NDA का ‘वोट कटवा’ बनेंगे पवन सिंह या मारेंगे बाजी? काराकाट में ‘खेला’ होबे! 

पवन सिंह की सबसे बड़ी ताकत उनका राजपूत होना है. हालांकि यह कुशवाहा बहुल सीट है. कुशवाहा, राजपूत और यादव समुदाय के लगभग दो-दो लाख मतदाता हैं, डेढ़ लाख मुस्लिम मतदाता हैं.
पवन सिंह, उपेंद्र कुशवाहा

पवन सिंह, उपेंद्र कुशवाहा

Karakat Lok Sabha Election 2024: बीजेपी से बागी हुए भोजपुरी सिनेमा के पावर स्टार पवन सिंह बिहार के काराकाट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. अंतिम चरण में इस सीट पर भी मतदान हो रहा है. यहां से एनडीए के दिग्गज और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा चुनाव लड़ रहे हैं. इस बीच खबर आई कि पवन सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा को समर्थन दे दिया है. हालांकि, पवन सिंह ने झट से इस खबर को खारिज कर दिया.

अब उपेंद्र कुशवाहा का बयान भी सामने आया है. उन्होंने कहा,  “मुझे पूरे लोकसभा क्षेत्र से सकारात्मक खबरें मिल रही हैं और हमने जो सोचा है, वे उससे जुड़ रहे हैं. हमें पूरे बिहार से भी सकारात्मक खबरें मिल रही हैं. हम काराकाट सीट भारी मतों के अंतर से जीत रहे हैं.”

बीजेपी ने पवन सिंह को दिया था टिकट

दिलचस्प बात यह है कि पवन मार्च की शुरुआत में जारी भाजपा की लोकसभा चुनाव उम्मीदवारों की पहली सूची में शामिल थे. पार्टी ने उन्हें पश्चिम बंगाल के आसनसोल से मैदान में उतारा था. हालांकि, अगले ही दिन उन्होंने तृणमूल कांग्रेस के नेता और फिल्म स्टार शत्रुघ्न सिन्हा के खिलाफ चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. उस वक्त उन पर कुछ गानों में बंगाली महिलाओं के लिए अश्लील शब्दों का इस्तेमाल करने का आरोप लगा था. उस समय उन्होंने कहा था कि वह आरा, बक्सर या काराकाट से चुनाव लड़ सकते हैं.

रोजगार के मुद्दे को पवन सिंह ने खूब उठाया

ऐसा हुआ भी. पवन सिंह ने काराकाट से सीधे उपेंद्र कुशवाहा को चुनौती दे दी. प्रचार थमने तक पवन सिंह ने पूरी ताकत झोंक दी. पवन सिंह हर सभा में यह कहते नजर आ रहे थे, “मैं आपके प्यार और समर्थन से अभिभूत हूं. अगर मैं आपका सांसद चुना जाता हूं, तो मैं रोजगार पैदा करने, जैविक खेती को बढ़ावा देने, फिल्म उद्योग स्थापित करने, डालमियानगर में कारखानों को फिर से खोलने और आईटी पार्क स्थापित करने का प्रयास करूंगा.”

गायक की भूमिका निभाने से बचते दिखे पवन सिंह

पवन अपनी रैलियों में गायक की भूमिका निभाने से बचते दिखे, ताकि उनका राजनीतिक अवतार फीका न पड़ जाए. लेकिन उनकी प्रचार प्लेलिस्ट में उनके कई हिट गाने शामिल हैं, खासकर वे जो युवाओं के बीच लोकप्रिय हैं.

इस फैक्ट से कोई इनकार नहीं कर सकता कि पवन सिंह को युवाओं का समर्थन है.  लेकिन अंत में चुनाव जाति पर निर्भर करेगा.” वहीं, उपेंद्र कुशवाहा अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. उन्होंने पिछले साल ही , जिन्होंने पिछले साल ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अलग होकर अपनी नई पार्टी बनाई थी.

अपने लंबे राजनीतिक करियर में कुशवाहा ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. 2014 के लोकसभा चुनावों में उनकी तत्कालीन पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) ने एनडीए सहयोगी के तौर पर बिहार में लड़ी गई तीनों सीटों पर जीत हासिल की थी. तब वे खुद काराकाट से जीते थे. उसके बाद से वे बार-बार एनडीए और आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन गठबंधन के बीच अपनी वफादारी बदलते रहे हैं.

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कुशवाहा ने भी लगाई पूरी ताकत

इस बार भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ वापस आने पर कुशवाहा केवल एक काराकाट सीट पाने में सफल रहे हैं. उन्होंने राज्य की राजनीति में अपने समुदाय के एक प्रमुख चेहरे के रूप में खुद को बचाए रखने के लिए इस सीट को जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है. भाजपा ने एक कुशवाहा नेता सम्राट चौधरी को राज्य पार्टी अध्यक्ष के साथ-साथ उपमुख्यमंत्री के पदों पर पदोन्नत किया है, और विपक्षी दल इंडिया ब्लॉक (राज्य स्तर पर महागठबंधन) ने अब सात कुशवाहा उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जिससे उपेंद्र कुशवाहा के लिए काम आसान होता दिख रहा है. लेकिन पवन सिंह के जोर लगाने से उनको तगड़ा नुकसान भी हो सकता है.

हालांकि, इस चुनाव में कुशवाहा पवन सिंह का जिक्र करने से बचते नजर आए. पवन सिंह की सबसे बड़ी ताकत उनका राजपूत होना है. हालांकि यह कुशवाहा बहुल सीट है. कुशवाहा, राजपूत और यादव समुदाय के लगभग दो-दो लाख मतदाता हैं, डेढ़ लाख मुस्लिम मतदाता हैं. दरअसल, अगड़ी जाति के वोट कुशवाहा और पवन सिंह में बटेंगे तो इसका सीधा फायदा महागठबंधन प्रत्याशी को होगा.

काराकाट सीट का नंबर गेम

अगर काराकाट सीट का नंबर गेम देखें तो लगभग 3.25 लाख यादव, 2.40 लाख कुशवाहा, 1.5 लाख राजपूत, 1 लाख ब्राह्मण, 80,000 भूमिहार, 70,000 पासवान और 1.5 लाख रविदास समुदाय के मतदाता हैं. इस निर्वाचन क्षेत्र में नोखा, डेहरी, काराकाट, गोह, ओबरा और नबीनगर विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. इंडिया गठबंधन ने सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के राजा राम सिंह को मैदान में उतारा है, जो खुद भी कुशवाहा समुदाय से हैं. उनका अभियान मुख्य रूप से ग्रामीण इलाकों पर केंद्रित है. अगर समुदाय विशेष का वोट बंटा तो पवन सिंह यहां कुशवाहा साहब का खेल बिगाड़ सकते हैं. हालांकि, आज मतदान ही हो रहा है. नतीजे के लिए 4 तारीख तक इंतजार करना पड़ेगा.

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