बच्चों में बढ़ रहा मोटापा, स्वास्थ्य के लिए खतरे की घंटी, AIIMS की स्टडी ने उड़ाए होश

AIIMS Study: AIIMS की स्टडी में भारत में बच्चों के बढ़ते मोटापे को लेकर चिंताजनक खुलासा किया है. जिसमें सामने आया कि मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसी कार्डियो-मेटाबोलिक समस्याएं अब बचपन से ही बच्चों को अपनी चपेट में ले रही हैं.
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बच्चों में बढ़ रहा मोटापे का खतरा

AIIMS Study: आज के समय में हम जैसी लाइफस्टाइल जी रहे हैं उससे न केवल बड़ों पर बल्कि इसका असर बच्चों पर भी होता रहा है. बिजी होने के कारण घर के हेल्दी खानों से हमारी दूरी बढ़ती जा रही है. इसकी जगह हम पैक्ड और जंक फ़ूड पर शिफ्ट होते जा रहे हैं, जिस कारण बड़ों के साथ-साथ बच्चों में भी कई तरह के हेल्थ इश्यूज सामने आ रहे हैं. इसी बीच अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की एक हालिया स्टडी ने होश उड़ने वाले खुलासे किए हैं.

AIIMS की स्टडी में भारत में बच्चों के बढ़ते मोटापे को लेकर चिंताजनक खुलासा किया है. जिसमें सामने आया कि मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसी कार्डियो-मेटाबोलिक समस्याएं अब बचपन से ही बच्चों को अपनी चपेट में ले रही हैं. विशेषज्ञों ने इसे एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बताया है, जो भविष्य में हृदय रोग, स्ट्रोक और टाइप-2 डायबिटीज जैसे रोगों का खतरा बढ़ा सकता है.

प्राइवेट स्कूलों में मोटापा पांच गुना अधिक

AIIMS और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा वित्तपोषित इस अध्ययन में 6 से 19 साल की उम्र के बच्चों को शामिल किया, जिनमें सरकारी स्कूलों और निजी स्कूलों से थे. अध्ययन में पाया गया कि निजी स्कूलों के बच्चों में मोटापा सरकारी स्कूलों की तुलना में पांच गुना अधिक है. निजी स्कूलों में 24.02% बच्चे अधिक वजन वाले और 22.70% मोटापे से पीड़ित हैं, जबकि सरकारी स्कूलों में यह आंकड़ा क्रमशः 7.63% और 4.48% है. इसके अलावा, कमर का मोटापा (Abdominal Obesity) निजी स्कूलों में 16.77% और सरकारी स्कूलों में केवल 1.83% बच्चों में देखा गया.

सामान्य दिखने वाले बच्चे भी जोखिम में

शोध में एक और चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि 43% स्कूली बच्चे मेटाबोलिकली ओबेस नॉर्मल वेट (MONW) की समस्या से ग्रस्त हैं. इसका मतलब है कि ये बच्चे बाहर से फिट या दुबले-पतले दिखते हैं, लेकिन उनके शरीर में कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड्स, हाई ब्लड प्रेशर या हाई ब्लड शुगर जैसे स्वास्थ्य जोखिम मौजूद हैं. यह स्थिति भविष्य में हृदय रोग और अन्य मेटाबोलिक बीमारियों का खतरा बढ़ा सकती है. विशेषज्ञों का कहना है कि अब केवल वजन के आधार पर बच्चों की सेहत का आकलन नहीं किया जा सकता, बल्कि समय-समय पर उनकी जांच जरूरी है.

फास्ट फूड और गतिहीन जीवनशैली मुख्य कारण

अध्ययन में बच्चों में मोटापे और संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं के लिए बदलती जीवनशैली और खानपान की आदतों को जिम्मेदार ठहराया गया है. फास्ट फूड की बढ़ती खपत, पैकेज्ड फूड का अधिक सेवन, और शारीरिक गतिविधियों में कमी इसके प्रमुख कारण हैं. बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है, जिसके चलते वे बाहर खेलने के बजाय मोबाइल, टीवी या कंप्यूटर पर समय बिताते हैं. इसके अलावा, नींद की कमी भी वजन बढ़ाने में योगदान दे रही है, क्योंकि अपर्याप्त नींद से कोर्टिसोल हार्मोन का स्तर बढ़ता है, जो शरीर में सूजन और वजन बढ़ने का कारण बनता है.

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डॉक्टरों की सलाह

AIIMS के डॉक्टरों ने माता-पिता, स्कूलों और नीति निर्माताओं से तत्काल कार्रवाई की अपील की है.

स्वस्थ आहार: बच्चों को फास्ट फूड और पैकेज्ड फूड से दूर रखें. ताजे फल, सब्जियां और संतुलित आहार को प्राथमिकता दें.

शारीरिक गतिविधि: बच्चों को रोजाना कम से कम एक घंटे खेलकूद, जैसे फुटबॉल, क्रिकेट या बैडमिंटन, में शामिल करें.

नींद का समय: बच्चों को 8-9 घंटे की पूरी नींद सुनिश्चित करें.

जागरूकता: माता-पिता और शिक्षकों को मोटापे के जोखिमों के बारे में जागरूक होने और इसे रोकने के उपायों को समझने की जरूरत है.

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