MP News: विंध्य और रीवा की पहचान है सुंदरजा आम, अपनी विशेषताओं के चलते विदेशों में तक बनाई है पहचान, मिल चुका है GI टैग

Rewa Sundarja Mango Demand High: सुंदरजा आम को आंख बंदकर इसकी खुशबू से भी पहचाना जा सकता है. जिसके चलते लोग सुंदरजा आम को बेहद पसंद करते हैं.
Earlier Sundarja mango was grown only in the gardens of Rewa Govindgarh Fort, but now it is also being cultivated in Kuthulia Fruit Research Centre.

पहले सुंदरजा आम केवल रीवा गोविंदगढ़ किले के बगीचों में होता था, लेकिन अब कुठुलिया फल अनुसंधान केंद्र में भी इसकी खेती की जा रही है.

Rewa Sundarja Mango: मध्य प्रदेश के रीवा जिले का सुंदरजा आम जो देश के अलावा विदेशों में भी लोगों को अपना दीवाना बना रहा है. गोविंदगढ़ के बगीचों से निकलकर ये आम विदेश में भी अपनी खुशबू फैला रहा है. इस आम की खासियत ये है कि यह बिना रेशों वाला होता है और इसे डायबिटीज के मरीज भी खा सकते हैं सभी प्रकार के आम से अलग इस आम से फाइबर बिल्कुल नही होता. यह आम पकने के बाद सामान्य तापमान में 9 दिन तक रखा जा सकता है.  फ्रिजर में तो 30 दिन तक भी यह खराब नही होता इस आम को केवल छू लेने से उसकी खुशबू हाथों में कुछ समय तक बनी रहती है.  दुनिया में रीवा सफेद बाघ के साथ फलों के राजा आम सुंदरजा के लिए भी विख्यात है.  इस आम की देश-विदेश में खासी मांग है. जीआइ टैग मिलने से यह विंध्‍य और रीवा की पहचान बन गया है.

रीवा के गोविंदगढ़ में बहुतायत में होता है

पहले सुंदरजा आम केवल गोविंदगढ़ किले के बगीचों में होता था, लेकिन अब कुठुलिया फल अनुसंधान केंद्र में भी इसकी खेती की जा रही है. गोविंदगढ़ का सुंदरजा आम हल्का सफेद रंग का होता है, जबकि कुठुलिया फल अनुसंधान केंद्र में हल्का हरा होता है. वैज्ञानिक यह बताते हैं कि सुंदरजा आम का जो उत्पादन गोविंदगढ़ इलाके पर होता है. वह रीवा के फल अनुसंधान केंद्र पर नहीं हो पा रहा. यहां है इसका प्रमुख कारण गोविंदगढ़ इलाके में सुंदरजा आम के बगीचे के पास एक बड़ा तालाब भी है जिसके कारण वहां वातावरण अलग होता है. सुंदरजा आम की जो उत्पत्ति हो रही है, वह गोविंदगढ़ इलाके में लगभग एक आम की साइज 1000 से 1300 ग्राम तक होती है जबकि फल अनुसंधान केंद्र में निकलने वाले सुंदरजा की साइज 600 से 700 ग्राम की हो पा रही है. इसके अलावा गोविंदगढ़ इलाके के 6 किलोमीटर को अगर छोड़ दे तो इसके अलावा अगर कहीं सुंदरजा आम का उत्पादन हो रहा है तो आम में एक विशेष प्रकार का रोग भी हो जाता है. वैज्ञानिक गोविंदगढ़ क्षेत्र की मिट्टी का भी पर भी रिसर्च कर रहे हैं. इस समय सुंदरता अपने प्रारंभिक स्वरूप में है और जो कच्चे आम नीचे गिर जाते हैं. खराब हो जाते हैं उन्हें भी सुखाकर 40 से 45 रुपए किलो बेचा जाता है जिसे रीवा में अमाहरी कहते हैं.

सुंदरजा आम की विशेषता

गोविंदगढ़ की मिट्टी में उगने वाले पेड़ों के आम का स्वाद लाजवाब है. इसकी खुशबू इतनी जबरदस्त है कि आंख बंद करके भी पहचान सकते हैं. वर्ष 1968 में सुंदरजा आम के नाम पर डाक टिकट जारी किया गया था. दिल्ली, मुंबई, छत्तीसगढ़, गुजरात सहित कई शहर व राज्यों के लोग इस आम को एडवांस आर्डर देकर मंगवाते हैं. फ्रांस, इंग्लैंड, अमेरिका, जर्मनी, कनाडा व अरब देशों में इसकी काफी मांग है.  सुंदरजा आम को एक जिला एक उत्पाद योजना में शामिल किया गया है. सुंदरजा आम की खेती और मार्केटिंग के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं. किसान इसकी आनलाइन बिक्री भी कर रहे हैं. बड़े पैमाने पर खेती होने से यह विंध्य के किसानों के लिए वरदान साबित होगा.

