MP में 56 हजार डॉक्टर, विभाग के पास 80 प्रतिशत की जानकारी ही रजिस्टर्ड, 5000 का KYC हुआ नहीं, टल सकते हैं मेडिकल काउंसिल के चुनाव

MP News: जानकारी के अनुसार मप्र मेडिकल काउंसिल में 1939 से अब तक करीब 56 हजार डॉक्टर रजिस्टर्ड हैं. इनका दोबारा सत्यापन नहीं कराया गया था.
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प्रतीकात्मक इमेज

MP News: प्रदेश में पहली बार होने जा रहे मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल के चुनाव एक बार फिर टल सकते हैं. वजह – विभाग के पास प्रदेश के 50 हजार से ज्यादा डॉक्टरों की जानकारी ही नहीं हैं. जब तक ये डॉक्टर सामने नहीं आएंगे, तब तक चुनाव प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया जा सकेगा.

दरअसल, इस चुनाव में बैलेट पेपर का इस्तेमाल किया जाना है. बैलेट पेपर डाक के माध्यम से डॉक्टरों के रजिस्टर्ड पते पर भेजा जाना था. जब इस प्रक्रिया की शुरुआत हुई, तो पता चला कि करीब 80 फीसदी डॉक्टरों के पते ही नहीं मिल रहे हैं. अब चिकित्सा शिक्षा विभाग पहले डॉक्टरों की तलाश करेगा, इसके बाद चुनावों की प्रक्रिया आगे बढ़ सकेगी. मालूम हो कि मप्र मेडिकल काउंसिल में 56 हजार डाक्टर पंजीकृत हैं. यह पंजीकरण 1939 से है. इनमें कई डॉक्टर मप्र छोड़ चुके हैं और कई का निधन हो चुका है, लेकिन काउंसिल में उनका पंजीयन अब तक कायम है। इधर, अधिकारियों का कहना है कि चुनाव प्रक्रिया के लिए चुनाव अधिकारी की नियुक्ति की गई थी, जिसे रद्द कर दिया गया. अब नए चुनाव अधिकारी की नियुक्ति के बाद ही प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाएगी.

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दो साल पहले मेडिकल काउंसिल ने कराया था री-वेरिफिकेशन

जानकारी के अनुसार मप्र मेडिकल काउंसिल में 1939 से अब तक करीब 56 हजार डॉक्टर रजिस्टर्ड हैं. इनका दोबारा सत्यापन नहीं कराया गया था. मप्र मेडिकल काउंसिल द्वारा करीब दो साल पहले इन डॉक्टरों का रिकॉर्ड अपडेट करने के लिए री- वेरिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू ई थी. इसमें मध्य प्रदेश के प्रत्येक डॉक्टर को री-वेरिफिकेशन कराना जरूरी था. इस प्रक्रिया को काउिं द्वारा शुद्धीकरण का नाम दिया गया था. इसमें डॉक्टरों से ऑनलाइन सत्यापन करने को कहा गया था, लेकिन महज 24 हजार डॉक्टर ही री-वेरिफिकेशन के लिए मिले. इनमें भी महज 5,000 डॉक्टरों का केवाईसी हो पाया था. ऐसे में विभाग के पास 56 हजार में से महज 5000 डॉक्टरों की ही जानकारी उपलब्ध है.

वेरिफिकेशन कराने में जुटा एसोसिएशन, डॉक्टर में बने कई गुट

डॉ राकेश मालवीय का कहना है कि काउंसिल जैसी संस्थाएं अध्यक्ष व कार्यकारिणी का चुनाव करती हैं. मेडिकल काउंसिल में भी प्रविधान है, पर डाक्टरों में कई गुट होने के चलते चुनाव पर सहमति नहीं बन पा रही थी. निर्वाचित अध्यक्ष नहीं होने पर स्वास्थ्य या चिकित्सा शिक्षा विभाग के आयुक्त या संचालक को अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जाती रही है. काउंसिल डाक्टरों का पंजीयन, इसके नियम, डाक्टरों के विरुद्ध शिकायतों की सुनवाई करती है. मतदाता सूची में 80 फीसदी डॉक्टरों के पते गलत हैं. हमने विभागीय मंत्री और पीएस से मतदाता सूची को ठीक करने के लिए आवेदन दिया है. जब तक यह काम नहीं होता है, तब तक चुनावी प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकती.

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