पूर्वोत्तर को साधे बिना ‘अबकी बार 400 पार’ की राह आसान नहीं! जानें इन राज्यों में किस ओर बह रही है सियासी हवा
Lok Sabha Election 2024: पूर्वोत्तर भारत के 8 राज्यों में 26 लोकसभा सीटें 1989 में गठबंधन युग की शुरुआत तक एक परिशिष्ट की तरह थीं, जिसने क्षेत्रीय दलों को केंद्र में हितधारकों में बदल दिया. जनादेश 2024 से पहले, ये सीटें सभी रंग और आकार के राजनीतिक दलों के लिए अपने राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण हो गई हैं.लोकसभा चुनाव में पूर्वोत्तर के राज्य गेमचेंजर के रूप में देखे जा रहे हैं. यहां के 8 राज्यों में कुल मिलाकर 26 सीटें हैं, जो गुजरात, राजस्थान और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों जितनी ताकत रखती हैं. जो भी यहां जीतेगा, उसे अच्छी बढ़त मिल जाएगी. बीजेपी के ‘400 पार वाले’ नारे को नतीजे में बदलने के लिए पूर्वोत्तर के ये राज्य अहम हैं.
असम के ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) और मिजोरम के सत्तारूढ़ ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट को छोड़कर,पूर्वोत्तर में अधिकांश क्षेत्रीय दल भाजपा के नेतृत्व वाले नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस के सदस्य हैं. अगर नॉर्थ ईस्ट की सीटों की बात करें तो इनमें सबसे ज्यादा संसदीय क्षेत्र असम (14) में हैं. जबकि मणिपुर, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में दो-दो लोकसभा सीटें हैं, शेष राज्यों – सिक्किम, नागालैंड और मिजोरम – को संसद के निचले सदन में एक-एक सीट आवंटित की गई है.
नॉर्थ-ईस्ट में कौन किसपर भारी?
बता दें कि 2019 के आम चुनाव में बीजेपी को असम की 14 लोकसभा सीटों में से 7 सीटों पर जीत मिली थी जबकि कांग्रेस को महज तीन सीटें मिलीं. वहीं AIUDF को 3 सीटों पर जीत मिली थी और एक सीट निर्दलीय प्रत्याशी के खाते में गई थी. वहीं ZEE-Matrize ओपिनियन पोल में असम में इस बार भी NDA का जलवा बरकरार रहेगा.
ओपिनियन पोल के मुताबिक, असम में इस बार NDA को 11 सीट, I.N.D.I.A. गठबंधन को 1 सीट पर जीत मिल सकती है जबकि अन्य के खाते में 2 सीटें जाती दिख रही हैं. अगर अरुणाचल प्रदेश की बात करें तो वहां लोकसभा की दो सीटें हैं 2019 में बीजेपी ने दोनों सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि कांग्रेस का खाता नहीं खुल पाया था.
विकास के जरिए नॉर्थ ईस्ट को साधने की कोशिश
हाल के महीनों में कई बार पीएम मोदी ने पूर्वोत्तर का दौरा किया है. पीएम मोदी ने अरुणाचल के ईटानगर में‘विकसित भारत, विकसित उत्तर पूर्व’कार्यक्रम के तहत 10,000 करोड़ रुपये की उन्नति योजना की शुरुआत भी की थी. इसके अलावा उन्होंने मणिपुर, मेघालय, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में करीब 55,600 करोड़ रुपये की कई विकास परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया था.
कभी कांग्रेस का गढ़ था पूर्वोत्तर
बता दें कि पूर्वोत्तर कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, लेकिन 2016 के बाद यहां मोदी और शाह की जोड़ी का ऐसा जादू चला कि आठ में 6 राज्यों की सत्ता पर भाजपा ने कब्जा जमा लिया. इनमें ज्यादातर राज्यों में गठबंधन सरकार है. सबसे पहले भाजपा ने 2016 में असम और अरुणाचल प्रदेश में पताका फहराई थी. 2019 में भाजपा अरुणाचल फिर जीती और असम में 2021 में जीत दोहराई. मणिपुर में भी 2017 और 2022 में जीत मिली. नगालैंड, मेघालय में भाजपा गठबंधन से सत्ता में है. हालांकि इस बार मेघालय में भाजपा और एनपीपी ने अलग-अलग चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. मिजोरम और सिक्किम में भी भाजपा गठबंधन कर सत्ता में बनी हुई है.
