पूर्व CM दिग्विजिय सिंह ने कांग्रेस के कार्यक्रम में मंचों से बनाई दूरी, क्या बोले जीतू पटवारी?
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह
Digvijaya Singh: मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने पार्टी के कार्यक्रमों के मंच से दूरी बना ली है. उन्होंने कार्यक्रमों में मंच पर नहीं बैठने का फैसला लिया है. पूर्व CM ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए बताया कि उन्होंने यह फैसला मंच टूटने जैसी घटनाओं और नेता समर्थकों के मंच पर कब्जे को देखते हुए लिया है. अब इस पर MP PCC चीफ जीतू पटवारी की प्रतिक्रिया भी सामने आई है.
दिग्विजय सिंह ने मंच से बनाई दूरी
पूर्व CM दिग्विजय सिंह ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए लिखा- ‘कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रमों में मंच पर नहीं बैठने के निर्णय के संबंध में. कांग्रेस को कार्यकर्ताओं के बीच रहना होगा. मेरा मंच पर न बैठने का निर्णय केवल व्यक्तिगत विनम्रता नहीं बल्कि संगठन को विचारधारात्मक रूप से सशक्त करने की सोच को लेकर उठाया गया कदम है. यह निर्णय कांग्रेस की मूल विचारधारा- समता, अनुशासन और सेवा का प्रतीक है. आज कांग्रेस का कार्य करते हुए कार्यकर्ताओं को नया विश्वास और हौसला चाहिए. इसके लिए संगठन में जितनी सादगी होगी उतनी सुदृढ़ता आएगी.’
‘राहुल गांधी ऐसी मिसाल पेश कर चुके हैं…’
उन्होंने आगे लिखा- ‘मैंने मध्य प्रदेश में 2018 में “पंगत में संगत” और 2023 में “समन्वय यात्रा” के दौरान भी मंच से परहेज किया, जिसका एकमात्र उद्देश्य रहा है कि कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच कोई दूरी न रहे और भेदभाव पैदा करने वालों को सामंजस्य की सीख दी जा सके. खुद राहुल गांधी जी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहते हुए ऐसी मिसाल प्रस्तुत कर चुके हैं. 17 मार्च 2018 को दिल्ली में तीन दिवसीय कांग्रेस का पूर्ण राष्ट्रीय अधिवेशन इस बात का गवाह रहा है. उस अधिवेशन में राहुल जी, सोनिया गांधी जी सहित सभी वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता मंच से नीचे दीर्घा में ही बैठे थे. यहां तक कि स्वागत-सत्कार भी मंच से नीचे उनके बैठने के स्थान पर ही हुआ. मैं समझता हूं वह फैसला कांग्रेस पार्टी का सबसे सफलतम प्रयोग था.’
उन्होंने आगे लिखा- ‘कांग्रेस अपनी शुरुआत से ही ऐसे उदाहरणों से भरी हुई है. महात्मा गांधी से लेकर राहुल गांधी तक अनेक मौकों पर नेताओं का जनता के बीच में रहना और उनके साथ बैठना मिसाल बनता रहा है. असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी प्रायः मंच पर न बैठकर जमीन पर आमलोगों के साथ ही बैठा करते थे. एक प्रसिद्ध घटना में जब वे किसी सभा में बोलने गए तो आयोजकों ने उनके लिए मंच पर कुर्सी रखी थी, लेकिन गांधी जी ने उसे ठुकरा दिया और जमीन पर चटाई बिछाकर बैठ गए. उनका कहना था कि वे लोगों के बीच कोई भेदभाव नहीं चाहते और सभी के साथ एक समान व्यवहार करना चाहते हैं. इससे उनकी विनम्रता और समानता के प्रति प्रतिबद्धता स्पष्ट होती थी. गांधी जी का यह व्यवहार उनकी जीवनशैली और दर्शन का हिस्सा था जो सादगी और समानता पर आधारित था.’
पूर्व CM दिग्विजय सिंह ने अपनी पोस्ट में आगे लिखा- ’28 अप्रैल 2025 को ग्वालियर में कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रमों में मंच पर नहीं बैठने का निर्णय न तो मेरे लिए नया है और न ही कांग्रेस पार्टी के लिए। कांग्रेस पार्टी सदैव कार्यकर्ताओं की पार्टी रही है. केंद्र या राज्यों में जब-जब भी कांग्रेस पार्टी सत्ता में रही है तो वह कार्यकर्ताओं के ही बल पर रही है. संगठन के बल पर रही है. जब नेतृत्व को कार्यकर्ताओं का समर्थन मिला है तभी पार्टी सत्ता में आई है, लेकिन पिछले कुछ सालों में मैंने अनुभव किया है कि जिन्हें मंच मिलना चाहिए वे उससे वंचित रह जाते हैं और नेताओं के समर्थक मंच पर अतिक्रमण कर लेते हैं। जिससे बेवजह मंच पर भीड़ होती है, अव्यवस्था फैलती है और कई बार मंच टूटने जैसी अप्रिय घटनाएं भी हो जाती हैं. कांग्रेस पार्टी का जन्म स्वतंत्रता आंदोलन से हुआ है. इसके मूल विचार में सदैव समानता, स्वतंत्रता, न्याय, सहयोग और आम आदमी से जुड़ने की भावना और उसका कल्याण रहा है. कांग्रेस के लिए विचार प्रथम और सत्ता द्वितीय स्थान पर रही है.’
