52 फीसदी मुसलमानों की आबादी, फिर भी आज तक नहीं जीत पाया कोई मुस्लिम उम्मीदवार…जानें बहरामपुर लोकसभा सीट का सियासी समीकरण

साल 1952 से बहरामपुर लोकसभा सीट पर रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी का दबदबा था. रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के त्रिदिब चौधरी ने लगातार सात बार यहां से जीत हासिल कर 1984 तक सांसद रहे थे.
Baharampur Lok Sabha Seat

अधीर रंजन चौधरी, यूसुफ पठान

Baharampur Lok Sabha Seat: पश्चिम बंगाल में एक लोकसभा सीट ऐसी भी है जहां मुसलमानों की आबादी 52 फीसदी है. लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि आज तक के इतिहास में इस सीट से किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को जीत नहीं मिली है. इस सीट का नाम है बहरामपुर. बहरामपुर लोकसभा सीट इस बार के चुनाव में भी दिलचस्प लड़ाई के लिए तैयार है. कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी के विजय रथ को रोकने के लिए बंगाल में सरकार चला रही तृणमूल कांग्रेस यानी टीएमसी ने क्रिकेटर से नेता बने यूसुफ पठान को टिकट दिया है.

पिछले चुनाव में अधीर रंजन चौधरी ने 81000 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी. हालांकि, इस बार अधीर रंजन चौधरी को मुस्लिम उम्मीदवार से चुनौती मिल रही है. बीजेपी ने इस सीट से निर्मल साहा को टिकट दिया है. निर्मल साहा के लिए यूपी के मुख्यमंत्री योगी जनसभा संबोधित कर चुके हैं. बीजेपी इस बार यहां के हिंदू वोटरों को एकजुट करने की कोशिश में है. पार्टी को उम्मीद है कि यहां अगर अधीर रंजन चौधरी और यूसुफ पठान के बीच मुस्लिम वोटों का बंटवारा हुआ तो बीजेपी को इससे फायदा मिल सकता है.

बहरामपुर का जातीय समीकरण

अगर जातीय समीकरण की बात करें तो बहरामपुर में 52 फीसदी मुसलमान के अलावा 13.2 फीसदी एससी और 0.9 फीसदी एसटी समाज के मतदाता हैं. ईसाई 0.25 फीसदी, जैन 0.04 फीसदी और सिख 0.01 फीसदी है. इस लोकसभा सीट पर हिंदुओं की भी अच्छी खासी आबादी है.

1999 से बहरामपुर अधीर रंजन का किला

बता दें कि बहरामपुर 1999 से कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी का गढ़ रहा है. अधीर रंजन चौधरी पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं. बहरामपुर लोकसभा क्षेत्र के लिए मतदान चौथे चरण में 15 मई को होगा. दिलचस्प बात यह है कि पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस अभी तक यह सीट नहीं जीत पाई है. यह देखना होगा कि क्या ‘बाहरी व्यक्ति’ के रूप में यूसुफ पठान टीएमसी के लिए ऐसा कर पाएंगे या नहीं?

7 विधानसभा सीट में से 6 टीएमसी के पास

बहरामपुर लोकसभा सीट में बुनीन, कंडी, बेलडेंग्स, नाओदा, भरतपुर, बहरामपुर और रेजनगर 7 विधानसभा क्षेत्र हैं. वे सभी मुर्शिदाबाद जिले में आते हैं, जहां छह सीटों पर टीएमसी का शासन है और भारमपुर विधानसभा क्षेत्र पर भाजपा का कब्जा है, दिलचस्प बात यह है कि बहरामपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के तहत कांग्रेस के पास एक भी विधानसभा सीट नहीं है.

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पहले रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी का था दबदबा

बता दें कि साल 1952 से बहरामपुर लोकसभा सीट पर रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी का दबदबा था. रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के त्रिदिब चौधरी ने लगातार सात बार यहां से जीत हासिल कर 1984 तक सांसद रहे थे. साल 1984 में पहली बार अतिश चंद्र सिन्हा में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर जीते, लेकिन 1991 के चुनाव में फिर रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के पास यह सीट चली गई.

साल 1998 से लेकर 1993 तक रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी की नानी भट्टाचार्य निर्वाचित होती रहीं. उनके बाद रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी प्रमोथ्स मुखर्जी साल 1994 से लेकर 1999 तक सांसद रहे. लेकिन 1999 में कांग्रेस अधीर रंजन चौधरी इस सीट पर जीत हासिल की और पिछले पांच चुनावों में वह इस सीट से जीत हासिल कर रहे हैं.

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