सुंदरजा आम को आंख बंदकर इसकी खुशबू से भी पहचाना जा सकता है. जिसके चलते लोग सुंदरजा आम को बेहद पसंद करते हैं. गोविंदगढ़ की जलवायु इन आमों के पेड़ों के लिए अच्छी मानी जाती है. इस आम की सबसे खास बात यह है कि इस आम में विटामिन ए, विटामिन सी, कार्बोहाईड्रेट और चीनी की कम मात्रा होती है. इसका औषधीय गुण यह है कि डायबिटीज के पेशेंट यदि इसे खाते हैं, तो यह नुकसान नहीं पहुंचाता. यही वजह है कि डायबिटीज के पेशेंट इस आम को खूब पसंद करते हैं. इस आम को कुछ दिनों तक स्टोरेज करके भी रखा जा सकता है. इस खास आम ने समूचे देश में अपनी जड़ें जमा लीं है. सुंदरजा के एक छोटे से पेड़ में तकरीबन 125 किलो तक आम की पैदावार हो जाती है. और सुंदरजा आम जुलाई के समय पकाना शुरू हो जाता है जब तेज बारिश शुरू होती है उसी के साथ सुंदरजा पकाने लगता है.

प्रदेश का सबसे बड़ा आम अनुसंधान केन्द्र रीवा में

जिले के गोविन्दगढ़ और रीवा के कुठूलिया में स्थित प्रदेश का सबसे बड़ा आम अनुसंधान केन्द्र स्थापित है. इस अनुसंधान केंद्र में 150 से भी ज्यादा आम की प्रजाति वाले पेड़ मौजूद हैं. इन सभी आम की प्रजातियों वाले इस बगीचे में एक ऐसे खास आम की उपज की जाती है जो देश भर में अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए है वो है सुंदरजा आम. इसके अलावा यहां अमरपाली, दशहरी, लंगड़ा, मल्लिका, बेंगलुरु, चौसा, बॉम्बे ग्रीन सहित लॉकडाउन के नाम से भी एक प्रजाति भी शामिल है.

महाराजा गुलाब सिंह ने लगवाया था बगीचा

बता दें कि, गोविंदगढ़ और फल एवं अनुसंधान केंद्र कुठुलिया का आम का बगीचा रीवा राज्य के महाराजा गुलाब सिंह के समय में लगवाया गया था. रियासत काल में यह राजे-राजवाड़ों की पसंद हुआ करता था. इसे बाद फल अनुसंधान केंद्र के बगीचे को कृषि विभाग को सौंप दिया गया. बगीचे में देवी-देवताओं के नाम से विष्णु भोग, हनुमान भोग, कृष्ण भोग, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के नाम से आम के पेड़ लगे हैं. कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि 132 एकड़ में फैले फल अनुसंधान केंद्र कुठुलिया में लगभग ढाई हजार आम के पेड़ों का बगीचा है. यहां सुंदरजा, मलिका, आम्रपाली, महमूद बहार, चौसा, स्वर्ण रेखा, प्रभा शंकर विष्णु भोग, कृष्ण भोग, गोपाल भोग, फजली, दशहरी व लंगड़ा आम के पेड़ हैं.

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राजघराने के द्वारा की गई थी सुंदर जा की ब्रीडिंग

1885 में महाराजा रघुराज सिंह ने इस खास आम के पेड़ की ब्रीडिंग कराई थी. जिसका पहला पेड़ आज भी गोविंदगढ़ तलाब के किनारे मौजूद है. इस सुंदरजा आम के नाम से 1968 में भारत ने एक डॉक टिकट भी जारी किया था. बीते वर्ष इस आम को GI टैग की उपलब्धि हासिल हुई थी. बाजार में इस आम की कीमत भी इसे खास बनाती है क्योंकि फुटकर विक्रेता इसे 400 से 500 रुपये किलो की दर से बेचते हैं. जबकि विदेशों में इसकी कीमत हजारों में होती है.

GI टैग मिलने के बाद दुगने दाम में हुआ है आमो का टेंडर

रीवा के गोविंदगढ़ का सुंदरजा आम देश विदेश तक अपनी महक तो पहुंचा ही रहा है. वैज्ञानिको कि मेहनत के बाद अब सुंदरजा आम जीआई टैग प्राप्त आम बन गया है. सुंदरजा आम को जीआई टैग मिलने से न सिर्फ सुंदरजा आम को एक अलग पहचान मिली है, बल्कि इसका लाभ अब अन्य आमो को भी मिल रहा है. कुठूलिया अनुसंधान केंद्र की 60 एकड़ जमीन में लगी 237 प्रजातियों के आमो का टेंडर जो इस वर्ष हुआ है वो पिछले वर्ष की अपेक्षा दो गुने से भी ज्यादा है. इस वर्ष पूरे बगीचे का टेंडर 18 लाख 71 हजार में हुआ है जबकि पिछली बार यही टैंडर 7 लाख 11 हजार का था.

रीवा के इस अनुसंधान केंद्र में देसी प्रजातियों सहित विश्वख्याति प्राप्त गोविंदगढ़ का जीआई टैग आम सुंदरजा व अमेरिका प्रजापति के आम ,मल्लिका और आम्रपाली जैसे सैकड़ो आम खाने को मिल जायेगे.  दरअसल रीवा के फल एवं अनुसंधान केंद्र कुठुलिया में वैज्ञानिकों द्वारा आमो की विभिन्न प्रजातियों की खेती कर उनमें शोध कार्य किया जा रहा है.  रीवा के सुन्दरजा आम को जी आई टैग दिलाने में यहां के वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत कर जो शोध तैयार किया उसके आधार पर ही सुंदरजा को देश विदेश में एक अलग पहचान मिली. अनुसंधान केंद्र में करीब 60 एकड़ जमीन पर आमो कि विभिन्न प्रजातियां उपलब्ध है, जिनमे शोध किया जाता है और अच्छे किस्म के आमो की खेती के लिए किसानो को उपलब्ध कराया जाता है.

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