Lok Sabha Election 2024: क्या BJP की मजबूरी हैं कमलनाथ? परिवार के आगे हर मैजिक रहा फेल

Lok Sabha Election 2024: आगामी लोकसभा चुनाव से पहले कमलनाथ के बीजेपी में आने की चर्चा क्यों हो रही है?
Kamalnath

पूर्व सीएम कमलनाथ (फोटो- सोशल मीडिया)

Lok Sabha Election 2024: आगामी चुनाव से पहले बीजेपी ने अपनी रणनीति को हर स्तर पर धार देना शुरू कर दिया है. बीते चुनाव में उत्तर भारत की जिन सीटों पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था उसके लिए पार्टी इस बार खास तैयारी कर रही है. लेकिन बीते दो चुनावों में बीजेपी के लिए कुछ सीटें ऐसी रहीं जहां विपक्ष के गढ़ को भेदा नहीं पाई है. विपक्ष के उस गढ़ में न बीजेपी की रणनीति काम आई और न ‘मोदी मैजिक’ काम आया.

कांग्रेस का अभेद्य किला रहा गुना और अमेठी में बीते चुनाव के दौरान पार्टी को हार झेलनी पड़ी. बीजेपी ने इन दो सीटों का तोड़ तो खोज लिया लेकिन मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा और उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट पर पार्टी के लिए कोई मैजिक काम नहीं कर पाया. अब फिर से आगामी चुनाव के लिहाज से इन दो सीटों पर बीजेपी तैयारी कर रही है. लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर कमलनाथ बीजेपी की मजबूरी क्यों हो गए हैं.

9 बार सांसद रह चुके हैं कमलनाथ

दरअसल, छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर पहली बार 1951 में लोकसभा चुनाव हुआ था. तभी से इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है. इसी सीट से कमलनाथ 9 बार सांसद रह चुके हैं. 1980 से कमलनाथ इस सीट पर 1996 तक सांसद रहे और लगातार चार चुनाव जीता. अभी वतर्मान में उनके बेटे नकुलनाथ सांसद हैं. हालांकि 1996 में कमलनाथ पर हवाला कांड का आरोप लगा और कांग्रेस ने उनकी पत्नी को टिकट दिया था.

तब कमलनाथ की पत्नी इस सीट से सांसद चुनी गई थीं. लेकिन अगले साल ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद छिंदवाड़ा में उपचुनाव हुआ. इसी उपचुनाव में कांग्रेस और कमलनाथ की हार हो गई. तब उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने हराया था. यही एक हार इस सीट पर अभी तक अपवाद है. इसके बाद कभी कमलनाथ और कांग्रेस की छिंदवाड़ा में हार नहीं हुई, फिर कमलनाथ ने यहां से लगातार पांच बार चुनाव जीता और सांसद बने.

बीते चुनाव में उनके बेटे नकुलनाथ को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया और नकुलनाथ ने पिता से मिली जिम्मेदारी को आगे बढ़ाया. एमपी की इस सीट पर बीजेपी का कोई मैजिक काम नहीं कर पाया है. आंकड़ों को देखा जाए तो 1980 से ही इस सीट पर कमलनाथ और उनके परिवार का कब्जा रहा है. बीते आम चुनाव में जीत का अंतर करीब 37 हजार वोटों का ही रहा है. जबकि विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी की प्रचंड जीत का असर छिंदवाड़ा में नहीं दिखा.

बीजेपी के प्रचंड जीत का असर नहीं

इस इलाके की पांचों सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की. इसके अलावा जिले के अंतर्गत आने वाली सातों विधानसभा सीटों जुन्नारदेव, सौंसर, पंधुरना, अमरवारा, छिंदवाड़ा, चौरई और परासिया कांग्रेस में कांग्रेस ने जीत दर्ज की. बीजेपी की प्रचंड जीत का असर यहां नहीं दिखा. लेकिन अब चुनाव के बाद बीजेपी ने अपनी रणनीति को फिर से दुरुस्त करना शुरू किया है. चुनाव के परिणाम आने के बाद अगले दिन ही बतौर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने छिंदवाड़ा का दौरा किया था.

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बीते दो लोकसभा चुनावों के लिहाज से देखा जाए तो इस सीट पर कांग्रेस की जीत का अंतर 1,16,537 से घटकर 37,536 पर आ गया है. बीजेपी ने कांग्रेस के वोटर्स में अपनी पैठ जरूर बनाई है. इसके बाद भी कांग्रेस के गढ़ को भेद नहीं पाई है. यही वजह समझी रही है कि इन दिनों में बीजेपी की मजबूरी कमलनाथ बन गए हैं. बीजेपी का हर गणित उनके परिवार के आगे ‘कमल’ खिला पाने में फेल रहा है.

कुछ दिनों से कमलनाथ के बीजेपी में आने की अटकलें भी शुरू हुई हैं. दूसरी ओर नकुलनाथ ने फिर से लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. यानी देखा जाए तो विपक्ष में कोई भी हो उसका मुकाबला एक बार फिर कमलनाथ के परिवार से होना तय है. ये भी एक बीजेपी के लिए एक चुनौती ही है. राजनीति के जानकार कहते हैं कि अब बीजेपी अपने लिए सेफ गेम के साथ मजबूरी को मजबूती बनाना चाहती है.

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