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पूर्वोत्तर की अहम सीट
अरुणाचल पश्चिम
केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता किरण रिजिजू 2024 के चुनाव में इस सीट से लगातार तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. वह पहली बार 2004 के चुनावों में इस निर्वाचन क्षेत्र से जीते थे लेकिन 2009 के चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवार तकम संजय से हार गए थे.रिजिजू को बीजेपी ने एक बार फिर अरुणाचल पश्चिम से मैदान में उतारा है. उनका मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नबाम तुकी से है. रिजिजू ने 2019 के चुनाव में तुकी को 1.74 लाख से अधिक वोटों से हराया.
मणिपुर
कभी कांग्रेस का गढ़ रही यह सीट पिछले चुनाव में भाजपा के डॉ. आरके रंजन सिंह ने छीन ली थी, जब उन्होंने सबसे पुरानी पार्टी का प्रतिनिधित्व करने वाले ओइनम नबकिशोर सिंह को 17,000 से अधिक वोटों से हराया था. 2024 में बीजेपी ने इनर मणिपुर से थौनाओजम बसंत कुमार सिंह को मैदान में उतारा है. वह राज्य के शिक्षा और कानून मंत्री हैं. वह कांग्रेस के नवोदित उम्मीदवार डॉ. अंगोमचा बिमोल अकोइजाम के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं, जो दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में शिक्षक हैं.
शिलांग
2009 से इस लोकसभा क्षेत्र पर कांग्रेस नेता विंसेंट पाला का कब्जा है, जो अब यहां से लगातार चौथी बार चुनाव लड़ रहे हैं. 2019 में पाला ने यूडीपी के जेमिनो मावथोह को 1.5 लाख से ज्यादा वोटों से हराया. इस बार उनका मुकाबला यूडीपी के रॉबर्टजुन खारजहरीन से है.
मिजोरम
मिजोरम की एकमात्र लोकसभा सीट वर्तमान में मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के सी लालरोसांगा के पास है. अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस निर्वाचन क्षेत्र में 2024 के लोकसभा चुनाव में ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम), एमएनएफ, भाजपा और कांग्रेस के बीच बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है.
नगालैंड
नागालैंड में एकमात्र संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के नेता तोखेहो येपथोमी द्वारा किया जाता है, जिन्होंने 2019 में कांग्रेस उम्मीदवार केएल चिशी को 16,000 से अधिक वोटों से हराया था. इस बार एनडीपीपी ने चुम्बेन मरी को अपना उम्मीदवार बनाया है. उनका मुकाबला कांग्रेस के एस सुपोंगमेरेन जमीर से है.
त्रिपुरा पश्चिम
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) का गढ़, यह सीट 2019 के चुनावों में भाजपा की प्रतिमा भौमिक ने छीन ली थी. वह 3 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीतीं. यहां से लगातार दूसरी बार जीत हासिल करने के लिए बीजेपी ने इस बार पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब को मैदान में उतारा है. कांग्रेस का प्रतिनिधित्व उसके प्रदेश अध्यक्ष आशीष कुमार साहा कर रहे हैं.
क्या रहा 2019 के चुनाव का परिणाम
बता दें कि भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में मेघालय की दो सीटों और मणिपुर की एक सीट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा था. एनपीएफ और एनडीपीपी ने वे सीटें जीती थीं जिन पर भाजपा ने 2019 में उन्हें समर्थन दिया था. एनपीपी ने मेघालय की दो में से एक सीट जीती थी. सूत्रों ने कहा कि मणिपुर में जातीय संघर्ष के राजनीतिक परिणाम ने संभवतः भाजपा को इन निर्वाचन क्षेत्रों में इन क्षेत्रीय दलों का समर्थन करने के लिए मजबूर किया है, जहां ईसाई समुदाय की बड़ी आबादी है. इन क्षेत्रीय दलों ने अक्सर केंद्र में भाजपा नीत सरकार का समर्थन किया है.