(Mamta Banerjee) के बेहद खास माने जाते हैं. बता दें कि एक बार उनके लिए ममता बनर्जी ने CBI के खिलाफ धरना भी दिया था.
पूर्व सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य के भी रहे खास
राजीव कुमार कोलकाता पुलिस के कमिश्नर का पद संभाल चुके हैं. पिछले साल दिसंबर महीने के आखिरी हफ्ते में पश्चिम बंगाल सरकार ने उन्हें राज्य का नया पुलिस महानिदेशक(DGP) और पुलिस महानिरीक्षक(IGP) नियुक्त किया. बताते चलें कि 57 वर्षीय राजीव कुमार इसके पहले सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग में प्रधान सचिव के पद पर कार्यरत थे. राजीव कुमार को सूबे की सीएम ममता बनर्जी का करीबी तो माना ही जाता है साथ ही वह पूर्व सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य के भी पसंदीदा अधिकारी रह चुके हैं.
IIT रूड़की से की है इंजीनियरिंग
भारतीय पुलिस सेवा(IPS), 1989 बैच के अधिकारी राजीव कुमार के पास IIT रूड़की से इंजीनियरिंग की डिग्री है. पुलिस कमिश्नर से पहले संयुक्त आयुक्त(STF) और महानिदेशक(CID) जैसे प्रमुख पदों पर काम कर चुके उत्तर प्रदेश के मूल निवासी राजीव कुमार हमेशा चर्चा में बने रहते हैं. कोलकाता पुलिस के STF की माओवादियों के खिलाफ अभियानों को लेकर उनके नेतृत्व की खूब चर्चा हुई थी. उन्होंने लालगढ़ आंदोलन के माओवादी नेता छत्रधर महतो को पकड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
TMC ने पहले लगाए थे गंभीर आरोप
इन सब के बीच आज उन्हें भले ही ममता बनर्जी का खास माना जाता है, लेकिन साल 2011 में ममता बनर्जी की सरकार बनने से पहले तृणमूल कांग्रेस(TMC) ने साल 2009 में उन पर बेहद गंभीर आरोप लगाए थे. TMC ने विपक्ष में रहते हुए कोलकाता पुलिस के STF प्रमुख राजीव कुमार पर तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी का फोन टैप करने का आरोप लगाया था. राजीव कुमार को 2009 में TMC के तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव मुकुल रॉय के आरोपों का सामना करना पड़ा था. मुकुल रॉय ने आरोप में कहा था कि वाम मोर्चा सरकार के इशारे पर वह ममता बनर्जी का फोन टैप कर रहे थे.
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सरकार के आदेश का अधिकारियों ने किया विरोध
वर्ष 2011 ममता बनर्जी की सरकार बनते ही राजीव कुमार को कम महत्वपूर्ण पद पर ट्रांसफर करने की प्रयास किया गया, लेकिन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने इस बात पर हस्तक्षेप किया. इसके बाद साल 2012 में बिधाननगर पुलिस आयुक्तालय की स्थापना हुई, तो उनको पहला आयुक्त बनाया गया. इसके अगले साल ही 2013 में शारदा चिटफंड घोटाले के सामने आते ही TMC सरकार भारी दबाव में आ गई. इस दौरान उन्होंने ने शारदा समूह के अध्यक्ष सुदीप्त सेन और कंपनी के साझेदार देबजानी मुखर्जी को कश्मीर से गिरफ्तार कर लिया. उन्होंने इस दौरान SIT का नेतृत्व किया और सत्तारूढ़ सरकार से उनकी निकटता की प्रशंसा और आलोचना दोनों हुई. वहीं नवंबर 2013 में बगावती तेवर दिखा रहे TMC सांसद कुणाल घोष को SIT ने ही गिरफ्तार किया था.
चिटफंड मामले के साक्ष्य मिटाने के आरोप
वरिष्ठ कांग्रेस नेता अब्दुल मन्नान की याचिका पर मई 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने शारदा चिटफंड घोटाले मामले की CBI जांच का आदेश दिया. SC के आदेश के बाद तीन फरवरी 2019 को जब CBI की टीम चिटफंड घोटाले से संबंध में पूछताछ करने के लिए राजीव कुमार के आवास गई थी तो उसे रोक लिया गया और घसीटते हुए पुलिस की गाड़ी में बैठा लिया गया. बता दें कि राजीव कुमार पर चिटफंड मामले के साक्ष्य मिटाने के आरोप लगे थे.
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धरने पर बैठ गई थी ममता बनर्जी
सीएम ममता बनर्जी ने इस दौरान केंद्र की BJP सरकार पर गंभीर आरोप लगाया और कहा कि BJP केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है. वह राजीव कुमार के लिए धरने पर बैठ गई थी. राजीव कुमार उस समय कोलकाता के पुलिस आयुक्त थे. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाई. SC के आदेश के बाद शारदा चिटफंड मामले की जांच के संबंध में मेघालय के शिलांग में CBI ने उनसे पूछताछ की.
चुनाव आयोग दूसरी बार हटाया
अब जब वह राज्य पुलिस के महानिदेशक के पद पर थे तो चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें पद से हटा दिया है. वहीं इससे पहले 2016 के विधानसभा चुनावों के दौरान निर्वाचन आयोग ने पहली बार उन्हें कोलकाता पुलिस कमिशनर के पद से स्थानांतरित करने का फैसला लिया था, लेकिन लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटने के बाद ममता बनर्जी ने उन्हें बहाल कर दिया. वहीं 2019 के लोकसभा में भी ऐसी कार्रवाई की गई थी.