MP News: जिसे कालिया बताकर एनकाउंटर में मारा वह जेल में बंद था, CBI जांच कराने सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में खुशाली का परिवार
MP News: ग्वालियर में पुलिस ने डकैत कालिया उर्फ बृजकिशोर को मुठभेड़ में मारने का दावा किया लेकिन वह जेल में बंद था, एक परिवार लगातार तभी से दावा कर रहा है कि कालिया की जगह उनके बेटे खुशाली राम को पुलिस ने मारा है लेकिन पुलिस उसकी सुनवाई नही कर रही. वे दोषी पुलिस अफसरों पर कार्यवाही की मांग कर रहे है. परिजनों द्वारा मामले की जांच सीबीआई या किसी अन्य केंद्रीय जांच एजेंसी से कराने की मांग को हाईकोर्ट की ग्वालियर खण्डपीठ ने देरी से कोर्ट में अपील पेश करने की बात कहते हुए खारिज कर दी लेकिन पुलिस पर सिंगल बैंच द्वारा लगाए गए जुर्माने की राशि 20 हजार से बढाकर एक लाख रुपये कर दी. अब परिजन इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में हैं केस लड़ते लड़ते मां जनका केवट पिछले साल मर गयी थी.
मामले की CBI जांच की मांग
यह मामला ग्वालियर के डबरा में रहने वाले एक परिवार का है आरोप है कि इस परिवार कद तीन युवकों को 22 अप्रैल 2005 को कथित रूप से डबरा पुलिस अवैध रूप से उठाकर ले गई थी.परिजनों का कहना है कि पूछताछ के बाद में दो युवकों को तो पुलिस ने छोड़ दिया, लेकिन खुशालीराम नामक युवक को नहीं छोड़ा. परिवार वाले अफसरों के चक्कर काटते रहे लेकिन खुशाली का कोई पता नही चला. 5 फरवरी 2007 को समाचार पत्र के माध्यम से पता चला कि पुलिस ने मुठभेड़ में डकैत कालिया उर्फ बृजकिशोर को मार दिया. अखबार में छपे फोटो देखकर खुशालीराम की मां ने पहचान लिया कि वह उसके बेटे का शव है. उसने इस मामले में पुलिस अधिकारियो से शिकायत की. इसके बाद पुलिस ने उसका नाम खुशाली उर्फ कालिया लिख दिया. इसके बाद खुशाली के परिजन हाईकोर्ट की ग्वालियर खण्डपीठ पहुंचे जहां सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने मामले की उच्चस्तरीय जांच कराके रिपोर्ट देने के आदेश दिए. साथ ही पुलिस पर बीस हजार रुपये की कॉस्ट भी लगाई. सिंगल बैंच के फैसले के खिलाफ खुशाली का परिवार यह कहते हुए डबल बेंच में गया कि मामले की जांच सीआईडी से कराई जा रही है जो पुलिस का ही एक हिस्सा है. इस मामले में अनेक बड़े पुलिस अफसर जुड़े है इसलिए इसकी निष्पक्ष जाँच संभव नही है. इसकी जांच सीबीआई या किसी अन्य निष्पक्ष जांच एजेंसी से करानी चाहिए.
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RTI में हुआ खुलासा
सुनवाई के दौरान एडवोकेट जितेंद शर्मा ने बताया कि एक आरटीआई में मिली जानकारी में यह खुलासा हुआ है कि जिस डकैत का पुलिस द्वारा एनकाउंटर का दावा किया जा रहा है वह जिंदा है और झांसी की जेल में बंद है।साथ ही सीआईडी की जांच पर भी सवाल उठाए गए कि उसने सिर्फ एक एफआईआर की जांच करने के बाद ही मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी. इसी आधार पर मृतक के परिजनों ने सीबीआई जांच और मुआवजे की मांग करते हुए हाई कोर्ट की सिंगल बैंच में याचिका दायर की, जो खारिज हो गई. 2011 में सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ अपील पेश की गई. एडवोकेट जितेंद्र शर्मा ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में हुए खुलासे के बाद एएसपीने मुठभेड़ की जांच की. इसमें ये स्पष्ट हुआ कि डकैत कालिया तो जेल में बंद है.
लेकिन ये स्पष्ट नहीं हो सका कि मृतक कौन है? एडवोकेट शर्मा ने बताया कि मृतक के परिजनों ने जांच को लेकर आवेदन भी दिया था लेकिन पुलिस ने न तो एफआईआर दर्ज की और ना ही मामले की निष्पक्ष जांच की। कोर्ट ने उनका व शासन का पक्ष सुनने के बाद सुरक्षित रखा फैसला सुना दिया। कोर्ट ने याचिका को बिलम्ब से आने का हवाला देते हुए अस्वीकार कर दिया हालांकि कॉस्ट की राशि पांच गुना बढ़ा दी।पीड़ित पक्ष के वकील जितेंद शर्मा का कहना है कि उनका पक्षकार इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है क्योंकि वह निर्दोष को मुठभेड में मारने वाले अधिकारियों को दंडित कराना चाहता है क्योंकि यह स्पष्ट हो गया है कि जिस कालिया को मारा गया वह जीवित है।अब सुप्रीम कोर्ट में मामले की सीबीआई जांच की मांग के लिए अपील करने की तैयारी है.