बताई मंच पर नहीं बैठने की वजह
पूर्व CM दिग्विजय सिंह ने अपनी पोस्ट में मंच पर नहीं बैठने की वजह भी बताई है. उन्होंने आगे लिखा- मंच पर नहीं बैठने के निर्णय के पीछे निम्नलिखित भावनाएं हैं-
समानता की भावना को बढ़ावा: कांग्रेस पार्टी में कार्यकर्ताओं की शिकायत बढ़ती जा रही है कि बड़े नेता उन्हें अपने समान नहीं समझते और उन्हें उतना महत्व नहीं देते. पार्टी में कोई छोटा या बड़ा नहीं है. जब वरिष्ठ नेता स्वयं मंच पर बैठने से परहेज करते हैं तब यह संदेश जाता है कि पार्टी के लिए काम करने वाले सभी कांग्रेस जन एक समान महत्व रखते हैं. इससे संगठनात्मक एकता और सामूहिकता को बल मिलता है.
पद के प्रभाव की बजाय कार्य को प्राथमिकता: कांग्रेस पार्टी ने पद की बजाय काम के महत्व के आधार पर ही स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया था. पार्टी में सदैव पद की बजाय कार्यकुशलता अधिक महत्वपूर्ण रहा है. इससे जमीनी कार्यकर्ताओं में यह सोच विकसित होती है कि पार्टी में पहचान अच्छे कार्य करने से बनेगी, न कि केवल मंच पर उपस्थिति से.
अनुशासन और स्पष्ट संरचना का निर्माण: मंच पर केवल मुख्य अतिथि, प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष को बैठाने की नीति से कार्यक्रमों में स्पष्टता और अनुशासन आएगा. इससे अव्यवस्था, असमंजस और आंतरिक प्रतिस्पर्धा जैसी समस्याएं दूर होंगी. मंच टूटने जैसी घटनाओं से बचा जा सकेगा.
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सम्मान की एक जैसी प्रक्रिया: गुलदस्ता और सम्मान केवल जिला अध्यक्ष द्वारा किए जाने की व्यवस्था से कार्यक्रमों की गरिमा बनी रहेगी और कार्यकर्ता अपने वरिष्ठों को सामूहिक रूप से सम्मान देने का अवसर पाएंगे. यह व्यक्तिगत प्रभाव के प्रदर्शन के बजाय सामूहिकता का प्रतीक होगा.
नेतृत्व की सादगी से कार्यकर्ताओं को प्रेरणा: जब बड़े नेता सादगी और समानता का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं तो कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा और समर्पण की भावना जागृत होती है. वे अपने नेताओं को दूर या अभिजात्य वर्ग का नहीं मानते बल्कि संघर्षशील और सच्चा नेतृत्व मानते हैं. इससे पार्टी को वास्तविक शक्ति मिलती है। मेरी यही भावना है.
संगठनात्मक मजबूती और दीर्घकालिक प्रभाव: इस निर्णय में कांग्रेस पार्टी में विलुप्त होते जा रहे अपने मूल विचारों को पुनर्जीवित करने का भाव है, जो पद और दिखावे की राजनीति से हटकर सेवा और कार्य आधारित राजनीति को महत्व देता है. इससे पार्टी की जड़ें मजबूत होंगी.
उन्होंने लिखा- ‘अंत में इतना ही कहना चाहूंगा कि मंच पर न बैठने का मेरा फैसला केवल व्यक्तिगत विनम्रता नहीं बल्कि संगठनात्मक जरूरत भी है. कांग्रेस को विचारधारात्मक रूप से सशक्त करने की सोच और अनुशासन की सीख से ही समानता और सेवा का उद्देश्य प्राप्त होगा. कार्यकर्ताओं में नया विश्वास और नई मंजिल को पाने की ललक ही हम सबको आगे ले जाएगी.’
MP PCC चीफ जीतू पटवारी ने दी प्रतिक्रिया
पूर्व CM दिग्विजय सिंह के इस फैसले पर MP PCC चीफ जीतू पटवारी ने प्रतिक्रिया देते हुए लिखा- ‘कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह की भावनाओं का सम्मान करते हैं. वह लोक भावना को समझते हैं. उन्होंने इस बारे में मुझसे बात की है.’