क्यों की जाती है शिवलिंग की आधी परिक्रमा? जानिए क्या हैं नियम
शिवलिंग की आधी परिक्रमा
Shivling Parikrama Niyam: सावन महीने में भगवान शिव के साथ शिवलिंग की पूजा का विशेष महत्व है. शिव भक्त सावन के पूरे महीने भोलेनाथ नाथ की विधि विधान से पूजा और उपासना करते है और व्रत रखते हैं. ऐसी मान्यता है कि जो भक्त ऐसा करते है, भोलेनाथ अति प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल का आशीर्वाद देते हैं. शिव मंदिर में जब जाते हैं, तो शिवलिंग में जल चढ़ाने के साथ-साथ परिक्रमा जरूर की जाती हैं. शास्त्रों के अनुसार किसी भी पूजा का संपूर्ण फल तभी मिलता है, जब पूजा के दौरान परिक्रमा की जाती है.
हिन्दू धर्म में परिक्रमा का बड़ा महत्त्व है. इसको ‘प्रदक्षिणा करना’ भी कहते है. ऐसी मान्यता है कि परिक्रमा करने से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं. शास्त्रों में कहा गया है ‘यानि कानी च पापानी ज्ञाता ज्ञात क्रतानि च, तानी सर्वाणी नश्यंति प्रदक्षिणे पदे पदे.’ यानी परिक्रमा के एक-एक पद चलने से ज्ञात-अज्ञात अनेकों पापों का नाश होता है. शिवपूजन में कई बातों का विशेष महत्व है, इन्हीं में से एक है शिवलिंग की परिक्रमा के नियम.
जानिए क्यों कि जाती हैं शिवलिंग की आधी परिक्रमा
शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने का विधान है, जिसे ‘अर्ध चंद्राकार परिक्रमा’ भी कहा जाता है.इसका कारण यह है कि शिवलिंग के आधार पर जलहरी (जलाधारी) होती है, जिसे लांघना (पार करना) उचित नहीं माना जाता है. जलहरी को शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक माना जाता है और इसे पार करने से ऊर्जा के प्रवाह में बाधा आ सकती है, जिससे शारीरिक और मानसिक समस्याएं हो सकती हैं. इसलिए, भक्त शिवलिंग की आधी परिक्रमा करते हैं, जलहरी तक जाकर वापस लौटते हैं.
शिवलिंग में ‘जलहरी’ का महत्व
शिवपुराण के मुताबिक, जलहरी को भूलकर भी नहीं लांघना चाहिए. इससे घोर पाप पड़ता है. दरअसल, जलहरी को शक्ति और ऊर्जा का भंडार माना जाता है. शिवलिंग पर अभिषेक करने के बाद जिस स्थान से जल प्रवाहित होता है इसे जलधारी, निर्मली या फिर सोमसूत्र कहा जाता है. इसके साथ ही जलहरी में भगवान गणेश, कार्तिकेय जी, शिव पुत्री अशोक सुंदरी के साथ मां पार्वती का वास होता है. ऐसे में जलहरी को लांघने से शारीरिक, मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.
यह भी पढ़ें: आज से 4 महीने तक शादी-ब्याह पर लग जाएगा रोक, आखिर क्यों सोने जा रहे हैं जगत के पालनहार?
किस तरह करें शिवलिंग की परिक्रमा
शिव पुराण के अनुसार, शिवलिंग की परिक्रमा करते समय कुछ नियमों का जरूर पालन करना चाहिए. हमेशा शिवलिंग की परिक्रमा अर्ध चंद्राकार रूप में करना चाहिए. शिवलिंग की परिक्रमा करते समय दिशा का ध्यान जरूर रखें. शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बाईं ओर से शुरू करें और जलाधारी तक जाकर विपरीत दिशा में लौटकर दूसरी ओर से फिर से परिक्रमा पूर्ण करें.कभी भी परिक्रमा दाएं ओर से शुरू न करें.