MP Politics: कमलनाथ के गढ़ में सेंध लगाने के लिए BJP का ‘मिशन-29’ एक्टिव, छिंदवाड़ा में ‘मोहन’ की हुंकार
MP Politics: कमलनाथ के कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल होने की अटकलों पर चले राजनैतिक ड्रामे के बाद ये तो तय हो गया कि कमलनाथ बीजेपी में शामिल नहीं हो रहे है. वहीं अब यह भी तय माना जा रहा है कि कमलनाथ कांग्रेस के साथ रहकर बीजेपी के खिलाफ लोकसभा चुनावों में सक्रिय रहेंगे .ऐसे में बीजेपी भी ”मिशन 29″ को लेकर छिंदवाड़ा में एक बार फिर एक्टिव हो गई है. लोकसभा में कांग्रेस के पास मध्य प्रदेश में एकमात्र सीट छिंदवाड़ा ही है जिसे जीतने को लेकर बीजेपी पूरी मेहनत कर रही है.
कमलनाथ के किले पर बीजेपी की नजर
बीजेपी जानती है कि भले ही उसने मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों में प्रदेशभर में जीत हासिल की हो, पर कमलनाथ के प्रभाव वाले छिंदवाड़ा में अपनी जमीन बनाना अब भी बीजेपी के लिए मुश्किल ही रहा है. मसलन अगर बात करें छिंदवाड़ा की तो वहां की सातों विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा है. वहीं लोकसभा का इतिहास भी “कमलनाथ के छिंदवाड़ा और छिंदवाड़ा के कमलनाथ ” होने की तरफ इशारा करता है. 80 के दशक से लेकर अब तक यानी बीते 44 सालों में एक बार ही साल 1997 में ऐसा मौका आया था, जब सुंदरलाल पटवा ने कमलनाथ को पटकनी दे दी थी. पर वो भी अब से करीब 26 साल पुरानी बात हो गई. बीते सालों में कमलनाथ ने छिंदवाड़ा पर लगातार अपना प्रभाव बढ़ाया है और अब उनके बेटे भी पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं .
छिंदवाड़ा में बीजेपी लीडर्स का बैक टू बैक दौरा
बीजेपी के लिए छिंदवाड़ा को जीतना कितना मुश्किल है, इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि बीते 6 महीने में बीजेपी के बड़े नेता चाहे वो कैलाश विजयवर्गीय हो या प्रहलाद पटेल छिंदवाड़ा का दौरा कर चुके हैं. विधानसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद तब के सीएम शिवराज चौहान का वो बयान किसे याद नहीं होगा जब शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि ‘मैं दिल्ली नहीं जाऊंगा छिंदवाड़ा जाऊंगा.’ वहीं मध्य प्रदेश के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा भी अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरते ये कहते दिखाई दे जाते हैं कि ‘मध्य प्रदेश की 29 सीट जीत कर 29 कमल की माला पीएम मोदी को सौंपनी है’.
अटकलों के बाद फिर एक्टिव हुई बीजेपी
ऐसे में बीते दिनों कमलनाथ के बीजेपी में शामिल होने की सुगबुगाहट तेज होने पर भले ही बीजेपी ने अपनी सक्रियता कम कर दी थी. पर जैसे ही कमलनाथ को लेकर स्थिति स्पष्ट हुई बीजेपी एक बार फिर छिंदवाड़ा में एक्टिव हो गई है. आज प्रदेश के मुखिया सीएम मोहन यादव छिंदवाड़ा और बालाघाट के दौरे पर रहे जहां वो क्षेत्र की जनता को करोड़ों की सौगात देंगे. सीएम बनने के बाद से ये दूसरा मौका है जब सीएम यादव छिंदवाड़ा का दौरा करेंगे. बीजेपी नेताओं के लगातार दौरे और छिंदवाड़ा में अपनी जमीन खोजते बीजेपी नेता जानते हैं कि कमलनाथ के गढ़ में सेंध लगाना किसी पहाड़ को तोड़ने से कम नहीं.
छिंदवाड़ा में कमलनाथ की ताकत
साल 1977 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को उत्तर भारत में बुरी हार का सामना करना पड़ा पर छिंदवाड़ा में कांग्रेस ने जीत हासिल की. कांग्रेस के गढ़ में 1991 में सुंदरलाल पटवा ने ताकत आजमाते हुए छिंदवाड़ा के विधायक और मंत्री चौधरी चंद्रभान को उतारा पर कमलनाथ के सामने वो भी न टिक सके. 2003 में मध्यप्रदेश में उमा भारती की सरकार बनी तो 2004 के लोकसभा चुनावों में उमा ने प्रहलाद पटेल को उतारा पर वो भी कोई कमाल न कर सके. तब से लेकर अब तक छिंदवाड़ा में प्रत्याशी आए और गए. पर कमलनाथ को हरा पाने में किसी को सफलता नहीं मिल सकी. इस लगातार जीत के पीछे के जादू के बारे में जानकार कहते हैं कि गांधी परिवार के करीबी कमलनाथ का छिंदवाड़ा की जनता से सीधा जुड़ाव है. आज भी जब भी कमलनाथ छिंदवाड़ा पहुंचते हैं तो कई गांव के लोगों से खुद सीधा संपर्क करते हैं. छिंदवाड़ा के लोगों के लिए कमलनाथ के घर के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं जानकार कहते हैं कि कमलनाथ का क्षेत्र की जनता से सीधा जुड़ाव है.
मोदी लहर में भी कमलनाथ की जीत
साल 2014 में देशभर में मोदी लहर थी. ऐसे में मध्य प्रदेश की 27 सीटों पर बीजेपी का कब्जा हो गया इसके बावजूद कमलनाथ ने यहां से जीत हासिल की. आंकड़ों के मुताबिक साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कमलनाथ 1 लाख से ज्यादा वोटों से जीते थे.
2019 के चुनावी समीकरण
साल 2019 में कमलनाथ जब मध्य प्रदेश के सीएम बने तो उस समय कमलनाथ ने अपनी लोकसभा सीट पर अपने बेटे नकुलनाथ को उतारा. 1997 के बाद ये पहला मौका था जब कमलनाथ की जगह कांग्रेस की तरफ से किसी और को उम्मीदवार बनाया गया. लेकिन इस बार भी ये सीट नाथ परिवार से बाहर नही गई. कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ को अपने पहले चुनाव में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी. भाजपा प्रत्याशी नत्थन शाह कवरेती नें उन्हें कड़ी चुनौती दी. आखिरकार नकुलनाथ 37 हजार 536 मतों से जीत गए. वहीं छिंदवाड़ा विधानसभा में हुए उपचुनाव में कमलनाथ की भी जीत हुई संभवत: यह पहला मौका था जब पिता पुत्र दोनों एक साथ जीतकर आए हों.
गिरिराज जैसे नेता लगा रहे जोर
छिंदवाड़ा कांग्रेस का वो अभेद किला है जिसे जीतने के लिए 1951 के दशक से कोशिशें जारी है. ये काम कठिन इसलिए है क्यूंकि बीते सत्तर साल में सिर्फ एक उपचुनाव जीतने में ही बीजेपी कामयाब हो पाई है. छिंदवाड़ा कमलनाथ का गढ़ है जिसे जीतना बीजेपी के लिए एक सपने के सच होने जैसा है. इसे जीतने के लिए बीजेपी ने 2022 में ही रणनीति बनाना शुरू कर दी है. इसके तहत बीजेपी ने अपने फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह को यहां तैनात किया था. बीजेपी यहां हिंदुत्व के रास्ते अपनी जमीन तलाश कर रही है जिसके लिए साल 2022 में गिरिराज ने अपने दौरे की शुरूआत भी मंदिर में दर्शन कर की थी. वो यहां हिंदुत्व के मुद्दे उठाने की कोशिश कर रहे थे पर कमलनाथ राजनीति के एक मझे हुए खिलाड़ी हैं. उन्होने अपनी हनुमान भक्त वाली साफ्ट हिंदुत्व की छवि से इस नैरेटिव को काउंटर किया था. अब एक बार फिर लोकसभा चुनावों के मद्देनजर बीजेपी यहां नए सिरे से मेहनत कर रही है. लेकिन छिंदवाड़ा के अभेद किले और कमलनाथ के गढ़ में सेंधमारी करना बीजेपी के लिए इतना भी आसान नहीं होगा.
2019 के परिणामों ने दी बीजेपी को ताकत
भले ही छिंदवाड़ा कमलनाथ का गढ़ हो या बीते सालों में कोई कमलनाथ को छिंदवाड़ा से न हरा सका हो पर साल 2019 में नकुलनाथ की जीत ने इस सीट पर बीजेपी को ताकत दी है. साल 2014 में जिस छिंदवाड़ा सीट पर कमलनाथ एक लाख वोट से जीते थे. उसी सीट पर उनके बेटे नकुलनाथ महज 37 हजार वोट से ही जीत सके. जिसके बाद वोट प्रतिशत और संख्या में इस गिरावट को बीजेपी ने अपने लिए संजीवनी मान लिया.
जानकार कहते हैं कि 50 हजार से भी कम वोटों से नकुलनाथ की जीत के बाद बीजेपी मान रही है कि कमलनाथ परिवार के खिलाफ जनता में असंतोष है. वहीं बीजेपी का मानना है कि कमलनाथ की जगह नकुलनाथ को जनता स्वीकार नहीं कर रही है. जिसके बाद माना जा रहा है कि बीजेपी लगातार यहां हवा बदलकर अपनी राजनैतिक जमीन मजबूत करने की कोशिश में हैं.